Editorial: जाति की जटिलताएं: गणना, राजनीति और सामाजिक संतुलन का द्वंद्व

2026 से पहले हो सकती है नई जनगणना, राजनीतिक समर्थन के बीच उठे सामाजिक और आर्थिक चिंता के सवाल

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 01, 2025 | 11:45 PM IST

राजनीतिक मामलों की केंद्रीय कैबिनेट कमेटी ने बुधवार को अगली जनगणना में जाति की गणना को शामिल करने का निर्णय लिया। आज़ादी के बाद यह पहला मौका होगा जब जनगणना के दौरान जाति के आंकड़े संग्रहीत किए जाएंगे। हालांकि अनुसूचित जाति और जनजाति के आंकड़े दर्ज किए जाते हैं लेकिन व्यापक स्तर पर जातिगत आंकड़े इससे पहले 1931 की जनगणना में एकत्रित किए गए थे। इस घोषणा को दोनों प्रमुख दलों का समर्थन मिला है जो बताता है कि जाति जनगणना की राह में कोई मुश्किल नहीं है। वास्तव में 2024 के लोक सभा चुनावों में जाति जनगणना कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के सबसे प्रमुख चुनावी वादों में से एक था।

चूंकि सरकार ने अगली जनगणना में जाति को दर्ज करने का निर्णय ले लिया है इसलिए अब इसके परिणामों पर चर्चा करना भी आवश्यक है। हालांकि, उससे पहले यह ध्यान देना आवश्यक है कि जल्द से जल्द जनगणना करना भी आवश्यक है। कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में होने वाली दशकीय जनगणना को टाल दिया गया था लेकिन यह समझना मुश्किल है कि हालात सामान्य होने के बाद भी सरकार उसे क्यों टालती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के मुताबिक 2011 में जब भारत में पिछली जनगणना हुई थी तब हमारी अर्थव्यवस्था का आकार 1.8 लाख करोड़ डॉलर था। यह संभव है कि जिस समय तक अगली जनगणना पूरी होगी या उसके परिणाम आने शुरू होंगे तब तक भारत पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुका होगा। यह एकदम अलग देश होगा। ऐसे में यह अहम है कि जनगणना नियमित हो।

यही नहीं, जाति को शामिल करने की अतिरिक्त आवश्यकता को देखते हुए इसमें और देरी हो सकती है। ऐसे में यह भी संभव है कि अब जनगणना शायद 2026 के बाद ही हो सके और संविधान के मुताबिक संसदीय सीटों के नए परिसीमन का आधार बने। ऐसे में इसके परिणाम देश में सामाजिक विभाजन को बढ़ाने वाले साबित हो सकते हैं और उनका बहुत सर्तकता के साथ प्रबंधन करना होगा। दक्षिण भारत के राज्यों ने भी नियमित रूप से यह चिंता जताई है कि लोक सभा में उनकी हिस्सेदारी कम की जा सकती है।

यह संभव है कि कुछ राजनीतिक दल विधायिका में भी जाति आधारित आरक्षण की मांग करें। एक स्तर पर जातीय आंकड़े संग्रहीत करना तथा अन्य सामाजिक-आर्थिक आंकड़े हासिल करना उपयोगी हो सकता है क्योंकि यह नीति निर्माण में मददगार होगा। बहरहाल, जोखिम यह है कि जाति के आंकड़ों का इस्तेमाल राजनीतिक कारणों से भी किया जा सकता है। हालांकि यह तो अभी भी हो रहा है। ताजा आंकड़े इस खाई को और बढ़ा सकते हैं। कम तादाद वाले जातीय समूहों को हाशिए पर धकेला जा सकता है।

जाति जनगणना के अन्य संभावित परिणामों में अधिक आरक्षण की मांग भी शामिल है। वास्तव में इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सुझाव दिया है कि आरक्षण पर सीमा समाप्त की जानी चाहिए और निजी शैक्षणिक संस्थानों में भी कोटा लागू किया जाना चाहिए। व्यापक स्तर पर देखें तो 2025 में जाति जनगणना का इतना महत्त्वपूर्ण होना बताता है कि हम अभी तक कुछ बुनियादी चीजों को दुरुस्त करने में विफल रहे हैं।

कई समूहों के लिए जाति जनगणना और आरक्षण में हिस्सेदारी आगे बढ़ने की एक उम्मीद है। कुछ समूह जहां इससे लाभान्वित होंगे वहीं राजनीतिक वर्ग के लिए अहम प्रश्न यह है कि क्या एक ही चीज को अलग ढंग से बांटने से देश बेहतर जगह बन सकेगा? और क्या यह सबसे वांछित हल है। असल मुद्दा है आम जनता के लिए शिक्षा की कम गुणवत्ता और आर्थिक अवसरों की कमी। जब तक इन मुद्दों को हल नहीं किया जाएगा, जाति जनगणना और आरक्षण का संभावित पुनर्संयोजन देश को बहुत आगे नहीं ले जा पाएगा।

First Published : May 1, 2025 | 11:45 PM IST