कोविड-19 महामारी के इस दौर में देश में कारोबारियों के परोपकारी कार्यों में भले ही इजाफा हुआ है लेकिन वह समाज की बढ़ती आवश्यकताओं के साथ कदमताल नहीं कर पा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि महामारी के कारण लोगों ने बड़े पैमाने पर आजीविका और रोजगार गंवाए हैं।
यह कहना है सामाजिक उद्यमिता के लिए बिज़नेस स्टैंडर्ड अवार्ड से सम्मानित संस्था सेंट जूड इंडिया चाइल्डकेयर सेंटर्स के संस्थापक निहाल कविरत्ने का। यह पुरस्कार सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट भूमिका के लिए प्रदान किया जाता है।
एक ऑनलाइन परिचर्चा में पुरस्कृत भागीदारों ने इस बात को रेखांकित किया कि परोपकार को स्थायी बनाने का एकमात्र तरीका यह है कि उसे कारोबारी जगत के साथ जोड़ा जाए। सामाजिक दृष्टि से सर्वाधिक सचेत कारोबारी घराने का पुरस्कार हासिल करने वाले एलऐंडटी फाइनैंस होल्डिंग्स के एमडी और सीईओ दीनानाथ दुभाषी ने कहा कि हमें परोपकार को आजीविका से जोडऩा होगा। उन्होंने कहा कि तब इसमें निरंतरता रहेगी क्योंकि अगला प्रबंध निदेशक कुछ और
करना चाहेगा।
दुभाषी ने कहा कि एलऐंडटी फाइनैंस होल्डिंग्स की पहल डिजिटल सखी ने ग्रामीण महिलाओं को वित्तीय साक्षरता प्रदान की और उनमें यह आत्मविश्वास पैदा किया कि वे गर्व के साथ काम कर सकें। उन्होंने कहा कि कारोबारी कौशल का इस्तेमाल करके सामाजिक प्रभाव बढ़ाया जा सकता है। दुभाषी ने कहा कि करीब पांच वर्ष पहले उनकी फर्म सामाजिक उत्तरदायित्त्व का पैसा 30 परियोजनाओं पर खर्च करने के बाद भी इतना प्रभाव नहीं डाल पा रही थी। कविरत्ने ने इस बात से सहमति जताई कि कारोबारी उद्देश्य और सामाजिक प्रभाव को साथ लाने में ही परोपकार का भविष्य है। उन्होंने कहा कि यदि समुदाय इसमें अहम अंशधारक हो तो बढिय़ा प्रदर्शन संभव है। कविरत्ने ने कहा, ‘एक उद्देश्य और परोपकार की भावना के साथ काम करने वाली कंपनियों के लिए भविष्य बेहतर है।’
दुभाषी ने कहा कि कोविड-19 के कारण कंपनियों का मुनाफा कम हुआ है। ऐसे में उनके द्वारा कारोबारी सामाजिक उत्तरदायित्व पर किए जाने वाले व्यय में भी कमी आने की संभावना है। गौरतलब है कि कंपनियों के लिए अंतिम तीन वर्षों के मुनाफे का दो प्रतिशत कारोबारी सामाजिक उत्तरदायित्त्व पर व्यय करना आवश्यक है।
उन्होंने आगे कहा, ‘एक स्तर के बाद हमें यह सोचना बंद करना होगा कि यह दो फीसदी है। हम खर्च करने के लिए मंत्रालय की अधिसूचना की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। कारोबारी जगत में जो लोग वास्तव में देने में यकीन करते हैं वे देना जारी रखेंगे।’
अपने उद्यम पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के लिए वर्ष के श्रेष्ठ सामाजिक उद्यमी का पुरस्कार हासिल करने वाले एम आर माधवन ने कहा कि उन्होंने 15 वर्ष पहले इस उपक्रम की शुरुआत की थी। उस समय उनका विचार था कि यदि देश के लोगों के जीवन पर अहम प्रभाव डालना है तो नीतिगत कस्तर पर कुछ करना होगा।
माधवन ने कहा, ‘हमने जो कुछ किया उसमें हर गतिविधि का प्रतिफल नकद के रूप में नहीं बल्कि प्रभाव के रूप में सामने आया। मैं फंडदाताओं की उदारता से अभीभूत हूं। हमारे अधिकांश फंड देने वाले महामारी के दौरान हमारे साथ बने रहे।’
