रेकॉर्ड तोड़ सरकारी गेहूं खरीद अब उत्तर प्रदेश में अपना असर दिखाने लगी है। तीन सालों में पहली बार खुले बाजार में गेहूं की कीमत सरकारी भाव के आसपास जा पहुंची है।
मायावती सरकार के अनाज की स्टॉक सीमा तय कर देने के फैसले के बाद उपभोक्ताओं को और राहत मिली है। स्टॉक सीमा के विरोध कर रहे व्यापारियों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो थोक बाजार में गेहूं की कीमत सरकार के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे जाना तय है।
लखनऊ की थोक मंडी में सोमवार को गेहूं 10.50 रुपये से लेकर 12 रुपये तक बिका जबकि खुदरा बाजार में गेहूं की कीमत 11 रुपये के आसपास रही है। गेहूं की कीमत में गिरावट के बाद आटे के बाजार भाव में भी खासी गिरावट देखी गयी है।
खुदरा बाजार में आटा 13 रुपये किलो के भाव मिल रहा है, जो कि 15 दिन पहले 15 से 16 रुपये प्ति किलो की दर पर बिक रहा था। इस साल सरकार ने अकेले स्टेट पूल के लिए 15 लाख टन गेहूं खरीद लिया है जबकि अभी खरीद के लिए 35 दिन बचे हैं। बीते साल सरकार ने कुल 5.35 लाख टन गेहूं खरीदा था और इस साल खरीद का लक्ष्य 15 लाख टन रखा था।
हालांकि सरकार गेहूं की कीमतों में आई गिरावट का कारण स्टॉक सीमा तय करना बता रही है, पर व्यापारियों की राय इससे जुदा है। उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रवक्ता चंद्र कुमार छाबड़ा के मुताबिक स्टॉक सीमा तय होने से व्यापारी का उत्पीड़न ही होगा, न कि इससे दाम गिरेंगे। उनका कहना है कि इस नए फरमान के बाद खुदरा व्यापारियों की खरीद प्रभावित हुई है और इसके चलते थोक बाजार में कीमतें गिरी हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले सप्ताह कैबिनेट से प्स्ताव पारित कर अनाज और खाद्य तेलों पर स्टॉक की सीमा निर्धारित कर दी है। आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 को 1992 में तत्कालीन मुलायम सरकार ने एक आदेश के तहत निष्प्रभावी कर दिया था, जिसे इस सरकार ने फिर से जीवित कर दिया है। नए आदेश के मुताबिक अब प्रदेश के व्यापारी तय सीमा से ज्यादा गेहूं, चावल, दाल और खाद्य तेलों का स्टॉक नही रख सकेंगे।