राजकोषीय घाटे को लक्षित करने की मौजूदा परंपरा से हटकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उम्मीद के मुताबिक राजकोष के सहारे ऋण और जीडीपी अनुपात को कम करने का नया खाका तैयार किया है। वित्त वर्ष 2031 तक की 6 वर्षीय कार्ययोजना का लक्ष्य ऋण और जीडीपी अनुपात को 47.5 से 52 प्रतिशत के दायरे में लाना है जो वित्त वर्ष 25 में 57.1 प्रतिशत के स्तर पर है। वित्त वर्ष 26 के लिए बजट में ऋण और जीडीपी अनुपात को 56.1 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा गया है और इसे हर साल 1 प्रतिशत नीचे लाने का प्रयास किया जाएगा।
वित्त वर्ष 27 से वित्त वर्ष 31 की अवधि के लिए ऋण और जीडीपी का दायरा तीन नॉमिनल जीडीपी वृद्धि के परिदृश्य-10 प्रतिशत, 10.5 प्रतिशत और 11 प्रतिशत पर आधारित है। प्रत्येक विकास परिदृश्य के लिए राजकोषीय मजबूती के आधार पर हल्के, मध्यम और उच्च जैसे तीन ऋण-जीडीपी अनुपात लक्ष्य रखे गए हैं जिन्हें सरकार हासिल करना चाहती है।
बजट के साथ पेश किए गए मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति सह राजकोषीय नीति रणनीति वक्तव्य में कहा गया है, ‘यह दृष्टिकोण सरकार को अचानक बदलने वाले हालात से निपटने के लिए आवश्यक संचालन में लचीलापन प्रदान करता है। इसी के साथ इससे केंद्र सरकार के ऋण बोझ को पारदर्शी तरीके से स्थिर बनाए रखने की उम्मीद की जाती है।’
अपने बजट भाषण में सीतारमण ने कहा, ‘हमारा प्रयास राजकोषीय घाटे को प्रत्येक वर्ष इस तरह बनाए रखना है कि जीडीपी के अनुपात में सरकारी ऋण लगातार घटता चला जाए।’ सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 2026 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.4 प्रतिशत के स्तर तक नीचे लाना है जो वित्त वर्ष 25 में संशोधित 4.8 प्रतिशत पर है। सरकार ने वित्त वर्ष 22 के बजट में राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2025 तक जीडीपी के 4.5 प्रतिशत के स्तर से नीचे लाने का लक्ष्य रखा था।
बयान में कहा गया है, ‘किसी बड़ी आर्थिक उटापटक के झटकों को छोड़कर और संभावित विकास रुझान और उभरती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार प्रत्येक वर्ष (वित्त वर्ष 26-27 से वित्त वर्ष 30-31 तक) राजकोषीय घाटे को उस स्तर पर बनाए रखने का प्रयास करेगी कि केंद्र सरकार का ऋण लगातार घटता जाए ताकि ऋण और जीडीपी का अनुपात 31 मार्च 2031 (16वें वित्त आयोग चक्र का अंतिम वर्ष) तक लगभग 50+ – 1 प्रतिशत पर लाया जा सके।’ इसमें यह भी कहा गया है कि राजकोषीय मजबूती का चुनाव बजट से इतर उधार के उचित खुलासे के माध्यम से राजकोषीय पारदर्शिता को बढ़ावा देने के सरकार के ठोस प्रयासों से मेल खाता है।
बयान के अनुसार, ‘राजकोषीय मजबूती के रूप में ऋण और जीडीपी अनुपात का विकल्प मौजूदा वैश्विक सोच के अनुरूप है। यह कड़े वार्षिक राजकोषीय लक्ष्यों से हटकर अधिक पारदर्शी और लचीले राजकोषीय मानकों की ओर बढ़ने के प्रयासों को प्रोत्साहित करता है। यह राजकोषीय प्रदर्शन के अधिक भरोसेमंद उपायों को भी दिखाता है, क्योंकि यह पिछले और मौजूदा वित्तीय फैसलों के प्रभावों को भी दिखाता है।’
मूडीज रेटिंग्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष क्रिश्चिन डी गुजमैन कहते हैं, ‘यद्यपि केंद्र सरकार अपने नीतिगत लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर है, लेकिन हमें ऋण बोझ या ऋण सेवा के लिए निर्धारित बजट के अनुपात में पर्याप्त सुधार की उम्मीद नहीं है।’