भूराजनीतिक घटनाक्रम और अमेरिकी टैरिफ से जुड़े खतरों की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में पहली छमाही में उतार-चढ़ाव रहा। एसऐंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स में तेल बाजार रिसर्च और विश्लेषण के कार्यकारी निदेशक प्रेमाशिष दास ने नई दिल्ली में कमोडिटी मार्केट इनसाइट्स फोरम के अवसर पर पुनीत वाधवा को बताया कि तेल बाजारों को 2025 की दूसरी छमाही में ज्यादा आपूर्ति और कमजोर मांग की उम्मीद है। बातचीत के मुख्य अंश:
बहुत अनिश्चितता बनी हुई है। शुरू में आम धारणा यह थी कि 90 दिनों के विराम के दौरान चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। लेकिन हमें बहुत आशा नहीं थी। इतने कम समय में कई देशों को समझौते के लिए तैयार करना हमेशा ही मुश्किल भरा काम है और ठीक यही हो भी रहा है। मुझे चिंता यह है कि अगर ट्रंप इस प्रगति से नाखुश हुए तो क्या होगा। वे तल्ख प्रतिक्रिया दे सकते हैं। यूरोपीय संघ और कनाडा जैसे देशों ने यह साफ कर दिया है कि वे जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार हैं। इसलिए, कुल मिलाकर नतीजे कुछ भी हो सकते हैं।
इसका असर वर्ष की दूसरी छमाही पर भी पड़ेगा, जिसके बारे में हम पहले से ही मानते हैं कि यह चुनौतीपूर्ण होगी। 10 प्रतिशत टैरिफ के कारण अधिकांश आर्थिक गतिविधियां पहली छमाही में ही होने लगी थीं। इसलिए हम 2025 की दूसरी छमाही में गतिविधियों और तेल की मांग में बड़ी सुस्ती की उम्मीद कर रहे हैं।
विराम के बाद पहली छमाही के दौरान कुछ अनिश्चितता थी। लेकिन दूसरी छमाही और भी खराब दिख रही है। ट्रंप जो उम्मीद कर रहे हैं कि अमेरिका में विनिर्माण रातोरात वापस आ जाएगा तो यह बात हकीकत से दूर है। इसमें वर्षों लगेंगे। इस बीच, आपूर्ति संबंधी मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। मुद्रास्फीति नियंत्रण में होने के बावजूद फेड सतर्क है क्योंकि इस तरह की अनिश्चितताएं कभी भी बढ़ सकती हैं। यह प्रमुख जोखिमों में से एक है।
हम अनुमान लगा रहे हैं कि दिसंबर 2025 तक ब्रेंट की कीमत 55-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच होगी। दूसरी छमाही के लिए औसत कीमत 60 डॉलर से थोड़ी सी अधिक रह सकती हैं। हमारा मूल अनुमान यह है कि ओपेक+ सुस्त मांग वृद्धि के इस माहौल में कीमतों का आक्रामक रूप से बचाव नहीं करेगा। अगर वह अपना रुख बदलता है तो निश्चित ही पूर्वानुमान बदल जाएगा।
अनिश्चितता का असर काफी हद तक दिख चुका है। यही कारण है कि पश्चिम एशिया में तनाव के कारण कीमतों में फिर उछाल आने से पहले तेल कुछ समय के लिए 60 डॉलर से नीचे आ गया था। बाजार ने वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती, तेल की मांग में कमी और ओपेक+ की आपूर्ति में संभावित वृद्धि को पहले ही मान लिया है। पश्चिम एशिया के संघर्ष क्या रूप लेते हैं, यह अभी तय नहीं है। कीमतों में अभी भी भू-राजनीतिक जोखिम का तत्व ज्यादा है अन्यथा आपूर्ति-मांग के हिसाब से तो कीमतें और भी कम होतीं।
वैश्विक तेल की मांग लगभग 10.5 करोड़ बैरल प्रति दिन है। हमें उम्मीद है कि दूसरी छमाही में वृद्धि की रफ्तार धीमी हो जाएगी। वार्षिक वृद्धि लगभग 8 लाख बैरल/दिन अनुमानित थी लेकिन तीसरी और चौथी तिमाही में हम तिमाही मांग में लगभग 3-4 लाख बैरल प्रतिदिन की गिरावट देख सकते हैं।