केंद्र सरकार ने 2012 तक घर घर में बिजली और प्रति व्यक्ति 1000 यूनिट का लक्ष्य रखा है।
लेकिन बिहार में आज भी प्रति व्यक्ति सिर्फ 86 यूनिट बिजली ही मिलती है, जो देश में सबसे कम है। इससे सवाल उठ खड़ा हुआ है कि राष्ट्रीय ऊर्जा नीति के तहत बिहार को कैसे रोशन किया जाए अभी देश में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 670 यूनिट है।
वर्तमान में बिहार में बिजली का उत्पादन नहीं के बराबर है और यहां बिजली आपूर्ति पूरी तरह से केंद्र के आवंटन पर निर्भर है। राज्य में पिछले कई सालों से बिजली की किल्लत है। बिजली का संचरण और वितरण बुरी स्थिति में है।
ऊर्जा मंत्रालय के तहत केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) हर राज्य में बिजली की स्थिति का सर्वेक्षण करता है। उसने अभी तक 17 सर्वेक्षण किए हैं। इनमें पाया गया है कि बिहार में मांग से काफी कम बिजली की आपूर्ति की जाती है।
पूर्वी क्षेत्र में बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और सिक्किम शामिल हैं। इस क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी की कुल उत्पादन क्षमता 5900 मेगावाट है- तलचर में 3460 मेगावाट, फरक्का में 1600 मेगावाट और कहलगांव में 840 मेगावाट।
बिहार सरकार के ऊर्जा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘ पूर्वी क्षेत्र को 1920 मेगावाट बिजली भूटान और सिक्किम की पनबिजली परियोजना से मिलती है। इसमें से बिहार को मात्र 361 मेगावाट बिजली ही मिल पाती है।
इस तरह अभी बिहार के हिस्से में 1170 मेगावाट बिजली आती है। एनटीपीसी के थर्मल प्लांट की क्षमता 5900 मेगावाट है पर बनती महज 4915 मेगावाट ही है। इसमें से बिहार को 674 मेगावाट ही मिलती है।’
प्रदेश में बिजली उत्पादन के विकास, इसकी आपूर्ति और वितरण का जिम्मा बिहार राज्य बिजली बोर्ड (बीएसईबी) को है। इसके तहत अलग अलग जिलों में बिजली बोर्ड बनाए गए हैं। राज्य में बिजली उत्पादन को लेकर कई कंपनियों ने रुचि दिखाई है।
अगर ये सारी परियोजनाएं चालू हो जाती हैं तो कुल 10,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होने लगेगा। पर ये आंकड़ा दूर की कौड़ी ज्यादा लगता है। बिहार ऊर्जा विभाग के सचिव राजेश गुप्ता कहते हैं, ‘बिहार में बिजली आपूर्ति दुरुस्त करने के लिए कई योजनाओं के प्रस्ताव हैं। इनमें निवेश के लिए कई निजी कंपनियां इच्छुक हैं। उम्मीद करते हैं कि एक दशक में भी अगर ये परियोजनाएं शुरू हो गईं तो बिहार की बिजली जरूरतें पूरी हो जाएगी।’