आज का अखबार

जलवायु अनुकूल विद्युत रणनीति का निर्माण

भारत में आज सबसे सस्ती बिजली 1964 में बने तारापुर नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र से बन रही है, जिसकी लागत 0.92 पैसे प्रति यूनिट है।

Published by
नितिन देसाई   
Last Updated- December 18, 2023 | 11:08 PM IST

जलवायु परिवर्तन से निपटने की भारत की रणनीति में नाभिकीय ऊर्जा का विकास अत्यंत अहम तत्त्व होना चाहिए। बता रहे हैं नितिन देसाई

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की 28वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप28) हाल ही में संपन्न हुई है। इस वार्ता में विवाद का मुख्य विषय था जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी।

सम्मेलन के अंतिम वक्तव्य में कहा गया है कि विभिन्न देशों को ऐसे प्रयास करने चाहिए कि ‘ऊर्जा व्यवस्था में जीवाश्म ईंधन से व्यवस्थित और समतापूर्ण तरीके से दूरी बनाई जाए।’ इसमें यह प्रतिबद्धता भी शामिल है कि ‘गैर किफायती ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से यथासंभव शीघ्र समाप्त किया जाएगा।’

यह पहला अवसर है जब कोयला, तेल और गैस आदि सभी जीवाश्म ईंधनों के भविष्य को लेकर कॉप में स्पष्ट बात की गई है। इससे कोयला उत्पादित बिजली से लेकर पेट्रोलियम पर निर्भर परिवहन तक के व्यापक क्षेत्र पर जोर पड़ेगा।

बहरहाल, मुख्य बदलाव बिजली से चलने वाले वाहनों के रूप में हैं जिनकी कार्बन छाप इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस प्रकार उत्पादित बिजली प्रयोग में लाते हैं। ऐसे में विद्युत ऊर्जा व्यवस्था समझौते का सबसे अहम पहलू है।

विद्युत क्षेत्र में एक अन्य प्रमुख कारक जिस पर ध्यान देने की जरूरत है, वह यह है कि सभी आकलन दिखाते हैं कि वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, इसके अवांछित परिणाम जल्दी नजर आएंगे।

पेरिस समझौते में वैश्विक तापवृद्धि को औद्योगिक युग के पहले के स्तर के 1.50 से दो डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने की बात शामिल थी, जिसका मान रखना शायद मुश्किल हो। यानी 2030 और 2050 के उत्सर्जन लक्ष्यों को संशोधित करना होगा।

सौर और पवन ऊर्जा आधारित नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति भी बिजली क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने की एक अहम रणनीति है। बहरहाल इससे बुनियादी बिजली आपूर्ति के क्षेत्र में दिक्कत पैदा होगी क्योंकि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा हमेशा उपलब्ध नहीं होती।

भारत में 2022-23 के दौरान एक किलोवॉट सौर ऊर्जा से पूरे वर्ष के दौरान 1,517 किलोवॉट प्रतिघंटा (केडब्ल्यूएच) बिजली की आपूर्ति प्राप्त हुई, जबकि पवन ऊर्जा ने करीब 1,676 केडब्ल्यूएच बिजली आपूर्ति की। यह एक किलोवॉट कोयला आधारित बिजली से मिलने वाली 5,620 केडब्ल्यूएच तथा नाभिकीय ऊर्जा से हासिल 6,755 केडब्ल्यूएच बिजली से काफी कम है। बिजली भंडारण में सुधार के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति के टिकाऊ होने पर संदेह है।

चूंकि कोयला आधारित बिजली को आज नहीं तो कल त्यागना ही होगा, इसलिए वैकल्पिक बिजली आपूर्ति को खंगालने की इच्छा होनी चाहिए जो कार्बन मुक्त हो। मैं मानता हूं कि नाभिकीय ऊर्जा विकास इस रणनीति का अहम घटक होगा। हकीकत में कॉप28 बैठक में एक अहम बात थी अमेरिका के नेतृत्व में 21 देशों की यह घोषणा कि 2050 तक नाभिकीय ऊर्जा में तीन गुना इजाफा किया जाएगा।

आश्चर्य की बात यह है कि भारत इस घोषणा में शामिल नहीं हुआ, हालांकि सरकार एक साल पहले ही अपनी योजना में कह चुकी है कि वह 7,480 मेगावॉट की मौजूदा नाभिकीय ऊर्जा क्षमता को 2030 तक तीन गुना बढ़ाकर 20,000 मेगावॉट करना चाहती है। रिएक्टर बन रहे हैं और नए रिएक्टरों की योजना है। ऐसे में हमारी नाभिकीय ऊर्जा क्षमता बढ़ेगी, भले ही वह तय लक्ष्य हासिल न कर सके।

अप्रैल 2023 की एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक यह 15,480 मेगावॉट हो सकती है। हालांकि यह रिपोर्ट कुछ पूर्वग्रहों के साथ 12,080 मेगावॉट का अनुमान भी पेश करती है। भारत में बिजली की मांग केवल आर्थिक वृद्धि के चलते नहीं है बल्कि परिवहन तथा अन्य क्षेत्रों में भी बिजली जीवाश्म ईंधन का स्थान ले रही है।

हरित हाइड्रोजन को जीवाश्म ईंधन का स्थानापन्न बनाया जा रहा है और इससे भी मांग बढ़ेगी। 2022-23 में भारत में बिजली की मांग 1.5 लाख करोड़ यूनिट थी और 2050 तक इसके बढ़कर 6 लाख करोड़ यूनिट होने का अनुमान है।

तीन बदलाव हैं जो नाभिकीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। पहला है भारत की पहल वाला नाभिकीय समझौता जिसने विदेशी नाभिकीय प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्ताओं के साथ जुड़ाव के लिए खोल दिया है। हालांकि संसद की ओर से पारित आपूर्तिकर्ता दायित्व कानून इसके मार्ग की बाधा है।

दूसरी, न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) और एनटीपीसी के बीच साझेदारी है। यह समय पर परियोजना क्रियान्वयन के क्षेत्र में परमाणु संयंत्र निर्माण में एनटीपीसी बेहतर क्षमता ला सकती है।

तेजी लाने वाला तीसरा कारक छोटे मॉड्युलर रिएक्टरों (एसएमआर) में बढ़ती हुई रुचि भी हो सकती है। ये 30 से 300 मेगावॉट क्षमता के छोटे रिएक्टर होते हैं, जो कारखानों में बनाने के बाद स्थापित किए जाते हैं।

एनटीपीसी बड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में एनपीसीआईएल के साथ सहयोग के अलावा एसएमआर को बंद कोयला संयंत्रों में स्थापित करने पर विचार कर रहा है जिससे 20 से 30 गीगावॉट की अतिरिक्त नाभिकीय क्षमता हासिल की जा सकेगी।

तीन ऐसी दलीलें हैं, जिनका इस्तेमाल नाभिकीय ऊर्जा पर भरोसे से जुड़े सवालों के जवाब में किया जा सकता है: नाभिकीय ऊर्जा की लागत, नाभिकीय ऊर्जा कचरे का निस्तारण और इन संयंत्रों के सुरक्षा जोखिम।

लागत की बात करें तो नाभिकीय ऊर्जा विभाग ने नवंबर 2023 में कहा था कि भारत में आज सबसे सस्ती बिजली 1964 में बने तारापुर नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र से बन रही है, जिसकी लागत 0.92 पैसे प्रति यूनिट है। ध्यान रहे कि हाल में स्थापित कुडनकुलम संयंत्र से भी बहुत प्रतिस्पर्धी कीमत पर बिजली मिल रही है।

कचरे के बारे में कहा जा रहा है कि भारत में नाभिकीय बिजली संयंत्रों से उत्पन्न कचरा बहुत कम है, क्योंकि हम बंद ईंधन चक्र का इस्तेमाल करते हैं, जहां पहले चरण के रिएक्टर के प्लूटोनियम का इस्तेमाल दूसरे चरण के फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में किया जाता है। इसके कचरे से तीसरे चरण का ईंधन बनाया जाएगा जो थोरियम पर आधारित होगा।

भारत में यह बहुत बड़ी मात्रा में है। परंतु यह तीन चरणों वाली नीति निजी क्षेत्र के लिए दायरा सीमित कर सकती है। चेर्नोबिल और फुकुशिमा संयंत्र हादसे बताते हैं कि नाभिकीय संयंत्रों की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है। भारत में भारी पानी के रिएक्टर जो तीन चरणों वाली रणनीति का हिस्सा हैं, वे सुरक्षित हैं। इतना ही नहीं, इन संयंत्रों की डिजाइन में अतिरेक शामिल है जो निवेश लागत बढ़ाता है, लेकिन सुरक्षा जोखिम कम करता है। फिर भी नाभिकीय संयंत्रों की जगह तय करने में जोखिम कारक का ध्यान रखना होगा।

भारत को अपने जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम में नाभिकीय ऊर्जा विकास पर भी उतना ही जोर देना चाहिए जितना कि वह नवीकरणीय ऊर्जा पर दे रहा है। नवीकरणीय ऊर्जा के साथ नाभिकीय ऊर्जा की इस नीति में सार्वजनिक और निजी निवेश के अलग तरह के मिश्रण की आवश्यकता होगी।

एक पारेषण व्यवस्था की भी आवश्यकता होगी जो केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत दोनों तरह के उत्पादन संयंत्रों का ध्यान रख सके। साथ ही एक ऐसे विपणन तंत्र की जो निजी और सार्वजनिक आपूर्तिकर्ताओं के साथ एक समान हो।

कॉप28 में 12 वर्ष की एक भारतीय बच्ची मंच पर पहुंची और उसने एक बोर्ड लहराया जिस पर लिखा था, ‘जीवाश्म ईंधन का अंत कीजिए। हमारे ग्रह और हमारे भविष्य को बचाइए।’ नाभिकीय ऊर्जा को बढ़ावा देना इसमें मददगार होगा।

First Published : December 18, 2023 | 10:31 PM IST