14 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना शुरू होते ही शुरुआती रुझानों ने स्पष्ट कर दिया कि इस बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बड़ी जीत की ओर बढ़ रहा है। दोपहर तक जारी हुए चुनाव आयोग के आंकड़ों में गठबंधन महागठबंधन से कहीं आगे निकल चुका था। 12:45 बजे तक NDA लगभग 200 सीटों के पास पहुंच गया था, जो एक मजबूत और निर्णायक जनादेश की ओर इशारा करता है।
इस चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) सबसे बड़ी पार्टी बनती दिख रही है। 2020 में 43 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली जदयू इस बार लगभग 78 सीटों पर आगे दिखी। वहीं भाजपा 86 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी, जो 2020 की तुलना में 12 सीटें ज्यादा है। इन नतीजों से साफ है कि अगर अंतिम परिणाम भी यही रुझान दिखाते हैं, तो नीतीश कुमार अपने 10वें कार्यकाल की ओर बढ़ रहे हैं, जो बिहार की राजनीति में एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड होगा।
नीतीश कुमार भले ही 30 साल से सीधा विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हों, लेकिन हर चुनाव में उनकी छवि और काम एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरते हैं। 1990 के दशक से वे विधान परिषद के माध्यम से सरकार का हिस्सा बनते आए हैं, पर उनकी पहचान हमेशा एक ऐसे नेता की रही है जो प्रशासन संभालना जानता है, गठबंधन प्रबंधन में माहिर है और स्थिर शासन देता है। “सुशासन” की यह छवि ही उनकी राजनीति की सबसे बड़ी ताकत बनी रही।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कानून-व्यवस्था में सुधार, विकास कार्य, और जातीय समीकरणों की गहरी समझ। इन सभी ने नीतीश को लंबे समय तक सत्ता में टिकाए रखा। 2025 के चुनाव में भी, भले ही वे खुद मैदान में नहीं थे, लेकिन पूरे NDA का चुनाव अभियान उनके काम और नेतृत्व की निरंतरता पर आधारित रहा।
पिछले तीन दशकों में नीतीश कुमार ने समय-समय पर अपने चुनावी मुद्दे बदले। 2000 के दशक की शुरुआत में उनका ध्यान कानून-व्यवस्था और बुनियादी ढांचे को ठीक करने पर था। बाद के चुनावों में उनका फोकस विकास, कल्याण योजनाओं और स्थिर शासन पर आ गया।
उनका सबसे बड़ा राजनीतिक नरेटिव 2005 में सामने आया, जब उन्होंने “जंगल राज बनाम सुशासन” का संदेश दिया। पिछली सरकारों पर कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल उठते थे, और नीतीश ने खुद को इसके विपरीत एक सुशासक के रूप में पेश किया। इसी छवि की वजह से उन्हें “सुशासन बाबू” कहा जाने लगा। सड़क, बिजली, पुलिस सुधार और अपराध नियंत्रण के कामों ने इस छवि को और मजबूत किया। हालांकि विरोधियों ने बेरोजगारी, पलायन और अपराध के मुद्दों पर उन्हें घेरा, लेकिन 2025 के चुनाव अभियान में NDA ने एक बार फिर “जंगल राज” और “सुशासन” की उसी पुरानी बहस को केंद्र में रखा।
नीतीश कुमार अपनी लचीली गठबंधन नीति के लिए जाने जाते हैं। वे समय-समय पर भाजपा और राजद के साथ आते-जाते रहे हैं। इसे लेकर उन्हें “पलटू राम” भी कहा गया, लेकिन उन्होंने इसे हमेशा राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप लिया। गठबंधन बदलने के साथ उन्होंने अपना चुनावी संदेश भी बदला- भाजपा के साथ रहते हुए वे प्रशासनिक सुधार और विकास की बात करते थे, जबकि महागठबंधन के दौरान सामाजिक न्याय पर जोर देते थे।
उनकी राजनीति का एक बड़ा आधार अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और गैर-यादव OBC समुदाय रहा है। लालू प्रसाद के वक्त खुद को उपेक्षित महसूस करने वाले इन वर्गों ने नीतीश के शासन में लगातार समर्थन दिया। मूलभूत सुविधाओं की डिलीवरी ने उनकी इस सामाजिक पकड़ को और मजबूत किया।