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राजकोषीय और चुनावी दोनों नजरियों से बेहतर है बजट

Published by
ए के भट्टाचार्य
Last Updated- February 03, 2023 | 10:16 AM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पांचवें बजट में एक आंकड़ा जिस पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए था वह है 2023-24 के लिए प्रस्तुत राजस्व घाटे का आंकड़ा। राजस्व घाटे को वर्ष 2021-22 के जीडीपी के 4.4 फीसदी से कम करके 2022-23 में 4.1 फीसदी पर लाने के बाद अब उन्होंने 2023-24 में इसे अत्यधिक कम करके 2.9 फीसदी तक लाने का प्रस्ताव रखा है। महामारी वाले वर्ष 2021-22 को छोड़ दिया जाए, तो 1.2 फीसदी अंक की यह गिरावट 10 वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट होगी।

सरकार का राजस्व घाटा दर्शाता है कि उसकी कुल राजस्व प्राप्तियों (कर एवं गैर कर) तथा उसके राजस्व व्यय में कितना अंतर है। 2022-23 में वित्त मंत्री ने उम्मीद की है कि उनकी विशुद्ध राजस्व प्राप्तियां 8 फीसदी बढ़ेंगी जबकि उनका राजस्व व्यय भी समान गति से बढ़ेगा। परंतु 2023-24 के लिए उन्होंने शुद्ध राजस्व प्राप्तियों में 12 फीसदी के इजाफे का अनुमान जताया है लेकिन उम्मीद है कि पूंजीगत व्यय में केवल 1.2 फीसदी की वृद्धि के साथ लगाम लगाई जा सकेगी। इस प्रकार राजस्व घाटे को 2023-24 में जीडीपी के 2.9 फीसदी तक सीमित रखा जा सकेगा।

अगर अगले वर्ष के राजकोषीय घाटा लक्ष्य में ऐसी ही तीव्र कमी नहीं आई (यह जीडीपी के 5.9 फीसदी के बराबर रहा जबकि 2022-23 में यह 6.4 फीसदी था और कहा गया था कि 2025-26 में इसे कम करके 4.5 फीसदी तक लाया जाएगा।) तो ऐसा इसलिए हुआ कि सरकार ने 2023-24 में पूंजीगत व्यय आवंटन 37 फीसदी बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये कर दिया था यानी जीडीपी के 3 फीसदी के बराबर। स्पष्ट है कि वित्त मंत्री ने वृद्धि को बरकरार रखने के लिए पूंजीगत व्यय पर भरोसा किया। 2023-24 की आर्थिक समीक्षा में वृद्धि दर के 6.5 फीसदी रहने की बात कही गई है।

सीतारमण पूंजीगत व्यय आवंटन में कमी कर सकती थीं और अगले वर्ष के लिए और कम राजकोषीय घाटा लक्ष्य प्रदर्शित कर सकती थीं। परंतु उन्होंने शायद ऐसा इसलिए नहीं किया कि उनके आकलन में महामारी के बाद निजी क्षेत्र के निवेश में अभी भी पूरा सुधार नहीं हुआ है और केंद्र सरकार को इसकी भरपाई के लिए अधिक पूंजीगत आवंटन करने की आवश्यकता है। उन्होंने सोच समझकर ऐसा किया होगा क्योंकि वे इस बात को लेकर भी सचेत होंगी कि महामारी के पहले के वर्षों की तुलना में अधिक राजकोषीय घाटे का प्रबंधन पूरी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ेगा।

वित्त मंत्री ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट तैयार करते हुए एक और जोखिम लिया। राजस्व व्यय में वृद्धि को 1.2 फीसदी तक सीमित रखना कठिन काम होगा। खासकर इसलिए कि इस साल नौ विधानसभा चुनाव होने हैं और मई 2024 में आम चुनाव भी होने हैं। गत वर्ष का बजट पेश करते समय वित्त मंत्री ने उससे पिछले वर्ष की तुलना में राजकोषीय व्यय में एक फीसदी से कम की वृद्धि का अनुमान जताया था। परंतु अब संशोधित अनुमान बताते हैं कि वर्ष का राजस्व व्यय करीब 8 फीसदी बढ़ा।

ऐसे में 2023-24 में राजस्व व्यय को नियंत्रण में रखने की वित्त मंत्री की योजना महत्त्वाकांक्षी है। जल जीवन मिशन के अलावा अन्य प्रमुख योजनाओं मसलन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम, प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान आदि के लिए बजट में मामूली इजाफा किया गया है। इसी प्रकार प्रमुख सब्सिडी पर व्यय में 80 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है। माना जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उर्वरक की कम कीमत और नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण योजना के दिसंबर 2023 तक समाप्त होने के कारण यह लक्ष्य हासिल हो सकेगा। अगर इनमें से कोई अनुमान गलत साबित हुआ तो राजस्व व्यय में तेजी से इजाफा होगा।

सीतारमण का पांचवां बजट तीन अन्य पहलों की वजह से अलग होगा। पहली वजह, उन्होंने व्यक्तिगत आयकरदाताओं के लिए एक नई रियायत रहित व्यवस्था पेश की है जो व्यक्तिगत आय कर व्यवस्था को बेहतर बनाएगी। यह व्यवस्था कई बचत और निवेश योजनाओं के जरिये रियायतें हासिल करने का प्रावधान करती है। अगर नई कर व्यवस्था गति पकड़ती है तो यह सरकार के लिए बेहतर होगा। ध्यान रहे कि वित्त मंत्री के व्यक्तिगत आय कर संग्रह के आंकड़े यह संकेत नहीं देते कि राजस्व में कोई खास हानि होने जा रही है। ऐसे में संभव है कि व्यक्तिगत आयकरदाताओं के लिए बिना रियायत वाली व्यवस्था बिना राजकोष को बड़ा झटका दिए लागू हो जाए।

दूसरा, सबसे ऊपरी स्लैब के आयकरदाताओं को दिए जाने वाले कर लाभ का अर्थ होगा उनकी कर दर का 42.7 फीसदी से कम होकर 39 फीसदी होना। लेकिन यह बात ध्यान देने वाली है कि इस कदम के चलते होने वाली राजस्व हानि का पूरा बोझ केंद्र सरकार उठाएगी क्योंकि कर अधिभार को 37 से 25 फीसदी करके राहत दी जा रही है। ऐसे में राज्यों के पास इस कर राहत को लेकर कोई शिकायत करने का अवसर ही नहीं है। उन्हें तो उनके लिए किए जा रहे जा रहे पूंजीगत व्यय आवंटन का भी स्वागत करना चाहिए जिसे 2022-23 के एक लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1.3 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।

आखिर में सीमा शुल्क पैकेज की बात करें तो वहां विभिन्न वस्तुओं को लेकर टैरिफ में मिलाजुला बदलाव किया गया है लेकिन बजट में ऐसा नहीं कहा गया कि ऐसा करके समान माहौल मुहैया कराया जा रहा है। निश्चित रूप से सीमा शुल्क दरों की तादाद 21 से घटाकर 13 करना एक ऐसा कदम है जो चीजों को सुसंगत और सहज बनाने की दिशा में है। सीमा शुल्क में कुछ इजाफा इसलिए किया गया था ताकि घरेलू मूल्यवर्द्धन को प्रोत्साहन दिया जा सके लेकिन मोबाइल फोन निर्माताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कई वस्तुओं तथा समुद्री उत्पादों का निर्यात करने वालों के लिए दरों में कमी की गई।

अंत में, क्या सीतारमण के बजट को चुनाव के पहले की कवायद कहा जा सकता है? उच्च आय वालों को आयकर में राहत तथा वैकल्पिक कर व्यवस्था ने यकीनन मध्य वर्ग के भीतर खुशी का अहसास पैदा किया होगा। बहरहाल, ऐसी राहत मुहैया कराने के साथ ही वित्त मंत्री ने राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की अपनी प्रतिबद्धता को भी ध्यान में रखा, हालांकि घाटे में कमी की गति इससे तेज भी हो सकती थी।

First Published : February 3, 2023 | 10:10 AM IST