राजनीति

Bihar Election: SIR के बाद अंतिम आंकड़े जारी, 65 लाख मतदाताओं के नाम हटे

नई सूची के अनुसार राज्य के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 65 लाख मतदाता या 8.31 प्रतिशत के नाम सूची से हटा दिए गए हैं।

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- July 27, 2025 | 10:57 PM IST

बिहार में इस वर्ष अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधान सभा चुनाव में लगभग 65 लाख लोग वोट डालने का अधिकार खो सकते हैं। केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद अंतिम आंकड़े रविवार को जारी कर दिए। नई सूची के अनुसार राज्य के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 65 लाख मतदाता या 8.31 प्रतिशत के नाम सूची से हटा दिए गए हैं। विपक्ष एसआईआर की वैधता और इरादे पर सवाल उठाना जारी रखेगा। उसका आरोप है कि इस पूरी कवायद से हाशिए पर रहने वाले लाखों लोग मताधिकार से वंचित कर दिए जाएंगे। विपक्ष का कहना है कि वह संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इसके खिलाफ जोरदार ढंग से विरोध करना जारी रखेगा। उच्चतम न्यायालय में इस मामले में सोमवार को सुनवाई होनी है।

आयोग 1 अगस्त को नई मतदाता सूची प्रकाशित करेगा और उसी दिन से 1 सितंबर तक एक महीने के लिए ‘दावे और आपत्तियां’ दर्ज कराने का अवसर देगा। इस दौरान मतदाता किसी भी नाम को गलत तरीके से शामिल करने या गलत तरीके से बाहर करने की शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इंडिया गठबंधन दलों के नेताओं ने रविवार शाम को संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि जब तक निर्वाचन आयोग अपना ‘दावे और आपत्तियां’ दर्ज कराने का चरण पूरेगा तब तक बिहार के लगभग 2 करोड़ मतदाता अपना वोट देने का अधिकार खो सकते हैं।

निर्वाचन आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘राजनीतिक दल अब इतना बड़ा बखेड़ा क्यों खड़ा कर रहे हैं? वे अपने 160,000 बूथ स्तर के सहयोगियों यानी बीएलए को 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियां जमा करने के लिए क्यों नहीं कहते हैं? कुछ लोग यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि मसौदा सूची अंतिम सूची है। यह सब एसआईआर के आदेशों के अनुसार नहीं है।’

बूथ स्तर पर राजनीतिक दलों के कुल 1,60,813 एजेंटों में से 53,338 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हैं जबकि 36,550 जनता दल (यूनाइटेड), 47,506 राष्ट्रीय जनता दल (राजद), 17,549 कांग्रेस के हैं। बाकी 5,870 एजेंट ऐसे छोटे दलों से हैं, जो या तो राजग के साथ हैं अथवा इंडिया गठबंधन से जुड़े हैं।

उच्चतम न्यायालय में इस महीने मामले की पिछली सुनवाई में निर्वाचन आयोग ने तर्क दिया था कि यह अभियान मतदाता सूचियों से अयोग्य व्यक्तियों को बाहर निकालकर चुनाव की शुद्धता को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। उसने यह भी कहा कि 24 जून को एसआईआर शुरू करने के उसके फैसले में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की सहमति हैं लेकिन न्यायालय में वे इसका विरोध कर रहे हैं।  आयोग की ओर से रविवार शाम को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, एसआईआर की अवधि के दौरान राजनीतिक दलों के बीएलए की संख्या 16 प्रतिशत बढ़कर 138,680 से 160,813 हो गई। अपने जवाबी हलफनामे में मामले में प्रमुख याची एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने दावा किया कि निर्वाचन आयोग के बूथ स्तर अधिकारी (बीएलओ) (जो राजनीतिक दलों से जुड़े बीएलए से अलग होते हैं) को गणना फॉर्म पर हस्ताक्षर करते हुए पाया जा रहा है और मृतकों को फॉर्म भरते हुए दिखाया जा रहा है। जिन्होंने फॉर्म नहीं भरे हैं, उन्हें संदेश मिल रहा है कि उनके फॉर्म पूरे हो गए हैं। इसमें कहा गया है, ‘कई मतदाताओं ने बताया है कि उनके फॉर्म ऑनलाइन जमा किए गए हैं, जबकि वे कभी भी किसी बीएलओ से नहीं मिले या उन्होंने किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।’

चुनाव आयोग के आंकड़े आने के बाद विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं ने संवाददाता सम्मेलन में मसौदा सूची में कई खामियां गिनाईं। सुप्रीम कोर्ट में याचियों का प्रतिनिधित्व कर रहे कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी, सीपीआई (एमएल) एलके दीपांकर भट्टाचार्य और राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने आयोग के दावों पर सवाल उठाए। भट्टाचार्य ने कहा, ‘आयोग ने राजनीतिक दलों के साथ एसआईआर का जो डेटा साझा किया है, उसमें उन सभी लोगों को चिह्नित नहीं किया गया है जो मृत पाए गए या जो स्थायी रूप से राज्य छोड़ चुके हैं। आयोग हमसे इतनी कम अवधि में इस डेटा को कैसे डीकोड करने की उम्मीद करता है?’

उन्होंने यह भी पूछा कि बिहार में जनवरी 2025 में किए गए सारांश पुनरीक्षण अभियान में ही मृतकों की असली संख्या का पता क्यों नहीं लगाया गया। अब एसआईआर में यह गणना कैसे सामने लाई गई है। ऐसा कैसे हो सकता है कि छह महीनों के दौरान ही राज्य में 22 लाख लोगों की मृत्यु हो गई। या फिर यह कहें कि जनवरी में किया गया सारांश पुनरीक्षण फ्लॉप था?

सिंघवी ने बिहार में विधान सभा चुनाव के इतने करीब एसआईआर आयोजित करने के आयोग  के इरादे पर सवाल उठाया और इस कवायद को चुनाव से अलग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, आयोग की हालिया टिप्पणियां और चुनाव फोटो पहचान पत्र एवं राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के रूप में स्वीकार करने से इनकार करने जैसी बातें स्पष्ट रूप से इस तथ्य की ओर इशारा करती हैं कि पूरी एसआईआर प्रक्रिया एक नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया है।’

अंतिम आंकड़ों के अनुसार, बिहार की मतदाता सूची के एसआईआर के महीने भर चले पहले चरण के शुक्रवार को समाप्त होने के बाद 7.89 करोड़ मतदाताओं (24 जून तक) में से 7.24 करोड़ या 91.69 प्रतिशत से गणना फॉर्म प्राप्त हुए हैं। इसमें पाया गया कि 22 लाख मतदाता मृत पाए गए थे और 36 लाख या तो स्थानांतरित हो गए या मौके पर नहीं मिले। यही नहीं, सात लाख मतदाता ऐसे भी पाए गए जो कई स्थानों पर नामांकित थे। आयोग ने कहा कि इन मतदाताओं की सटीक स्थिति 1 अगस्त तक इन फॉर्मों की जांच के बाद पता चलेगी।

First Published : July 27, 2025 | 10:57 PM IST