संवाद एवं सूचना-प्रौद्योगिकी पर गठित संसद की स्थायी समिति सोशल मीडिया कंपनियों पर प्रकाशित दुष्प्रचार, अपमानजक एवं आपत्तिजनक सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए ‘कड़े कानून’ लाए जाने की अनुशंसा कर सकती है। इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधयेक प्रस्तुत किया जा सकता है।
इस विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने सोमवार को आगामी विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों से पहले दुष्प्रचार रोकने के लिए किए गए उपायों पर सोशल मीडिया कंपनियों से सवाल पूछे।
सरकार में एक सूत्र के अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों यूट्यूब, एक्स, व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट और भारतीय ऐप कू, शेयरचैट और डेलीहंट के प्रतिनिधियों को अगले 10-15 दिनों में लिखित जवाब देने के लिए कहा गया है।
स्थायी समिति ने इन कंपनियों को कहा है कि वे अपने प्रतिनिधियों को मुंबई भेजें जहां वे कुछ खास बिंदुओं पर इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं संसद सदस्यों (इस समिति में शामिल) के साथ चर्चा करेंगे। मंत्रालय के अधिकारी इन कंपनियों को यह बताएंगे कि समिति के समक्ष उन्हें कैसी जानकारियां उपलब्ध करानी हैं।
इस बारे में एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पहले भी ऐसा देखा गया है कि डिटिजल प्लेटफॉर्म के माध्यम से भ्रामक खबरें एवं आपत्तिजनक सामग्री साझा की जाती रही हैं। इनसे दूसरे लोगों को वित्तीय नुकसान भी उठाने पड़े हैं। हाल के दिनों में इनसे व्यापक हिंसा भी हुई है।”
उन्होंने कहा, “आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से विक्रित तस्वीरों से हालात और बिगड़े हैं। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए सोशल मीडिया कंपनियों से आपत्तिजनक सामग्री नियंत्रित करने एवं संबंधित नियमों को लेकर उनकी जवाबदेही से संबंधित सवाल पूछे गए।’
ऐसी खबरें हैं कि सरकार डिजिटल इंडिया विधेयक (डीआईबी) का मसौदा तैयार कर रही है। यह विधेयक संसद में पारित होने सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की जगह लेगा। इससे जुड़ी खबरों के बीच स्थायी समिति ने सोशल मीडिया कंपनियों के प्रतिनिधियों को तलब किया है।
डीआईबी के शुरुआती मसौदे के अनुसार सरकार को नए कानून के अंतर्गत ऑनलाइन माध्यम में प्रकाशित सामग्री पर नजर रखने, इनमें हस्तक्षेप करने या इन्हें हटाने से जुड़े असीमित अधिकार मिल जाएंगे। इस कानून के तहत सरकार को यह तय करने का अधिकार भी मिल सकता है कि किसी श्रेणी के मध्यस्थ (सोशल मीडिया कंपनियां) को थर्ड पार्टी डिजिटल संवाद या डिजिटल रेकॉर्ड की जिम्मेदारी से बचाव का दावा करने का अधिकार मिलना चाहिए या नहीं।