बजट

MSME के लिए वित्तीय क्षेत्र में एकीकृत नियामक की मांग

फिस्मे ने प्रधानमंत्री कार्यालय को सुझाव दिया है कि एमएसएमई के बेहतर ऋण और शिकायत निवारण के लिए बैंकिंग, बीमा और फिनटेक में एक एकीकृत वित्तीय नियामक बनाया जाए।

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मोनिका यादव   
हर्ष कुमार   
Last Updated- December 23, 2025 | 8:41 AM IST

केंद्रीय बजट 2026 से पहले फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्मॉल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज (फिस्मे) ने प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखे प्रस्ताव में बैंकिंग, बीमा और फिनटेक क्षेत्र के लिए एक एकीकृत वित्तीय क्षेत्र नियामक बनाने का अनुरोध किया है। संगठन ने तर्क दिया है कि टुकड़ों में निरीक्षण और कमजोर शिकायत निपटान प्रणाली के कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को कर्ज मिलने में परेशानी होती है।

भारत में ‘एमएसएमई के नेतृत्व में औद्योगिक विकास के लिए अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधार’ शीर्षक से लिखे खाके में उद्योग संगठन ने बैंकिंग विनियमन संबंधी काम को भारतीय रिजर्व बैंक से अलग करने और इसे भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के साथ विलय करके वित्तीय व्यवस्था के लिए एक एकल नियामक बनाने की सिफारिश की है।

फिस्मे का कहना है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली एकाधिकारवादी प्रतिस्पर्धा की स्थिति में काम करती है। इस व्यवस्था में बैंकों को अधिक लागत से कम की ओर जाने में महत्त्वपूर्ण शक्ति मिल जाती है। इसकी वजह से  प्राथमिकता क्षेत्र वाले ऋण मानदंडों के बावजूद कुल मिलाकर बैंक ऋण में एमएसएमई का हिस्सा लगातार कम हो रहा है और बमुश्किल 15 प्रतिशत एमएसएमई औपचारिक ऋण तक पहुंच पाते हैं।

पत्र में तर्क दिया गया है कि मौद्रिक नीति, सरकारी ऋण प्रबंधन और विनिमय दर प्रबंधन सहित रिजर्व बैंक के पास कई जिम्मेदारियां होती हैं, जिसकी वजह से बैंकिंग में ग्राहकों के संरक्षण और प्रतिपर्धा लागू कराने के लिए नियामक को कम वक्त मिलता है।  इसमें कहा गया है, ‘कुल बैंक ऋण के प्रतिशत के रूप में एमएसएमई को मिलने वाला धन पिछले दशकों के दौरान लगातार कम हो रहा है। प्राथमिकता क्षेत्र वाले ऋण की नीति के बावजूद मुश्किल से 15 प्रतिशत एमएसएमई संस्थागत वित्त तक पहुंचते हैं।’

इसमें कहा गया है कि रिजर्व बैंक की पहले की ग्राहकों की सुरक्षा की पहल जैसे भारतीय बैंकिंग कोड और मानक बोर्ड अंततः कमजोर हो गईं। इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि सूक्ष्म और लघु उद्यमों पर पूर्व भुगतान शुल्क लगाने से बैंकों को रोक दिया गया था, जबकि पहले के ऋण समझौतों में इस तरह के शुल्क लगाने की छूट थी।  फिस्मे ने मौजूदा शिकायत निवारण प्रणाली की खामियों की ओर भी ध्यान दिलाया है। एमएसएमई की ऋण से जुड़ी शिकायतें रिजर्व बैंक की लोकपाल योजना के दायरे से बाहर है। इसकी वजह से रिजर्व बैंक के सर्कुलर की मनमानी व्याख्या, क्रेडिट ब्यूरो रिपोर्टिंग के दुरुपयोग,  खातों पर अचानक रोक लगाए जाने या अनुपालन न करने को लेकर शुल्क लगाए जाने के मामले में ऋण लेने वालों को राहत मिलने की संभावना कम होती है।

प्रस्ताव में कहा गया है कि एकीकृत नियामक को बैंकिंग, बीमा और फिनटेक में प्रतिस्पर्धा, ग्राहकों पर ध्यान और नवाचार सुनिश्चित करने का काम सौंपा जाना चाहिए।   नियामक वाणिज्यिक उधारी लेने वालों के लिए एक समर्पित, आईटी पर आधारित शिकायत निवारण तंत्र की भी निगरानी करेगा, जिसे भारतीय बैंक संघ और एमएसएमई निकायों की भागीदारी के साथ विकसित किया जाएगा।  संगठन ने तर्क दिया है कि भारत की वित्तीय व्यवस्था में संरचनात्मक सुधार के लिए सुधार जरूरी हैं, जिनका एमएसएमई पर विपरीत असर पड़ रहा है।  संगठन ने कहा कि देश के कुल उद्यमों का 99 प्रतिशत होने के बावजूद एमएसएमई क्षेत्र के उद्यम बहुत अधिक अनौपचारिक हैं।

First Published : December 23, 2025 | 8:41 AM IST