मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के लिए इस बार मुख्य मुद्दा न तो बिजली है और न ही सड़क बल्कि उनका मुद्दा पानी है।
सूबे की राजधानी भोपाल में रहने वाले लोगों को दो दिनों में एक बार पीने का साफ उपलब्ध होता है। भोपाल में पानी का एकमात्र स्रोत ऊपरी झील है, जो काफी तेजी से खाली होता जा रहा है।
सरकार द्वारा इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं लेकिन सरकार राजधानी सहित सूबे के अन्य शहरों में पीने का साफ पानी मुहैया कराने में नाकाम रही है।
सूबे में अभी भी कृषि एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। पिछले कुछ सालों में यहां गेहूं की खेती काफी सिकुड़ गई है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि राज्य में अतिरिक्त 4.80 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की जा रही है। लेकिन सही समय पर बारिश नहीं होने की वजह से यहां की खेती शिथिल पड़ी है।
किसान कल्याण, कृषि और सहभागिता विभाग के प्रमुख सचिव प्रवेश शर्मा ने बताया, ‘इस साल सरकारी जलाशय खाली है, जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि खेती 7 लाख हेक्टेयर से घटकर 4 लाख हेक्टेयर तक सिमट कर रह जाएगी।’
राज्य के सभी प्रमुख खाद्यान्नों में नकारात्मक रिपोर्ट के साथ केवल 5.33 फीसदी की ही बढ़ोतरी दर्ज की गई है। तिलहन का रकबा 1.89 फीसदी नीचे पहुंच गया है। राज्य के ताजा आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक इस साल मालवा क्षेत्र में गेहूं का रकबा 50 फीसदी तक नीचे आ गया है।
पिछले पांच सालों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के तीन नेताओं ने मुख्यमंत्री पद का सुख भोगा लेकिन कोई भी स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं ला सकें। वित्त मंत्री राघवजी ने पार्टी के जनाधार को बनाए रखने के लिए बहुत सारे लोकलुभावन उपायों का प्रयोग किया था।
राघवजी का वित्त प्रबंधन घरेलू और बेहद सरल था। वे गैर योजनागत खर्चों में कटौती करके अतिरिक्त राशि को विकास गतिविधियों में लगाते थे। 2005-06 में ऋण छूट के लिए 363.06 करोड़ रुपये और 2006-07 में भी इतनी ही राशि का ऋण छूट प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप मध्य प्रदेश को वित्त आयोग द्वारा दो बार पुरस्कृत किया जा चुका है।
वास्तविक राजकोषीय सुधार नवंबर 2005 में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद नजर आया। 2004-05 में जो कर राजस्व 7769.71 करोड़ रुपये था वहीं 2005-06 में संशोधित अनुमानों के मुताबिक कर राजस्व बढ़कर 8933.34 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।
यह उम्मीद जताई जा रही है कि 2008-09 तक कर राजस्व बढ़कर 11885.68 करोड़ रुपये हो जाएगा। राज्य सरकार ने गैर योजनागत खर्चों में भी भारी कटौती की है। साल 2005 में जहां रोजगार कार्यालयों में 4.66 लाख बेरोजगार युवा पंजीकृत हुए वहीं जून 2007 में उनकी संख्या बढ़कर 19.07 लाख तक पहुंच गई।
विद्युत पारेषण और वितरण के लिए 1240.91 करोड़ रुपये बजट आवंटन किया गया और साथ ही बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए 1371.40 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया गया लेकिन इसके बावजूद 1000 मेगावाट की मांग आपूर्ति की खाई को पाटने में राज्य सरकार नाकाम रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में 10 घंटे से अधिक बिजली की कटौती की जाती है।
बारिश न होने से बिगड़ा सरकार का गणित
भोपाल में दो दिन में केवल एक बार ही मिलता है पीने का साफ पानी
बारिश नहीं होने से कृषि का रकबा 7 लाख हेक्टेयर से घटकर 4 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान
राजस्व बढ़कर 11,885.68 करोड़ रुपये होने का अनुमान