ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में करीब 79 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। यानी 2012 तक भारत में 1,57,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होने लगेगा।
तब मांग भी लगभग इतनी ही होगी। कह सकते हैं कि सबको रोशनी के लिए अभी चार साल और इंतजार करना होगा। पर यह अकेले सरकार के बूते की बात नहीं है। सो निजी क्षेत्र की मदद की भी दरकार है। राज्य सरकारें अपनी तरफ से कोशिश कर रही हैं। पर ये कितनी कामयाब हो रही हैं, जायजा लिया बिजनेस स्टैंडर्ड ने
उत्तर प्रदेश के कारोबारियों के लिए इस समय वैट से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बिजली की उपलब्धता है। बीते पांच सालों में राज्य में कई बड़ी बिजली परियोजनाओं की घोषणा तो की गईं लेकिन किसी पर काम शुरू नहीं हो सका। इस दौरान बोलियां तो बहुत सी लगीं पर किसी न किसी अड़चन की वजह से काम कहीं नहीं शुरू हुआ।
सबसे ताजा घटनाक्रम में बारा और करछना में अतिरिक्त 1980 और 1320 मेगावाट की परियोजनाओं के लिए बोली लगाने का काम शुरू हो गया है। करछना के लिए सबसे कम 2.92 रुपए प्रति मेगावाट की दर जेपी एसोसिएट ने लगाई है जबकि बारा के लिए उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन ने एक बार फिर से बोलियां मंगाने का फैसला किया है।
इससे ठीक पहले पावर कॉरपोरेशन ने अनपरा सी परियोजना के लिए बोलियां मंगाई थीं और कम दर के आधार पर लैंको कोंडापल्ली को ठेका दिया था। हालांकि लैंको ने अब तक परियोजना पर काम शुरू नहीं किया है। इसी परियोजना के लिए रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह ने दूसरी सबसे कम बोली लगाई थी।
मेजा पावर परियोजना के लिए राज्य सरकार ने एनटीपीसी को अनुबंधित किया है। इस परियोजना के अगले दो सालों में पूरा होने की संभावना है। मेजा के लिए प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने एनटीपीसी के साथ करार किया है।
बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सबसे पहले इसी परियोजना का काम पूरा होने की उम्मीद है। इसके अलावा रिलायंस सूबे में 600 मेगावाट की रोजा पावर परियोजना लगा रही है जिस पर काम शुरू कर दिया गया है।
गौरतलब है कि राज्य में हर साल बिजली की मांग में 500 मेगावाट का इजाफा होने के बावजूद किसी नई परियोजना पर काम शुरु नहीं हो पा रहा है। इस समय प्रदेश में बिजली की प्रति व्यकित मांग लगभग 8500 मेगावाट है जिसकी तुलना में उत्पादन किसी भी हाल में 3500 मेगावाट से ज्यादा नहीं हो पा रहा है।
अपनी मांग पूरी करने के लिए आज भी राज्य को केंद्रीय पूल से 3000 मेगावाट से ज्यादा की बिजली का आयात करना पड़ता है। इस सब कवायद के बाद भी राज्य में 2000 मेगावाट बिजली की कमी पड़ रही है। राज्य सरकार के अधिकारियों की मानें तो किसी भी हाल में बिजली की इस कमी को आने वाले पांच सालों में पूरा नहीं किया जा सकता है।
राज्य में प्रस्तावित सभी परियोजनाओं के समय से पूरा होने के बाद ही इस कमी से निपटा जा सकता है। इस समय लंबित सभी परियोजनाएं पूरी होने के बाद भी बिजली की उपलब्धता 10000 मेगावाट के करीब होगी। हालांकि तब तक बिजली की मांग बढ़कर 11000 मेगावाट के पार होगी।
उद्योगपति और सीआईआई से संबध्द प्रेम शंकर बाजपेयी का कहना है कि बिजली की यह हालत तब है जबकि ज्यादातर स्थापित इकाइयां अपनी क्षमता से कम पर काम कर रही हैं। प्रदेश के उद्योग एक लंबे समय से बिजली की कीमतों में कमी और उपलब्धता की मांग उठाते आ रहे हैं। राज्य के छोटे और मझोले उद्योग तो बाकायदा इस सिलसिले में एक आंदोलन भी चला चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में बिजली की स्थिति
कुल मांग – 8500 मेगावाट
कुल उपलब्धता – 6500 मेगावाट
राज्य का उत्पादन – 3500 मेगावाट
कुल आयात – 3000 मेगावाट
मंजूरी के अंतिम चरण में परियोजनाएं
बारा विद्युत संयत्र इलाहाबाद 1980 मेगावाट
करछना ताप संयंत्र इलाहाबाद 1320 मेगावाट
बड़ी परियोजनाएं
रोजा पावर प्लांट शाहजहांपुर – 600 मेगावाट
मेजा पावर प्लांट, इलाहाबाद – 1300 मेगावाट
एनटीपीसी संयत्र, टांडा – 1040 मेगावाट
अनपरा डी, मिर्जापुर – 1000 मेगावाट