क्या आप देश की सबसे लचीली निवेश योजना के बारे में जानते हैं? अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं कि यह योजना 12 फीसदी का रिटर्न देती है। प्रतिबद्धता अवधि के बाद यहां से फंड कभी भी निकाला जा सकता है। मासिक नकदी प्रवाह में कोई अस्थिरता नहीं होती है और कोई छिपा हुआ शुल्क भी नहीं होता।
छह महीने के लिए ब्याज दर करीब 9 फीसदी तक होती है, 12 महीने के लिए यह बढ़कर 10 फीसदी, 24 महीने के लिए 11 फीसदी और 36 महीनों के लिए 12 फीसदी तक हो जाती है। आप मुद्रास्फीति को पछाड़ सकते हैं और रोज अपने पैसे को बढ़ते हुए देख सकते हैं।
क्या यह किसी बैंक के सावधि जमा (FD) का विज्ञापन है? म्युचुअल फंड का? जमा लेने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) का? नहीं यह ऐसी एनबीएफसी का विज्ञापन है जिसके पास पी2पी (पियर टु पियर लेंडिंग) का लाइसेंस है।
पी2पी एक ऑनलाइन बाजार या ऋण देने वाला प्लेटफॉर्म है जो लोगों से पैसे लेकर उसे अन्य लोगों तथा सूक्ष्म एवं लघु उपक्रमों को उधार देता है। ऐसे ऋण को जोखिम से बचाव उपलब्ध नहीं होता है।
मार्च 2016 में रिजर्व बैंक ने पी2पी ऋण को लेकर अंशधारकों के बीच चर्चा के लिए पहला मसौदा पेश किया। इसके लाइसेंसिंग मानकों को अक्टूबर 2017 में अंतिम रूप दिया गया। इसमें पी2पी के संचालन के लिए उपयुक्त पाए जाने के अलावा दो करोड़ रुपये के फंड होने की अनिवार्यता थी।
रिजर्व बैंक ने करीब अब तक 25 लाइसेंस जारी किए हैं लेकिन सभी सक्रिय नहीं हैं। विश्लेषकों का कहना है कि गत वर्ष इस उद्योग का वार्षिक ऋण वितरण करीब 12,000 करोड़ रुपये था।
शुरुआत में ऐसी फर्म 10 लाख रुपये तक का ऋण दे सकती थीं। दिसंबर 2019 में इस राशि को बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया। एक कर्जदाता इस राशि को पी2पी प्लेटफॉर्म्स पर कई कर्जदारों को दे सकता है।
हालांकि एक कर्जदार कुल मिलाकर 10 लाख रुपये से अधिक कर्ज नहीं ले सकता। अंत में, यह तय किया गया कि एक कर्जदार, एक कर्ज देने वाले से अधिकतम 50 लाख रुपये का कर्ज ले सकता है। कर्जदारों से 18 से 20 फीसदी या इससे अधिक ब्याज वसूला गया लेकिन अच्छी क्रेडिट रेटिंग वाले ग्राहकों के लिए ब्याज दर कम रही।
पी2पी फर्म पैसे कैसे कमाती है? यह कर्जदाता और कर्जदार दोनों से शुल्क लेती है। उसका कोई बहीखाता नहीं होता। उसका काम है कर्ज देने वाले को कर्ज चाहने वाले से मिलाना। यह जमा नहीं कर सकती है और न ही ऋण गारंटी की सुविधा दे सकती है। ऐसी फर्म कर्जदाताओं से हासिल फंड और कर्जदारों के पुनर्भुगतान को भी किसी वित्तीय योजना को बेचने में प्रयोग नहीं कर सकती है। ज्यादा से ज्यादा वह इसका इस्तेमाल दिए गए ऋण के बीमा कवर के रूप में कर सकती है। वह कर्जदाताओं को प्रतिफल की गारंटी भी नहीं दे सकती।
कर्जदाताओं को बेहतर प्रतिफल का लालच देने का काम कोई एक कंपनी नहीं कर रही है। कई कंपनियां इस फॉर्मूले को आजमा रही हैं। जब कोई लॉक इन अवधि नहीं होती यानी पैसा कभी भी निकाला जा सकता है तब ब्याज दर सबसे कम होती है। हकीकत में लॉक इन अवधि को समाप्त करने से कर्जदाता और कर्जदार के बीच का संबंध टूट जाता है। इससे बड़ा जोखिम उत्पन्न हो सकता है। मेरा मानना है कि कुछ म्युचुअल फंड वितरक भी तकरीबन तयशुदा प्रतिफल के साथ पी2पी योजनाएं बेच रहे हैं।
कर्जदारों द्वारा किसी भी समय पैसे निकालना इसलिए संभव होता है क्योंकि पी2पी फर्म अपनी ही बैलेंस शीट का इस्तेमाल करती है या अच्छे और बुरे कर्ज को नए कर्जदाता को स्थानांतरित करती है। फंसे कर्ज का ध्यान इस प्रकार रखा जाता है कि कर्जदाताओं की ओर से निरंतर पूंजी का आना जारी रहे। जब इस आवक में मंदी आएगी और निकासी बढ़ेगी तो क्या होगा? बाजार पर नजर रखने वाले कहते हैं कि कम से कम एक पी2पी एनबीएफसी ने कुछ हजार करोड़ रुपये का फंसा हुआ कर्ज एक परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनी को बेचा है।
अगर कर्जदार एक दूसरे से अलग हों और कर्ज की दरें भी सबके लिए समान नहीं हों तो सभी निवेशकों को एक समान प्रतिफल और तत्कालीन नकदीकरण कैसे हासिल होगा? दरअसल कुछ पी2पी प्लेटफॉर्म उधारी देने के लिए फंड का पूल तैयार कर रहे हैं। यहां वितरण के पहले कर्जदार और कर्जदाता के बीच कोई संबंध नहीं है जबकि इस कारोबारी मॉडल की वही पहचान है।
इस प्रक्रिया में क्या वे परिसंपत्ति-देनदारी के बीच विसंगति के बीज नहीं बो रहे हैं? कम से कम एक पी2पी कर्जदाता बहुत चतुराईपूर्वक अपनी परिसंपत्तियों और देनदारियों का प्रबंधन कर रही है और वह 10 फीसदी राशि अवितरित रख रही है। चूंकि ऋण कम अवधि के लिए दिए जाते हैं इसलिए हर वक्त ऋण पोर्टफोलियो का एक खास प्रतिशत वापस मिलता रहता है और समयपूर्व निकासी में सहायक होता है।
जाहिर है यह संस्था तय अवधि के जमा और प्रतिफल का प्रबंधन कर रही है बजाय कि कर्जदाताओं और कर्जदारों को मिलने का प्लेटफॉर्म मुहैया कराने के। जानकारी के लिए बता दें कि रिजर्व बैंक से जमा लेने का लाइसेंस पाने वाली एनबीएफसी भी एक साल से कम का जमा नहीं ले सकतीं।
किसी भी समय निकासी की सुविधा वाले फंड्स म्युचुअल फंड उद्योग के नकदीकृत फंड की तरह होते है। इन फंड को अल्पावधि के मुद्रा बाजार उपायों में निवेश किया जाता है और इनकी कोई लॉक इन अवधि नहीं होती। परंतु यहां ऋण की परिपक्वता तय होती है।
पी2पी कारोबार करने का सबसे नवाचारी तरीका है अपना लाइसेंस किसी अनियमित संस्था को किराए पर देना। क्रेडिट कार्ड भुगतान ऐप तथा मर्चेंट पेमेंट एग्रीगेटर जैसी कंपनियां ऐसा करती हैं। इससे वे रिजर्व बैंक की सीधी निगरानी से भी बची रहती हैं। पी2पी एनबीएफसी के अनुसार इसकी इजाजत मिली हुई है।
पी2पी लेंडिंग के लिए अक्टूबर 2017 में जारी आउटसोर्सिंग नीति संबंधी दिशानिर्देशों के मुताबिक अगर कोई एनबीएफसी अपनी वित्तीय गतिविधियों में से किसी को आउटसोर्स करना चाहती है तो उसे एक व्यापक आउटसोर्सिंग नीति पेश करनी चाहिए। इसे उसके बोर्ड की मंजूरी मिलनी चाहिए जो सेवा प्रदाता, अधिकार हस्तांतरित करने के अलावा इन गतिविधियों की निगरानी करेगा। परंतु अपने लाइसेंस को किराये पर देना आउटसोर्सिंग नहीं है। पी2पी प्लेटफॉर्म फंड प्रबंधक की भूमिका नहीं निभा सकते।
ब्रिटेन की जोपा दुनिया की पहली पी2पी ऋण दाता कंपनी थी। उसने 2005 में काम शुरू किया और अच्छा प्रतिफल चाहने वाले निवेशकों को कर्जदारों से जोड़ा। जोपा के तत्काल बाद अमेरिका में पहली पी2पी कंपनी उत्पन्न हुई।
न्यूजीलैंड और चीन में पिछले दशक में इनकी शुरुआत हुई। हकीकत में चीन में तो 5,000 से अधिक पी2पी ऋणदाताओं ने 450 अरब डॉलर का सालाना कारोबार खड़ा किया। परंतु 2020 तक ये कंपनियां चीन के वित्तीय परिदृश्य से गायब हो गईं क्योंकि वहां सरकार और नियामकों ने उनकी गलत गतिविधियों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया।
प्रेसिडन्स रिसर्च के अनुसार 2021 में दुनिया भर में पी2पी ऋण बाजार करीब 83.79 अरब डॉलर का था। अनुमान है कि 2030 तक यह बढ़कर 705.81 अरब डॉलर का हो जाएगा यानी 26.7 फीसदी की समेकित सालाना वृद्धि। इसका सबसे बड़ा बाजार उत्तरी अमेरिका और तेजी से बढ़ता एशिया प्रशांत क्षेत्र है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत में पी2पी बाजार चीन जैसी हालत में नहीं पहुंचेगा। जून में रिजर्व बैंक ने प्रीपेड पेमेंट योजनाओं को बिना लाइसेंस वाली कंपनियों के साथ मिलकर ब्रांडिंग करने से रोक दिया था। ऐसे में कुछ कंपनियों को अपनी यूपीआई सेवा बंद करनी पड़ी क्योंकि उनके पास लाइसेंस नहीं था और वे गैर बैंकिंग लाइसेंस धारक के साथ को-ब्रांडेड व्यवस्था के तहत यूपीआई सेवा दे रही थीं।
इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, रिजर्व बैंक को पी2पी लाइसेंस किराये पर देने, जमा लेने वाली एनबीएफसी की भूमिका निभाने, बिना कर्जदारों से पुनर्भुगतान के रोजाना ब्याज देने की परंपरा पर रोक लगानी चाहिए।