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Union Budget 2024: बजट में MSME को किया प्रोत्साहित मगर बैंक उधार देने में सतर्क, कई वजहें जिम्मेदार

Budget 2024: बैंकरों ने कहा कि दबाव वाले देनदारों को मुश्किलों से बाहर निकलने के लिए और वक्त की दरकार होती है, ऐसे में 90 दिन के NPA वर्गीकरण में छूट पर विचार किया जाना चाहिए

Last Updated- July 24, 2024 | 10:44 PM IST
Demand for improvement in priority sector credit structure प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण ढांचे में सुधार की मांग

Budget for MSME: इस साल के आम बजट ने भले ही बैंकों को दबाव वाले छोटे व मझोले उद्यमों को उधार देने के लिए प्रोत्साहित किया हो, लेकिन बैंक इस बात से चिंतित हैं कि ऐसे कर्ज गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) बन जाएंगी, अगर फंसे कर्ज के वर्गीकरण के नियमों में ढील न दी जाए।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को एमएसएमई की दबाव वाली अवधि के दौरान उन्हें बैंक क्रेडिट जारी रखने को लेकर नई व्यवस्था की घोषणा की। उन्होंने कहा था, उन वजहों के चलते जिन पर उनका नियंत्रण न हो और इस कारण स्पेशल मेंशन अकाउंट के चरण में पहुंचने वाले एमएसएमई को अपना कारोबार जारी रखने व एनपीए चरण को टालने की खातिर उन्हें क्रेडिट जारी रखने की दरकार है। उन्होंने कहा था कि क्रेडिट की उपलब्धता को सरकार प्रवर्तित फंड के जरिये गारंटी दी जाएगी।

एक बड़े सरकारी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अगर एक फर्म ने भुगतान में चूक की है तो उसका जोखिम प्रोफाइल खराब हो चुका होता है। ऐसे परिदृश्य में और कर्ज देने से फायदा नहीं होगा क्योंकि बैंक डिफॉल्ट का जोखिम झेल रहा होता है।

बैंक स्पेशल मेंशन अकाउंट (एसएमए) में कर्ज को तभी वर्गीकृत करता है जब भुगतान में चूक हुई हो। इसकी तीन श्रेणियां हैं। पहला एसएमए जीरो – जब मूलधन या ब्याज 30 दिन से ज्यादा समय से न बकाया हो लेकिन खाते पर दबाव दिख रहा हो। एसएमए-1 के तहत जब मूलधन व ब्याज 31 से 60​ दिन तक बकाया रह गया हो और एसएमए-3 के तहत बकाया 61 से 90 दिन तक हो। अगर पुनर्भुगतान 90 दिन से ज्यादा समय से न हुआ हो तो इस कर्ज को सब-स्टैंडर्ड माना जाएगा, जो एनपीए की पहली श्रेणी है।

बैंकरों ने कहा कि दबाव वाले देनदारों को मुश्किलों से बाहर निकलने के लिए और वक्त की दरकार होती है और ऐसे में 90 दिन के एनपीए वर्गीकरण में छूट पर विचार किया जाना चाहिए।

उन्होंने एकबारगी के पुनर्गठन की सुविधा का उदाहरण दिया, जो कोरोना महामारी के दौरान मुहैया कराया गया था जब बैंकों को बिना किसी अतिरिक्त प्रावधान के कर्ज पुनर्गठन की इजाजत दी गई थी। नियमों के मुताबिक, किसी कर्ज के पुनर्गठन पर अतिरिक्त प्रावधान की दरकार होती है।

बैंकिंग व वित्तीय सेवाओं पर बजट के असर पर टिप्पणी करते हुए क्रिसिल ने कहा, एमएसएमई मोटे तौर पर पर्याप्त कोलेटरल नहीं दे पाते और उनका वित्तीय रिकॉर्ड अक्सर बैंकिंग मानकों पर खरा नहीं उतरता। एमएसएमई को लेकर क्रेडिट गारंटी हालांकि सही दिशा में उठाया गया कदम है लेकिन इसका क्रियान्वयन और इसके बाद के असर पर निगरानी रखने की दरकार होगी।

क्रिसिल का अनुमान है कि एमएसएमई के लिए फंडिंग का अंतर 20 लाख करोड़ रुपये से 25 लाख करोड़ रुपये तक है।

एमएसएमई को बैंक कर्ज में इजाफा 2020-21 व 2021-22 में हुआ था, जो मई 2020 में पेश इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम के लाभ को प्रतिंबिबित करता है। इसके बाद वृद्धि की दर घटी है।

आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, सूक्ष्म व छोटे उद्योगों को बैंक क्रेडिट सालाना आधार पर 2 जून, 2024 तक 9.9 फीसदी की धीमी रफ्तार से बढ़ी जबकि बैंक कर्ज की कुल वृद्धि 15.4 फीसदी की दर से हुई। मझोले एंटरप्राइजेज को कर्ज इस अवधि में 11 फीसदी बढ़ा।

First Published - July 24, 2024 | 10:37 PM IST

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