विश्व आर्थिक मंच (WEF) के अध्ययन से पता चला है कि इस साल दुनिया भर की साइबर सुरक्षा में बढ़ती साइबर असमानता और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी उभरती प्रौद्योगिकियां बड़ा खतरा साबित होंगी।
साइबर खतरों का सामना कर बच जाने वाले संगठनों और उनके खिलाफ जूझने वाले संगठनों के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है जो 2024 के लिए बड़ा जोखिम बनकर उभरी है।
साइबर खतरों से जूझने की कम से कम जरूरी क्षमता रखने वाले संगठनों की संख्या पिछले साल के मुकाबले 30 फीसदी कम रही। बड़े संगठनों ने साइबर खतरों से मुकाबले की अपनी क्षमता काफी बढ़ाई है मगर छोटी और मझोली कंपनियों की क्षमता बहुत घटी है।
डब्ल्यूईएफ की गुरुवार को जारी ग्लोबल साइबरसिक्योरिटी आउटलुक 2024 रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दुनिया भर में साइबर असामनता काफी बढ़ी है और 90 फीसदी अधिकारी चेता रहे हैं कि इससे निपटने के लिए तुरंत काम करना होगा।’
एआई और जेनरेटिव एआई का सबसे बड़ा खतरा चुनावों के लिए है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले साल तक दुनिया के 45 देशों में चुनाव होने हैं। विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधे से ज्यादा हिस्सा इन्हीं देशों में है। रिपोर्ट के मुताबिक एआई में हो रही प्रगति डीपफेक या गलत सूचना के मुकाबले बहुत ज्यादा खतरनाक है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जेनरेटिव एआई जैसी नई तकनीकों का प्रसार और साइबर जोखिम पैदा करने वालों के द्वारा उनका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह से चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता बचाए रखना और भी जरूरी हो गया है।’
साथ ही साइबर कौशल और प्रतिभा की कमी बहुत तेजी से बढ़ रही है। केवल 15 फीसदी संगठनों को उम्मीद है कि अगले दो साल में साइबर कौशल और शिक्षा में बड़ा इजाफा होगा।
रिपोर्ट के अनुसार उद्योग के विशेषज्ञों को इस बात की उम्मीद बहुत कम है कि साइबर सुरक्षा के मामले में जेनरेटिव एआई कोई सकारात्मक असर डालेगी। रिपोर्ट में कहा गया कि दस में से बमुश्किल एक प्रतिभागी को लगता है कि अगले दो साल में जेनरेटिव एआई हमला करने वालों के मुकाबले साइबर सुरक्षा करने वालों को ज्यादा मदद करेगी। सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन आधे विशेषज्ञ मान रहे थे कि अगले दो वर्षों में साइबर सुरक्षा पर जेनरेटिव एआई का सबसे ज्यादा प्रभाव होगा।
विश्व आर्थिक मंच स्विट्जरलैंड के प्रबंध निदेशक जेरेमी जर्गेंस ने कहा, ‘जैसे-जैसे साइबर दुनिया नई तकनीकों और बदलते हुए भूराजनीतिक तथा आर्थिक रुझानों के हिसाब से बदल रही है वैसे-वैसे ही हमारी डिजिटल दुनिया के लिए खतरनाक चुनौतियां भी बढ़ रही हैं।’