बिहार में स्वास्थ्य और शिक्षा सहित समग्र ग्रामीण विकास के लिए पूरे तंत्र को लालफीताशाही से मुक्त कराने और वास्तविक मायने में विकास सुनिश्चित करने के लिए एक लाख से भी अधिक निर्वाचित महिला पंचायत प्रतिनिधियों ने सांसद और विधायक विकास निधि की तर्ज पर ‘मुखिया विकास निधि’ गठित करने की पुरजोर सिफारिश की है।
निर्वाचित महिलाओं का मानना है कि ‘मुखिया विकास निधि’ के गठन से न केवल पंचायतों और गांवों में बुनियादी शिक्षा तथा स्वास्थ्य के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा, बल्कि इसके माध्यम से गांवों में ही जीवन व्यतीत करने वाले मुखिया या उपमुखिया की जवाबदेही सुनिश्चित हो सकेगी तथा गांवों का विकास दिखाई भी देने लगेगा।
मुजफ्फरपुर जिले की दादर कोल्हुआ पंचायत की मुखिया अमिता देवी ने बताया कि यह एक क्रांतिकारी और जमीनी हकीकत वाला कदम होगा। इससे स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सही मायने में लोगों को घर-घर तक लाभ पहुंचेगा।
रोहतास जिले की चिताली पंचायत की उपमुखिया तारामुनी देवी ने रोषपूर्ण शब्दों में कहा कि पूरी पंचायत के विकास को अधिकारी अपनी मुट्ठी में रखते हैं और जनप्रतिनिधियों को उनका मुंह ताकना पडता है।
अधिकारी का तबादला हो जाए तो वह पलट कर दोबारा पूरे जीवन में उस पंचायत की ओर देखता भी नहीं। ऐसे में निर्वाचित प्रतिनिधि केवल हाथ मसलकर रह जाते हैं।
तारामुनि देवी ने कहा कि सांसद विकास निधि के तहत दो करोड़ रुपया और विधायक विकास निधि के तहत एक करोड़ रुपये का प्रावधान है, जो सांसद या विधायक के आदेश पर अधिकारी द्वारा खर्च किया जाता है।
लेकिन पंचायत के मुखिया को एक पैसे का भी आदेश देने का अधिकार नहीं है।
सीवान जिले की मीरजुमला पंचायत की वार्ड सदस्य सविता देवी ने इस सिलसिले में कहा कि मुखिया पंचायत विकास निधि के तहत मुखिया को मुख्य रूप से बुनियादी जरूरतों के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल के कामों के लिए कम से कम पांच लाख रुपये और वार्ड सदस्य को दो लाख रुपये वार्षिक का अधिकार मिलना चाहिए।
बेशक यह धन अधिकारी के माध्यम से ही खर्च हो जैसा कि सांसद और विधायक निधि के तहत प्रावधान किया गया है।