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भारत की E-Bus का सफर हुआ धीमा, निविदा प्रक्रियाओं और सप्लाई में देरी बनी बड़ी चुनौती

सरकारी प्रोत्साहन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के बावजूद इलेक्ट्रिक बस (ई-बस) खंड अन्य की तुलना में पीछे रहा था।

Last Updated- January 05, 2025 | 11:32 PM IST
India's E-Bus journey slows down, delay in tender processes and supplies becomes a big challenge भारत की E-Bus का सफर हुआ धीमा, निविदा प्रक्रियाओं और सप्लाई में देरी बनी बड़ी चुनौती

भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र ने कुल करीब 20 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बिक्री का आंकड़ा पार करने के साथ वर्ष 2024 में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इससे कुल वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की हिस्सेदारी बढ़कर 7.5 फीसदी हो गई जबकि बीते वर्ष ईवी की हिस्सेदारी 6.4 फीसदी थी। सरकार की सब्सिडी की योजनाओं के कारण मुख्य तौर पर ईवी वाहनों को अपनाना बढ़ा है। हालांकि सभी वाहनों खंडों में इस दर से वृद्धि नहीं हुई।

सरकारी प्रोत्साहन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के बावजूद इलेक्ट्रिक बस (ई-बस) खंड अन्य की तुलना में पीछे रहा था। विभिन्न योजनाओं – इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और उनका विनिर्माण (फेम-2), पीएम – ई बस सेवा, पीएम-ई बस सेवा भुगतान सुरक्षा तंत्र (पीएसएम) और पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवाेल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एनहेंसमेंट (पीएम ई- ड्राइव) – में कुल 83,448 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ जिसमें से 69,771 करोड़ रुपये यानी 83फीसदी जैसा बड़ा हिस्सा ई-बसों को प्राप्त हुआ।

इसके बावजूद ई-बसों की हिस्सेदारी वर्ष 2024 में थोड़ी बढ़कर महज 3.5 फीसदी हो गई जबकि यह वर्ष 2023 में 3.2 फीसदी थी। यानी सभी वाहन खंडों में बसों को अपनाने की दर सबसे कम है।इसके विपरीत इलेक्ट्रिक दो पहिया (ई2डब्ल्यू) और तीन पहिया (ई3डब्ल्यू) ने मजबूत वृद्धि दर्ज की थी।

ई2डब्ल्यू की पैठ 5.0 फीसदी से बढ़कर 6.1 फीसदी हो गई। वहीं, ई3डब्ल्यू की हिस्सेदारी 52.8 फीसदी से बढ़कर 56.6 फीसदी हो गई। हालांकि कार खंड (ई4डब्ल्यू) को केवल फेम-2 योजना के अंतर्गत मदद मिली थी।

ई-बसों को अपनाने की गति धीमी होने से स्वच्छ सार्वजनिक यातायात को अपनाने में दिक्कतें उजागर होती हैं। इस खंड के विशेषज्ञों ने निविदा जारी करने की धीमी गति और मूल उपकरण विनिर्माताओं (ओईएम) द्वारा बसों की आपूर्ति में देरी को जिम्मेदार बताया है।

एनआरआई कंसल्टिंग ऐंड सोल्यूशंस में आल्टर्नेटिव पॉवरट्रेन्स और केस के विशेषज्ञ प्रीतेश सिंह ने बताया, ‘बस खंड के खराब प्रदर्शन का प्राथमिक कारण निविदा जारी करने में देरी है। निविदा जारी करने के बाद बसों की आपूर्ति करने में एक साल से अधिक लग जाता है। इसलिए निविदाओं को पूरा करने में देरी होने से विनिर्माताओं की उत्पादन श्रृंखला भी प्रभावित होती है।’

सिंह ने कहा, ‘कुछ मामलों में मूल उपकरण विनिर्माता भी डिलीवरी के मामले में चूक कर रहे हैं।’सरकारी इकाई और एनर्जी एफिसिएंशी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) की सहायक कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (सीईएसएल) पर ई-बसों की मांग को समेकित करने और उसकी नीलाम की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी है। ईईएसएल सार्वजनिक क्षेत्र की ऊर्जा की कंपनियों एनटीपीसी, पॉवर फाइनैंस कॉरपोरेशन, आरईसी लिमिटेड और पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन का संयुक्त उपक्रम है।

सीईएसएल को निविदाएं पूरी करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। नवंबर, 2023 में पीएम-ई बस सेवा के लिए 3,600 बसों की निविदा जारी की गई थी और यह निविदा अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। दूसरी निविदा 3,132 बसों के लिए मार्च 2024 में शुरू हुई थी और यह भी अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। इससे पहले 2023 में सीईएसएल ने 4,675 बसों की ड्राई लीज निविदा निरस्त कर दी थी और इस बारे में पर्याप्त अधिसूचना जारी नहीं की गई थी।

बिज़नेस स्टैंडर्ड ने सीईएसएल और ईईएसएल से बीते दो महीनों में सीईएसएल की बस निविदाओं, उन्हें लागू करने और बसों की आपूर्ति समयसीमा के बारे में बीते दो महीनों के दौरान कई सवाल पूछे, लेकिन उनका जवाब नहीं दिया गया। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार ई-बसों की सीमित प्रगति के लिए राज्य सरकारों की व्यक्तिगत निविदाओं का भी व्यापक रूप से योगदान हो सकता है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्य ई-बसों के लिए अपनी निविदाएं जारी कर रहे हैं।

एक क्षेत्र विशेषज्ञ ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘सीईएसएल के सार्वजनिक रूप से आंकड़ा जारी नहीं करने के कारण इसके निविदाओं में कुल बसों की जानकारी हासिल करना मुश्किल है। हालांकि अनुमानों के अनुसार उपयोग की जा रही बसों में राज्य सरकार की निविदाओं से जारी बसों की हिस्सेदारी 70 फीसदी से अधिक है।’

उद्योग के विशेषज्ञों ने सीईएसएल के पिछली निविदाओं को पूरी किए बिना कई नई निविदाएं जारी करने पर चिंता जताई है।

सीईएसएल की निविदा में हिस्सा लेने वाली एक कंपनी के अधिकारी ने बताया, ‘सीईएसएल नियमित रूप से निविदाओं में संशोधन कर रही है और नई निविदाएं जारी कर रही है। वह 2023 से ही किसी निविदा को पूरा नहीं कर पाई है। सरकार को निविदा जारी करने की प्रक्रिया को सुचारु बनाने और देरी कम करने की जरूरत है।’

First Published - January 5, 2025 | 11:32 PM IST

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