आर्थिक तंगी के बावजूद पंजाब सरकार ने सोमवार को पेश किए गए बजट में कोई नया कर नहीं लगाया है। पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह ने विधानसभा में वित्त वर्ष
पिछले कुछ सालों से पंजाब लगातार राजकोषीय घाटे से जूझ रहा है। राजकोषीय घाटे के बढ़ने का प्रमुख कारण राजस्व प्राप्ति के मुकाबले व्यय का बढ़ना है। इस कारण राज्य में राजस्व और राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ा है और नकदी की समस्या उपजी है। मनप्रीत सिंह ने बजट प्रस्तुत करते हुए कहा कि
‘मार्च 2007 में जब हमारी सरकार सत्ता में आई तो उस समय राजकोष की स्थिति काफी खराब थी। राजस्व घाटा लगभग 1748.69 करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा लगभग 4383.58 करोड़ रुपये था।
राज्य में राजस्व घाटा , कुल राजकोषीय घाटे का लगभग 40 प्रतिशत हो गया है। राजस्व में आई यह कमी 923 करोड़ रुपये के गैर–योजनागत व्यय के अतिरिक्त है। राजस्व में कमी निश्चित तौर राजकोष पर दबाव को बढ़ाने के साथ–साथ सरकार के राजकोषीय प्रंबधन को भी पेचीदा बना रही है। राज्य सरकार इस दौरान वेतन, पेंशन और ब्याज के भुगतान पर किया जाने वाला खर्च 2006-07 की कुल राजस्व प्राप्तियों के 80 प्रतिशत से अधिक हो गया है। अन्य गैर योजनागत खर्च को जोड़ने पर राज्य सरकार का घाटा और बढ़ जाता है। इसके कारण सरकार पर कर्ज का भार भी बढ़ा है।
राज्य का कुल ऋण फरवरी
2002 में 32,496 करोड़ रुपये था। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2006-07 के अंत में बढ़कर 48,344 करोड़ रुपये हो गया। ऋण के बढ़ने के साथ ही ब्याज का दबाव भी बढ़ा है। वर्ष 2006-07 के दौरान ब्याज के भुगतान पर 4,151 करोड़ रुपये खर्च किए गए जो कुल राजस्व प्राप्तियों का 22.43 प्रतिशत है।
वित्त मंत्री ने बताया कि राजस्व प्राप्तियों के
2006-07 के 1748.69 करोड़ रुपये के मुकाबले 2007-08 में 1280.57 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि सरकार ऋण को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के तीन प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य तय किया गया है।वर्ष 2008-09 के दौरान राजकोषीय घाटा 2.88 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जानकारों का मानना है कि आगामी पंचायत और जिला परिषद के चुनावों को देखते हुए सत्ताधारी अकाली–भाजपा सरकार ने कोई नया कर लगाने से गुरेज किया है। हालांकि अनुमान है कि वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कुछ कड़े कदम उठाए जा सकते हैं।