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दोधारी तलवार: लड़ाकू विमानों का बेड़ा तैयार करने की जद्दोजहद

वायु सेना लड़ाकू विमानों के बजाय सॉफ्टवयेर, डेटा और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर ध्यान केंद्रित करने में संघर्ष कर रही है।

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अजय शुक्ला   
Last Updated- December 14, 2023 | 11:14 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने स्वदेशी तेजस मार्क 1 लड़ाकू विमान पर उड़ान भरी। रक्षा मंत्रालय कह चुका है कि वायु सेना के लिए लड़ाकू विमानों की कमी ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत स्वदेशी विमानों से पूरी की जाएगी। इसके बावजूद यह लगता नहीं कि निकट भविष्य में वायु सेना के विमानों के बेड़े मौजूदा 30 से बढ़कर 42 तक पहुंचने वाले हैं।

रक्षा मंत्रालय के योजनाकारों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान के खतरे से निपटने के लिए कम से कम 42 विमान बेड़े आवश्यक हैं। हर बेड़े में 21 विमान होते हैं और वायु सेना के पास 250 से अधिक विमानों की कमी है। नौसेना के पास भी 50 से अधिक लड़ाकू विमानों की कमी है यानी कुल मिलाकर 300 विमानों की कमी।

ये कमियां वायु सेना की युद्धक क्षमता पर बुरा असर डालती हैं। इसमें हवाई रक्षा या राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र की रक्षा के लिए शत्रु के हवाई क्षेत्र और रडार प्रतिष्ठानों को क्षति पहुंचाना शामिल है। ऐसा करके शत्रु की वायु सेना को हम अपने हवाई क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने से रोक सकते हैं।

इसके अलावा यह कमी शत्रु की सड़क और रेल संरचना, गोला बारूद तथा ईंधन डिपो एवं सैन्य मुख्यालयों पर हमला करने की हमारी क्षमता पर भी असर डालेगी। इसी तरह युद्ध क्षेत्र में हस्तक्षेप करने या उसके आसपास दुश्मन के मुख्यालयों, लॉजिस्टिक्स ठिकानों और तोपखानों को नुकसान पहुंचाने की हमारी क्षमता पर भी असर होगा। सबसे नुकसानदेह होगा हमारी लड़ाकू हवाई समर्थन क्षमता को नुकसान यानी जमीन पर लड़ने वाली सेना को वायु सेना की मदद न मिल पाना।

क्षमता में यह कमी दशकों के दौरान उत्पन्न हुई है। स्वदेशी तेजस हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) के विकास में देरी के बाद वायु सेना ने 2007 में 126 मझोले बहु उपयोगी लड़ाकू विमानों (एमएमआरसीए) की निविदा आमंत्रित की। दुनिया के शीर्ष छह लड़ाकू विमान निर्माताओं ने इसमें रुचि दिखाई। इनमें चार दोहरे इंजन वाले लड़ाकू विमान निर्माता शामिल थे। बोइंग ने एफ/ए 18ई/एफ सुपर हॉर्नेट की पेशकश की थी।

रशियन एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन ने मिग-35 की, यूरोफाइटर जीएमबीएच ने टाइफून की और दसॉ ने राफेल विमान की पेशकश की थी। इसके अलावा दो एक इंजन वाले विमानों की पेशकश भी थी: लॉकहीड मार्टिन का एफ-21 और साब का नया ग्रिपेन ई। यह निविदा जून 2016 में 36 राफेल विमानों के सरकारों के बीच के अनुबंध में बदल गई। इस समय वायु सेना को इनकी आपूर्ति की जा रही है।

इस आधे-अधूरे उपाय के नाकाम हो जाने के बाद वायु सेना ने 2019 में 110 लड़ाकू विमानों की एक नई निविदा जारी की। 2007 की निरस्त निविदा में भाग लेने वाले सभी छह विमान निर्माताओं के बेहतर एमएमआरसीए की पेशकश करने का अनुमान है। दो अन्य लड़ाकू विमानों- बोइंग के एफ-15 ईएक्स ईगल-2 और रूस के सुखोई-35 भी मौजूदा निविदा में नजर आ सकते हैं। इन बड़े दो इंजन वाले लड़ाकू विमानों की भागीदारी से नए अनुबंध की लागत 15-20 अरब डॉलर तक बढ़ सकती है।

साथ ही इससे एक नए तरह के लड़ाकू विमान वायु सेना में शामिल हो सकते हैं। इससे इन्वेंटरी का प्रबंधन करना और मुश्किल हो जाएगा। वायु सेना प्रमुख ने गत वर्ष चेतावनी दी थी कि वायु सेना पहले ही कई तरह के विमान उड़ा रही है जो कई देशों में बने हैं। एक नया एमआरसीए सातवीं तरह का विमान होगा।

इस बीच वायु सेना लड़ाकू विमानों के बजाय सॉफ्टवयेर, डेटा और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर ध्यान केंद्रित करने में संघर्ष कर रही है। अजरबैजान-आर्मिनिया, रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास की तीन हालिया लड़ाइयों से सबक लेकर वायु सेना के योजनाकार इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि भविष्य की लड़ाइयां वही जीतेगा जो नेटवर्क का सुरक्षित और मजबूत बने रहना सुनिश्चित कर सकेगा और साथ ही शत्रु के नेटवर्क को निरंतर बाधित कर सकेगा।

इसके लिए हमें पूरी आर्थिक, सूचना और तकनीकी क्षमता के साथ शत्रु का मुकाबला करना होगा। अमेरिकी वायु सेना के रणनीतिक लड़ाकू सिद्धांत के अनुरूप वायु सेना अपने ओओडीए लूप को कम करना चाह रही है। ओओडीए का अर्थ है ऑब्जर्व-ओरिएंट-डिसाइड-ऐक्ट यानी सेंसर द्वारा शत्रु अवधि। वायु सेना चीन से उभरने वाले संभावित हमलों से निपटने के लिए इसका प्रयोग करेगी।

इसमें हाइपरसोनिक, दोबारा हमला करने में सक्षम, लंबी दूरी की मिसाइल और उन्नत विमान शामिल हैं जो कम ऊंचाई पर उड़ रहे हमारे जंगी विमानों को दूर से पहचान सकते हैं। उसके लिए नए दौर के वायु सेना विमानों को लंबी दूरी की तेज मिसाइलों, रडारों को तेज प्रक्रिया और बेहतर डेटा लिंक क्षमताओं से लैस करना होगा ताकि वे हवाई लड़ाई में उन्नत लड़ाई का मुकाबला कर सकें। वायु सेना को निरंतर अपनी लड़ाकू क्षमता सुधारनी होगी।

नौसेना भी बेड़े के डिजाइन में एक अहम तत्त्व से रूबरू है और वह है लड़ाकू विमानों के प्रकार को कम करना। गत जुलाई में विमान वाहक पोत के लिए बोइंग सुपर हॉर्नेट (जिसके साथ अमेरिकी नौसेना के संग परिचालन साझेदारी जैसा लाभ शामिल है) खरीदने के बजाय रक्षा मंत्रालय ने 26 राफेल विमान खरीदने के लिए फ्रांस के साथ एक सरकारी समझौता किया।

लब्बोलुआब यह कि नौसेना ने अमेरिकी साझेदारी की कीमत पर फ्रांस को चुना। यह भारतीय नौसेना के परिचालन और उपकरण संबंधी चयन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण बात है क्योंकि उसे जल्दी ही अपने बेड़े का नए सिरे से गठन करना होगा। खासतौर पर दूसरे स्वदेशी विमान वाहक और पनडुब्बी बेड़े के विस्तार को देखते हुए। पनडुब्बी बेड़े पारंपरिक और परमाणु क्षमता संपन्न हैं।

इन बातों के बीच अक्टूबर में वायु सेना दिवस पर वायु सेना प्रमुख का संदेश आश्वस्त करने वाला और आत्मविश्वास से भरा हुआ था, जिसमें उन्होंने अगले सात से आठ वर्षों में 2.5 से तीन लाख करोड़ रुपये के लड़ाकू विमानों की बात की। इसमें 1.75 लाख करोड़ रुपये मूल्य के हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के अधिक ऊंचाई पर उडान भरने में सक्षम प्रचंड हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, 180 तेजस मार्क1ए हल्के लड़ाकू विमान और 200 मार्क2 मझोले लड़ाकू विमान शामिल होंगे।

तेजस मार्क 1ए विकसित होने के करीब है और वह मिग-21 और मिग-27 की जगह लेगा। इस बीच बड़ा और अधिक शक्तिशाली तेजस मार्क2 लड़ाकू विमान जिसके 2030 तक सेवा में आने की उम्मीद है, वह मिराज 2000 और जगुआर लड़ाकू विमानों की छह टुकड़ियों की जगह लेगा। यूक्रेन-रूस युद्ध में ड्रोन के इस्तेमाल से संकेत लेते हुए अब मानवरहित यान भी वायु सेना की योजना का हिस्सा हैं।

इसी तरह हाइपरसोनिक मिसाइलों से निपटने के उपाय भी तलाश किए जा रहे हैं। वायु सेना की संरचना में एक सकारात्मक कारक स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के विकास को स्वीकृति भी है।

First Published : December 14, 2023 | 10:50 PM IST