महाराष्ट्र सरकार ने आदेश दिया है कि अब सभी फाइल मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास भेजे जाने से पहले उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पास भेजी जाएंगी। इस कदम का उद्देश्य 2023 की उस व्यवस्था को बहाल करना है जिसमें फाइल को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिंदे को भेजे जाने से पहले तत्कालीन उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और फडणवीस को जांचने के लिए भेजा जाता था।
अब राज्य में कोई भी फाइल शिंदे की मंजूरी के बाद फडणवीस को भेजी जाएंगी। राज्य की मुख्य सचिव सुजाता सौनिक ने 18 मार्च को इस संबंध में एक आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया कि 26 जुलाई 2023 से फाइल उपमुख्यमंत्री अजीत पवार से (तत्कालीन) उप मुख्यमंत्री फडणवीस के पास भेजी जाती थीं, फिर उन्हें (तत्कालीन) मुख्यमंत्री शिंदे के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के विधायकों के साथ दो जुलाई 2023 को अजित पवार के शिंदे के नेतृत्व वाली सरकारी में शामिल होने के बाद यह व्यवस्था की गई थी। पिछले साल राज्य चुनाव में महायुति (भाजपा, शिवसेना और राकांपा) की जीत के बाद फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने पर व्यवस्था बदल दी गई। सभी फाइल, वित्त विभाग संभाल रहे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार से आवास एवं शहरी विकास विभाग संभाल रहे उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पास भेजी जाएंगी।
महायुति शासन ने नवंबर 2024 में 288 सदस्यीय राज्य विधानसभा के चुनावों में शानदार प्रदर्शन के साथ जीत दर्ज की और पिछले साल दिसंबर में फिर से सरकार बनाई। भाजपा को 132 सीट मिलने के बाद फडणवीस मुख्यमंत्री बने, उसके बाद शिवसेना को 57 और राकांपा को 41 सीट मिलीं। महायुति 2.0’ के सत्ता में आने के बाद से शिंदे और फडणवीस के बीच शीत युद्ध की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि, दोनों नेताओं ने अटकलों का पुरजोर खंडन किया। कुछ जिलों के प्रभारी मंत्री पदों को लेकर असहमति रही है। शिंदे की आपत्तियों के बाद फडणवीस को नासिक और रायगढ़ जिलों के प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति पर अपना फैसला वापस लेना पड़ा।
इस आदेश के बाद यह माना जा रहा है कि इस नए नियम से साफ है कि शिंदे की भूमिका अब पहले से ज्यादा अहम हो गई है । अब हर फाइल पर शिंदे की नजर रहेगी, यानी सरकार के हर बड़े फैसले में उनकी पहले मुहर लगनी होगी । सियासी जानकार इसे शिंदे की ताकत बढ़ाने के तौर पर देख रहे हैं । दूसरी तरफ, फडणवीस के लिए ये थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि हर कदम पर शिंदे की मंजूरी जरूरी होगी । सरकार की तरफ से इसे सिर्फ कामकाज को बेहतर करने की कोशिश बताई जा रही है जबकि विपक्ष इसे महायुति में चल रही कलह का नतीजा बता रहा है ।