उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के बरूकी गांव की रहने वाली 55 वर्षीय मैसर जहां के पैर पर कुछ समय पहले एक फुंसी निकल आई थी जिसे उन्होंने पास के ही एक क्लीनिक में दिखाया। चिकित्सक ने कुछ दवा दीं मगर ठीक नहीं होने पर ऑपरेशन कर दिया। मैसर जहां को लगातार सिरदर्द की शिकायत रहने लगी तो चिकित्सक ने इंजेक्शन लगाकर दवा दे दी, जिसके बाद उनकी एक आंख की पलक झुक गई और दिखाई देना बहुत कम हो गया। नजीबाबाद के एक प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक को दिखाने पर पता चला कि गलत इंजेक्शन से संक्रमण के कारण आंख खराब हुई है।
इसी महीने हरिद्वार जिले के रुड़की क्षेत्र में गंगनहर थाना पुलिस एवं औषधि विभाग ने नकली दवा के कारखाने पर छापा मारा, जहां करोड़ों रुपये की नकली दवाएं और बड़ी कंपनियों के नाम के रैपर बरामद हुए। इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में औषधि विभाग टीम ने छापामारी अभियान चलाकर अवैध दवा बनाने का कारखाना पकड़ा था। जिला औषधि निरीक्षक नरेश मोहन दीपक ने बताया, ‘हमें एक प्रतिष्ठित दवा कंपनी के नाम की नकली दवा बनने की सूचना मिली थी। छापे में कई नकली दवाएं, कच्चा माल और मशीनें बरामद हुईं।’ उन्होंने बताया कि संबंधित आरोपी दो साल पहले भी नकली दवाई बनाने के आरोप में पकड़ा गया था और फिलहाल जमानत पर बाहर था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत एवं कम आय वाले दूसरे देशों में बिकने वाले 10 स्वास्थ्य उत्पादों में से एक उत्पाद नकली या घटिया होता है। दवा कारगर नहीं होने पर चिकित्सक मरीज को दूसरी दवा देने लगते हैं लेकिन नकली या घटिया दवा लेने वाले मरीज के शरीर में उस रोग से लडऩे की क्षमता ही पैदा नहीं हो पाती।
नकली दवाओं का जाल
डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया है कि कोरोनावायरस के नाम पर नकली दवाएं बड़ी मात्रा में फैल रही हैं। उसका कहना है कि घटिया रसायन से बनी, बहुत कम मात्रा में रसायन वाली या जरूरी रसायन के बगैर ही बना दी गई अथवा गलत रसायन वाली दवाओं के साथ एक्सपायरी तारीख के पार पहुंच चुकी दवाओं का कारोबार भी बढ़ रहा है। भारत समेत निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में इसका आकार 30 अरब डॉलर के करीब है।
मास्क, दस्ताने और सैनिटाइजर जैसे उत्पाद भी गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतर रहे। कुछ समय पहले नोएडा में फर्जी मास्क एवं सैनिटाइजर बनाने वाली कंपनी पर छापा मारा गया और और 5,000 नकली मास्क एवं हैंड सैनिटाइजर की 5,000 बोतलें जब्त की गई थीं। एसडीएम राजीव राय ने बताया, ‘करीब 10 लाख रुपये के इन उत्पादों पर एक नामी कंपनी का लेबल लगाया गया था लेकिन ये वास्तविक उत्पाद नहीं थे।’ सितंबर में नोएडा पुलिस ने एक कंपनी पर छापा मारकर कोविड-19 की करीब 4 लाख फर्जी रैपिड टेस्ट किट बरामद की थीं।
मगर सबसे दिलचस्प वाकया तो उड़ीसा में बरघा जिले के रूसुदा गांव में दिखा। बाजार में कोरोनावायरस का टीका अभी नहीं आया है मगर इस गांव में नकली ‘कोविड-19 वैक्सीन’ तैयार भी हो चुकी थी। अगर औषधि विभाग और पुलिस ने ने इस नकली टीके का रैकेट नहीं पकड़ा होता तो यह टीका बाजार में पहुंच ही गया होता।
नकली उत्पादों के खिलाफ काम कर रहे गैर सरकारी संगठन फेक फ्री इंडिया के संस्थापक सुरेश सती कहते हैं, ‘नकली दवाओं की समस्या बेहद गंभीर है। इन्हें बनाने वाला चंद रुपये के लिए लोगों की जिंदगी से खेलता है। कई बार तो लोगों की मौत हो जाती है और पता ही नहीं चलता कि वे नकली दवा ले रहे थे।’
सजा का प्रावधान
लॉ फर्म निशीथ देसाई एसोसिएट्स में प्रमुख (फार्मा, हेल्थकेयर ऐंड डिजिटल हेल्थ प्रेक्टिस) डॉ. मिलिंद अंताणी एवं वरिष्ठ सदस्य (फार्मा टीम) डेरेन पुनीन के अनुसार औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत नकली एवं घटिया दवाओं को गलत ब्रांड वाली दवा, मिलावटी दवा तथा नकली दवा की श्रेणी में बांटा जा सकता है। वे बताते हैं, ‘सजा इस बात पर भी निर्भर करती है कि नकली या घटिया दवाओं का आयात किया गया है या उन्हें देश में तैयार किया गया है। नकली या घटिया दवा के आयात पर तीन साल तक की जेल एवं/अथवा 5,000 रुपये तक की सजा होती है और देश में उत्पादन पर न्यूनतम 10 लाख रुपये या कुल दवा कीमत के तीन गुना जुर्माने के साथ 10 साल की जेल का प्रावधान है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।’
क्या हों उपाय
भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल कहते हैं कि देश में दवाओं के लिए मानक पद्धति अपनानी होगी। उन्होंने कहा, ‘सभी देशों में अलग-अलग मानक होते हैं। अमेरिकी दवा विनियामक के नियम ज्यादा सख्त हैं। हमें भी बेहतर और एकसमान मानक अपनाने होंगे। मगर डॉक्टर होने के नाते हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि दवा मरीज के लिए कारगर है या नहीं।’
डॉ अग्रवाल कहते हैं, ‘अधिकृत मेडिकल स्टोर से ही दवा खरीदें और हमेशा पक्का बिल लें। सस्ती दवा लेनी हैं तो केंद्र सरकार के जन औषधि केंद्रों से जेनेरिक दवा खरीदें।’