भारत में एथनॉल के इस्तेमाल से जुड़ी प्रगति का डंका बजने के आसार नजर आ रहे हैं। एथनॉल की बढ़ती मांग से एक ओर गन्ना किसानों को फायदा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर सरकार के लिए भी आयात पर खर्च कम होगा। पर्यावरणविद भी इससे खुश हैं क्योंकि वाहनों में ईंधन के साथ एथनॉल के इस्तेमाल से प्रदूषण नियंत्रण में कमी आएगी।
इस साल अप्रैल से कार शोरूमों को E20 दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। इसका आशय यह हुआ कि जब कभी भी पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा 20 प्रतिशत पहुंच जाएगी, वैसे ही वाहनों के लिए तकनीकी बदलाव के लिए तैयार करना होगा। जैव-ईंधन समय सारिणी पर राष्ट्रीय नीति के अनुसार भारत पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य 2025 तक हासिल कर लेगा।
इस साल भारत 10 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य पूरा कर चुका है। ऐसा लग रहा है कि 25 प्रतिशत का लक्ष्य भारत जल्द ही प्राप्त कर सकता है। इस समय भारत एथनॉल का उत्पादन करने वाला दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है। अमेरिका, ब्राजील, यूरोपीय संघ और चीन ही इस लिहाज से भारत से आगे हैं। चूंकि, एथनॉल रबर वाले हिस्सों को जल्दी नुकसान पहुंचाता है इसलिए वाहन विनिर्माताओं को सबसे पहले इन हिस्सों को सुरक्षित आवरण से ढंकना होगा।
भारत में ब्राजील के राजदूत आंद्रे अरान्हा कोरिया डो लागो ने कहा, ‘ब्राजील में हमने दुनिया के अग्रणी कार निर्माताओं को बुलाया और वाहनों को नुकसान पहुंचने की समस्या दूर कर दी। मुझे लगता है कि भारत भी वाहनों में यह समस्या दूर करने में सक्षम होगा।‘ लागो ने इस महीने नई दिल्ली में अनंत सेंटर द्वारा आयोजित ‘फ्यूल्स ऑफ द फ्यूचर’ कार्यक्रम में ये बातें कहीं। ब्राजील 2015 से पेट्रोल में 25 प्रतिशत और इससे अधिक एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य पूरा करता आ रहा है।
हालांकि यह सवाल भी उठ रहा है कि भारत किस सीमा तक गन्ना उत्पादन बढ़ा पाएगा क्योंकि इस फसल के लिए काफी पानी की आवश्यकता होती है। देश के कई हिस्सों में जल संकट बढ़ता ही जा रहा है। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान इसलिए गन्ना की खेती कर रहे है क्योंकि उन्हें सरकार एक निश्चित कीमत अदा करती है।
भुगतान में देरी और सरकारी विभागों में होने वाले झमेलों के बावजूद गन्ना किसानों के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) और चीनी मिलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण गन्ना की फसल का रकबा पहले की तुलना में बढ़ गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार चालू गन्ना सत्र (2022-23) में भारत ने चीनी उत्पादन में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया है। इसके साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक देश बन गया है।
भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के पूर्व महानिदेशक अविनाश वर्मा कहते हैं, ‘उचित एवं लाभकारी मूल्य का आश्वासन मिलने से चीनी कंपनियों को एथनॉल उत्पादन पर आने वाली लागत में उतार-चढ़ाव को चिंता नहीं सताती है। सरकार उचित एवं लाभकारी मूल्य को एथनॉल उत्पादन में कच्चे माल पर आने वाली लागत मानती है।’
इसका मतलब है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि उत्पादन स्वरूप के लिए किसी तरह का जोखिम पैदा नहीं हो। भारतीय प्रारूप का उद्देश्य एथनॉल का मूल्य नियंत्रित करना है।
यह नीति अब तक कारगर रही है। राज्यवार आंकड़ों के अनुसार गन्ना सत्र 2021-22 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान करीब 35 लाख टन गन्ना उत्पादन के लिए इस्तेमाल होना अनुमानित है। 2025-26 तक यह आंकड़ा बढ़कर 60 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है।
आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति का मानना है कि एथनॉल के लिए इतनी मात्रा में गन्ना अलग रखने से अत्यधिक गन्ना उत्पादन की समस्या दूर हो जाएगी और किसानों को भुगतान में देरी की समस्या भी नहीं रह जाएगी। चीनी के अलावा गन्ना के लिए एक तैयार बाजार होगा और तेल विपणन कंपनियां भी एथनॉल खरीदेंगी। इसे देखते हुए नकदी की समस्या से जूझ रहीं चीनी मिलें किसानों को अधिक इंतजार नहीं कराएंगी।
मक्के और टूटे चावल के लिए भी समान समर्थन मूल्य दिए जाने की योजना तैयार हो रही हैं। ये दोनों भी एथनॉल उत्पादन में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। वर्मा ने कहा कि अनाज आधारित डिस्टलरी को कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिमों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘तेल विपणन कंपनियों ने एथनॉल का मूल्य तय करने के लिए मक्के और टूटे चावल के लिए कम लागत मूल्य पर विचार कर रही हैं। वर्मा ने कहा कि बाजार में मक्के की कीमतें 25 प्रतिशत अधिक हैं इसलिए अनाज आधारित डिस्टलरी की तरफ से इन दोनों फसलों से एथनॉल उत्पादन के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।‘
एथनॉल वाली फसलों का भंडार एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। कच्चा तेल की तरह गन्ना या मक्के का उत्पादन मौसम पर निर्भर करता है। हालांकि ब्राजील के राजदूत ने कहा कि अगर वाहन निर्माता कंपनियां फ्लेक्सी-फ्यूल डिजाइन अपनाएं तो यह समस्या भी दूर हो सकती है। फ्लेक्सी-फ्यूल डिजाइन में कार किसी भी अनुपात में पेट्रोल और तेल का इस्तेमाल कर सकती है।
एथनॉल तेल मिश्रण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा देती है। मगर एक सीमा के बाद कार अधिक तेल का इस्तेमाल कर सकती है। वाहन कंपनियों का परोक्ष रूप से कहना है कि इस समस्या से निपटने में लागत बढ़ जाएगी। मारुति सुजूकी ने कुछ दिनों पहले ही वैगनआर फ्लेक्सी फ्यूल मॉडल पेश किया है जो 85 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण पर चल सकती हैं। मगर यह कार 2025 से पहले बाजार में खरीदारी के लिए उपलब्ध नहीं हो पाएगी।
हालांकि, एथनॉल की मांग बढ़ने से इसका उत्पादन तो बढ़ेगा मगर इसके लिए भंडारण सुविधाओं का अभाव है। यह एक चुनौती है जिसका उपयुक्त समाधान दुनिया के देशों, खासकर एथनॉल उत्पादक देशों को खोजना होगा।