भारतीय कार्पोरेट जगत के सहयोग से उत्तर प्रदेश की ढांचागत परियोजनाओं में तेजी लाने की कवायद एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है।
राज्य सरकार 21 नवंबर को लखनऊ में निवेशक बैठक का आयोजन कर रही है। इससे पहले मायावती सरकार ने 14 जुलाई को नई दिल्ली में ऐसी ही एक बैठक करने की योजना बनाई थी। बैठक में कई बड़े औद्योगिक घरानों, निवेशकों और बैंकर्स के आने का दावा किया गया था। लेकिन अंतिम समय में बैठक को रद्द कर दिया गया।
इस बार की बैठक में प्रतिष्ठित सलाहकारों के प्रतिनिधियों के अलावा शीर्ष औद्योगिक कंपनियां शामिल होंगी। राज्य सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, चीनी, बिजली और परिवहन जैसे क्षेत्रों सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) को बढ़ावा देने पर खासतौर से जोर दे रही है।
इस विचार को अमली जामा पहनाने के लिए निवेशक बैठक की योजना बनाई गई है। एक सरकारी सूत्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘इस बारे में उद्योगों और ब्लू चिप कार्पोरेट घरानों को आमंत्रण भेज दिया गया है।’ राज्य सरकार इस दौरान उत्तर प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने और निवेशकों के हित में महौल तैयार करने के लिए उद्योगों से सुझाव हासिल करेगी।
इस बार निवेशक बैठक का आयोजन लखनऊ प्रबंधन संघ (एलएमए) सम्मेलन 2008 के मौके पर किया गया है। सम्मेलन का विषय ‘विश्वस्तरीय बुनियादी सुविधा का निर्माण- नीतिगत अनिवार्यताएं’ है। एलएमए के अध्यक्ष जयंत कृष्ण ने बताया कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता सम्मेलन के अध्यक्ष हैं जबकि प्रधान सचिव (तकनीकी शिक्षा) आलोक रंजन को राज्य सरकार द्वारा आयोजन का मुख्य अधिकारी नियुक्त किया गया है।
उन्होंने कहा कि बैठक में केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिष्ठित वक्ता, उद्योगपति और शीर्ष नौकरशाह शामिल होंगे। इस दौरान ढांचागत नीतियों, चुनौतियों और संभावित समाधानों पर चर्चा की जाएगी।’
इस समय राज्य की प्रमुख पीपीपी परियोजनाओं में ग्रेटर नोएडा-बलिया गंगा एक्सप्रेस हाईवे परियोजना, इलाहाबाद में दो बिजली परियोजनाएं, तकनीकी शिक्षा में पीपीपी और पर्यटन विभाग के होटल परिसंपत्तियों का निजीकरण प्रमुख है।
इससे पहले नई दिल्ली बैठक के रद्द होने के बार राज्य के बिजनेस और निवेश माहौल और सुधारों को आगे बढ़ाने को लेकर राज्य सरकार की राजनीतिक इच्छा शक्ति पर सवालिया निशान लग गया था।