इजरायल और ईरान में तनाव (Israel and Iran War) बढ़ने के बाद दोनों देशों का लंबे समय से चला आ रहा शत्रुतापूर्ण संबंध एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। वर्ष 1990 में पहले खाड़ी युद्ध में सद्दाम हुसैन के शासनकाल में इराक की सेना ने इजरायल पर स्कड मिसाइलों से हमला किया था। मगर कुछ दिन पहले इजरायल ने जिस बड़े हमले का सामना किया वह चौंकाने वाला था।
पिछले कुछ दशकों में इजरायल पर इतना भीषण हमला नहीं हुआ था। उसकी मिसाइल रक्षा प्रणाली ने ईरान द्वारा प्रक्षेपित 331 मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन मिसाइलों को नाकाम करने में इजरायल को अमेरिका और ब्रिटेन का पूरा सहयोग मिला।
महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ईरान को इजरायल पर इतना बड़ा हमला करने पर विवश क्यों होना पड़ा? इस घटना से कुछ सप्ताह पहले इजरायल ने दमिश्क में ईरान के दूतावास पर हवाई हमला किया था। इस हमले में ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प (आईआरजीसी) के दो शीर्ष कमांडर मारे गए थे। यह घटना ईरान और इजरायल के बीच ताजा तनाव का तात्कालिक कारण था।
ईरान ने इजरायल पर खैबर शेकन एवं एमाड बैलिस्टिक और पावेह क्रूज मिसाइलों से हमले किए थे। ईरान ने हमले में शहीद 131 और 136 ड्रोन का भी इस्तेमाल किया। रूस की सेना यूक्रेन में शहीद 136 यूएवी का इस्तेमाल कर रही है।
ईरान का तर्क है कि इजरायल ने उसके कूटनीतिक मिशन पर हमला कर सभी सीमाएं लांघ ली हैं। ईरान अपने कूटनीतिक मिशन को संप्रभु क्षेत्र मानता है। इजरायल पर ईरान का जवाबी हमला इस मायने में पूरी तरह जवाबी नहीं कहा जा सकता कि इजरायल ने पायलट चालित लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया था जबकि ईरान ने मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) और मिसाइलों से हमला किया था।
ईरान के पास मानव चालित हवाई मारक क्षमता की कमी है मगर उसके पास यूएवी, बैलिस्टिक एवं क्रूज मिसाइल जरूर हैं। इसी वजह से ईरान ने इजरायल पर इनका इस्तेमाल किया। ईरान ने जितनी बड़ी तादाद में मिसाइलों और ड्रोन का इस्तेमाल किया वह भी इजरायल के शुरुआती हमले के बराबर नहीं ठहरता। मगर ईरान का तर्क है कि उसके दूतावास पर हमले का जो जवाब दिया वह उपयुक्त और अपेक्षित था।
ईरान का हमला बहुत सफल नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके अधिक से अधिक पांच मिसाइल ही इजरायल के सुरक्षा तंत्र को भेद पाए। मगर इन बातों से इतर ईरान के नजरिये से यह पर्याप्त था क्योंकि उसने केवल मकसद से इस हमले को अंजाम दिया था। ईरान ने इजरायल को यह संदेश भेजने की कोशिश की कि उसे उसके अधिक महत्त्व एवं सामरिक रूप से संवेदनशील ठिकानों पर हमले करने से बचना चाहिए।
वास्तव में पांच बैलिस्टिक मिसाइल इजरायल का सुरक्षा चक्र भेदने में सक्षम थे और वे नेगेव क्षेत्र में नेवातिम एयरबेस तक पहुंच गए जिससे इसे मामूली नुकसान पहुंचा। इजरायल को चेतावनी देना ईरान का मुख्य मकसद था। मगर इन सब के बावजूद हम ईरान द्वारा किए गए मिसाइल हमले की ‘विफलता’ से क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? ऐसा हो सकता है कि ईरान का मिसाइल एवं ड्रोन हमला इसलिए असफल रहा कि यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया था।
ईरान ने पहले ही कह दिया था कि वह जवाबी कार्रवाई करेगा और सार्वजनिक तौर पर यह भी बता दिया कि वह किस तरह इस हमले को अंजाम दे सकता है। इस तरह, ईरान ने जान-बूझकर इजरायल और अमेरिका को पहले से सतर्क होने का मौका दे दिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि इजरायल और उसके सहयोगी देशों- अमेरिका और ब्रिटेन- को ईरान के मिसाइल एवं ड्रोन हमले से निपटने की तैयारी करने का पर्याप्त समय मिल गया। हमले को लेकर सभी बातें सार्वजनिक कर ईरान अपने धुर विरोधी को सुरक्षा इंतजाम करने का पर्याप्त समय दे रहा था और साथ ही यह भी सुनिश्चित कर रहा था कि उसे इजरायल एवं सहयोगी देशों से किसी बड़े हमले का सामना नहीं करना पड़े।
मगर तब भी जिस ताकत के साथ ईरान ने इजरायल पर मिसाइल छोड़े उसे ऐसा नहीं लगता कि यह महज रणनीतिक कदम तक सीमित रह सकता था। अगर ईरान की कुछ मिसाइलों से इजरायल में कोई बड़ा नुकसान हो जाता तो फिर तनाव अपने चरम पर पहुंच जाता।
ईरान ने जो किया उससे इतना तो साफ है कि उसने जोखिम उठाने का बड़ा साहस दिखाया है और ऐसा करने में उसने आत्मविश्वास का भी परिचय दिया है, जो पहले नहीं दिखा था। मगर तेहरान ने यह कहते हुए तनाव कम करने का इशारा भी दे दिया कि उसके हमले ने अपने उद्देश्य पूरा कर लिया है।
जो भी हो, इजरायल एवं उसकी सुरक्षा प्रणाली (एयर डिफेंस) कारगर रही और उसने ईरान से प्रक्षेपित 99 प्रतिशत मिसाइलों एवं ड्रोन को ऊपर में ही नष्ट कर दिया। इजरायल की बहु-स्तरीय एयर डिफेंस सिस्टम में एरो बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (बीएमडी) प्रणाली शामिल है जिसे उसने अमेरिका के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया है। बीएमडी लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को हवा में ही मार गिराने की क्षमता रखता है।
इजरायल के पास डेविड्स स्लिंग प्रणाली भी है जो मध्यम दूरी की मिसाइलों को लक्ष्य तक पहुंचने से पहले हवा में ही नष्ट कर देती है। इसके साथ ही अमेरिका का पैट्रियट बैटरी सिस्टम भी इजरायल की सुरक्षा को धार देती है। इजरायल आयरन डोम का भी इस्तेमाल करता है जो छोटी दूरी के रॉकेट को लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही खत्म कर देता है।
इजरायल के आयरन बीम सिस्टम ने भी ईरान से दागी गई मिसाइलों को नाकाम करने में भूमिका निभाई होगी। यह इजरायल के पास मौजूद अन्य प्रणालियों से थोड़ी सस्ती मानी जाती है मगर इसे लेकर विरोधाभासी खबरें आ रही हैं कि यह उपयोग में है या नहीं।
इजरायल पर ईरान के मिसाइल बरसने के बाद पश्चिम एशिया में रणनीतिक स्थिरता को लेकर जगी उम्मीदों पर फिर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। अब जो नई स्थिति पैदा हुई है वह ईरान और इजरायल के बीच टकराव के नया रूप लेने का स्पष्ट संकेत दे रहा है।
ईरान और इजरायल दोनों एक दूसरे के खिलाफ साइबरस्पेस (डिजिटल वातावरण) सहित दूसरे मोर्चों पर हमले कर सकते हैं। इन दोनों देशों के कटु संबंधों का असर इस क्षेत्र के दूसरे देशों पर भी होगा। परमाणु हथियारों की होड़ शुरू होने का खतरा भी मंडराने लगा है।
(हर्ष पंत और कार्तिक बोम्माकांति ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में क्रमशः उपाध्यक्ष, अध्ययन एवं विदेश नीति और सीनियर फेलो, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा हैं)