कंपनी मामलों का मंत्रालय (MCA) फ्रैक्शनल शेयर (Fractional shares) जारी करने और उसके स्वामित्व की इजाजत देने के संबंध में बाजार नियामक से बातचीत कर रहा है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी।
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि फ्रैक्शनल शेयर का मतलब किसी कंपनी के एक पूर्ण शेयर के बजाय उसके एक हिस्से से है। सेबी व कंपनी मामलों के मंत्रालय के मौजूदा नियों के तहत फ्रैक्शनल शेयर जारी करने व उसके स्वामित्व की इजाजत नहीं है।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, इस मसले पर सेबी की अपनी राय है क्योंकि यह सूचीबद्ध कंपनियों पर असर डालता है। साथ ही नियामक जल्द ही इस मामले पर कंपनी मामलों के मंत्रालय के सामने अपना पक्ष रखेगा।
कंपनी लॉ कमेटी ने पिछले साल कंपनी अधिनियम के संशोधन से संबंधित अपने सुझाव में फैक्शनल शेयर की शुरुआत की बात कही थी, जो अमेरिकी बाजार में लोकप्रिय है। ये शेयर काफी ऊंची कीमत वाले शेयरों की खरीद का मकसद पूरा करते हैं, जहां तक खुदरा निवेशकों की पहुंच आसान नहीं होती।
एमसीए इस बात पर विचार कर रहा है कि यह प्रावधान किसी कंपनी की तरफ से जारी होने वाले नए फ्रैक्शनल शेयरों के लिए ही होंगे, न कि उन मामलों में जहां कंपनी की किसी कवायद मसलन विलय आदि में फ्रैक्शनल शेयरों का सृजन होगा।
अमेरिका में खुदरा ब्रोकरेज मसलन रॉबिनहुड निवेशकों को फैक्शनल शेयर खरीदने की इजाजत देता है। यह विचार खुदरा निवेशकों की बाजार में भागीदारी में इजाफे के मकसद से सामने आया था।
गुजरात के गिफ्ट सिटी में द इंटरनैशनल फाइनैंशियल सर्विसेज सेंटर अथॉरिटी ने भारत में अपनी नियामकीय व्यवस्था के तहत फ्रैक्शनल शेयरों की ट्रेडिंग की इजाजत दी है।
कंपनी लॉ कमेटी को लगा कि खुदरा निवेशक कुछ निश्चित कंपनियों में शायद निवेश नहीं करना चाहते होंगे क्योंकि उस शेयर की ऊंची कीमत के चलते उसका जेब इसकी खरीद की इजाजत नहीं देता होगा। फैक्शनल शेयर की खरीद व ट्रेडिंग की इजाजत से ऐसे निवेशक उस कंपनी के शेयरों में निवेश में सक्षम हो पाएंगे, जो वे ऊंची कीमत के कारण नहीं कर पाते थे।
प्रस्तावित संशोधन कंपनी अधिनियम में प्रावधान जोड़ने की सलाह दे रहा है, जो किसी कंपनी वर्ग या वर्गों के फ्रैक्शनल शेयर जारी करने, उसमें निवेश बनाए रखने और उसके हस्तांतरण में सक्षम बनाए और यह तय मानकों के आधार पर हो सकता है। ये शेयर सिर्फ डीमैट फॉर्म में ही जारी होने चाहिए।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि फ्रैक्शनल शेयर भारतीय बाजार में कोई बड़ा मकसद पूरा नहीं कर पाएगा क्योंकि अमेरिका से उलट यहां कुछ ही कंपनियां हैं जिनके शेयरों की कीमतें काफी ऊंची हैं। उदाहरण के लिए एक ऐसी कंपनी एमआरएफ है, जिसके शेयर की कीमत करीब एक लाख रुपये है।
कॉरपोरेट प्रोफेशनल के पार्टनर अंकित सिंघी ने कहा, जब इसकी इजाजत दी जाएगी तब यह बाजार में काफी नकदी लाएगा और खुदरा निवेशकों की व्यापक भागीदारी भी होगी। शेयरधारिता का वितरण हो जाएगा। हमें देखना होगा कि क्या यह प्रावधान सिर्फ ट्रेडिंग के लिए होगा या फिर स्वामित्व व वोटिंग के लिए भी।
सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच ने इस महीने ग्लोबल फिनटेक फेस्ट में फ्रैक्शनल स्वामित्व से जुड़े ढांचे को लेकर दिलचस्पी का संकेत दिया था।
इसे अच्छा विचार और सेबी की दिलचस्पी बताते हुए बुच ने नियामकीय लिहाज से आगे की चुनौतियों का हवाला भी दिया था। उन्होंने कहा था, हम इस परीक्षण कार्यक्रम का सिर्फ इसलिए स्वागत नहीं कर सकते कि इसकी इजाजत खुद सेबी के अधिनियम में नहीं है।
(साथ में खुशबू तिवारी)