जहां एक ओर 60 हजार करोड क़े ऐतिहासिक पैकेज जैसे ऐलान करके न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि सभी राजनीतिक दल किसानों के खैरख्वाह बनने की होड़ में जुटे हुए हैं, वहीं एशिया के सबसे बड़े चना उत्पादक क्षेत्र मालवा में किसानों पर आई अब तक की सबसे बड़ी मुसीबत की सुध लेने वाला कोई नहीं है। अब तक के सबसे बड़े नुकसान के तहत चने की फसल के पूरी तरह से बर्बाद होने की दुखद खबर लेकर यहां के किसान सरकारी अधिकारियों की चौखट खटखटा रहे हैं। इसके बावजूद ये अधिकारी उनकी मुसीबत से अंजान बनते हुए कुंभकर्णी नींद सो रहे हैं।
फसलों में हुए नुकसान का असर यहां के शुजालपुर, बारोद, अगर, देवास, निपानिया, मंदसौर, बेरछा, उज्जैन, कलापीपुल और इंदौर के आस-पास के इलाकों तक है। फसलों में लगे कीड़ों के चलते इस साल यहां लगभग 75 से 100 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है। जो चंद किसान इस विपदा से बच गए, उन्होंने या तो बीज की बुआई देर से की थी या फिर फसल पर सल्फर का छिड़काव किया था।
यहां के सबसे बड़े चना उत्पादक जिले शाजापुर के किसानों ने बिानेस स्टैंडर्ड को जानकारी दी कि इल्ली (तितली के लार्वा) और अन्य कीड़ों के हमले में फसल बर्बाद हो गई। जिले के 7000 किसानों की सहकारी समिति समर्थ किसान उत्पादक कंपनी के चेयरमैन भुवन लाल सोलंकी बताते हैं- ज्यादातर इलाकों में फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। अगर कहीं कुछ बचा भी है तो वहां भी प्रति हेक्टेयर अधिकतम दो क्विंटल चने का ही उत्पादन हुआ है, जबकि आमतौर पर यह प्रति हेक्टेयर एक टन होता है। हमारी समिति के कृषि सलाहकार ने हमें पहले ही चेता दिया था, लिहाजा हमने 12 हजार हेक्टेयर की फसल देर से बुआई करके बचा ली।
शाजापुर जिला पंचायत के अध्यक्ष तेरूलाल भिलाला भी बताते हैं- लगभग 75 फीसदी फसल बर्बाद हो गई। कुछ किसानों को महज 50 किलो फसल प्रति हेक्टेयर के उत्पादन से ही संतोष करना पड़ा। काबुली चना उगाने वाले बारोद, अगर, निपानिया, रतलाम, मंदसौर,माहिदपुर, राओर, उज्जैन और देवास में तो फसल पूरी तरह से ही तबाह हो गई। और कोई भी इस मुसीबत की घड़ी में हमारी मदद के लिए नहीं आया।
हैरत की बात तो यह है कि किसान भले ही इसे अपने लिए विपदा की सबसे बड़ी घड़ी मान रहे हों और इसके चलते चने की कीमत आसमान छू रही हो, सरकारी अधिकारी इसे ‘मामूली नुकसान’ करार देकर पल्ला झाड़ने में लगे हुए हैं। राज्य सरकार के प्रमुख सचिव कृषि प्रवेश शर्मा कहते हैं- कम बारिश और कीड़ों के चलते नुकसान तो हुआ है लेकिन यह 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्र तक ही है। हम क्षेत्र में इसके लिए एक सर्वे करा रहे हैं लेकिन 24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से 24 लाख टन फसल के उत्पादन की उम्मीद है। जाहिर है, नुकसान बहुत मामूली है।
