बयान के अनुसार अदालतों ने कहा है कि राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान देने से अपराध धुल नहीं जाता या न्यायिक फैसलों को अस्वीकृत नहीं किया जाता।
राष्ट्रपति के कार्यालय ने लंबे बयान में कहा कि राष्ट्रपति क्षमादान के अधिकार का इस्तेमाल करके न्यायिक फैसलों में बदलाव, संशोधन या उन्हें परिवर्तित नहीं करतीं।
बयान में कहा गया है, क्षमा मिलने पर अपराधियों की मौत की सजा को उनके शेष स्वाभाविक जीवन के लिए उम्रकैद में बदल दिया जाता है। जब राष्ट्रपति द्वारा सरकार की सहायता और सलाह पर दया याचिका को खारिज करने या स्वीकार करने का तर्कसंगत फैसला लिया जाता है तो राष्ट्रपति की ओर से संवैधानिक दायित्व अदा किया जाता है नाकि इसे यह कहेंगे कि उनके द्वारा उदारता दिखाई जाती या इसके विपरीत काम किया जाता है।
राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि मृत्युदंड एक भावनात्मक मुद्दा है जिस पर बहस चल रही है।
बयान के अनुसार, इस मामले में सोच विचार के साथ विमर्श और बहस की जरूरत है। जब तक मौत की सजा हमारे कानूनों का हिस्सा है और किसी अपराधी द्वारा या उसकी ओर से क्षमा मांगना संवैधानिक व्यवस्था में है तब तक राष्ट्रपति इस कर्तव्य को निभाने के लिए बाध्य हैं।
वक्तव्य के मुताबिक दया याचिकाओं को निपटाने में संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए राष्ट्रपति के फैसलों पर दिये गये बयान अनुचित हैं।