देश का सबसे विकसित राज्य पंजाब भी बिजली की किल्लत से परेशान है। इसका सीधा कारण राज्य में बिजली की खपत का राष्ट्रीय औसत से ज्यादा होना है।
पंजाब में बिजली की औसत खपत 972 यूनिट है जबकि राष्ट्रीय औसत 700 यूनिट है। साफ शब्दों में कहें कि राज्य में बिजली की उत्पादन क्षमता 6200 मेगावाट है जबकि बिजली की मांग लगभग 9200 मेगावाट है।
राज्य ने बिजली की इस किल्लत को दूर करने के लिए अगले चार-पांच वर्षो में 4500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली पैदा करने का लक्ष्य बनाया है। राज्य में बिजली की मांग प्रतिवर्ष 10 फीसदी की दर से बढ़ रही है। पिछले साल बिजली की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए पंजाब ने दूसरे राज्यों से लगभग 6000 करोड़ रुपये की बिजली 6 से 10 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीदी थी।
अभी राज्य में बिजली की कटौती भिन्न-भिन्न स्थानों में लगभग 1 से 7 घंटे तक हो रही है। ग्रामीण इलाकों में बिजली की कटौती शहरी इलाकों की अपेक्षा ज्यादा है। कुछ दिनों पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने बिजली क्षमता को बढ़ाने के लिए 270 मेगावाट क्षमता वाला गुरू हरगोविंद थर्मल प्लांट (3 इकाइयों )का उद्धाटन किया है।
इस योजना का चौथा चरण जुलाई 2008 में पूरा हो गया है। ऐसे में राज्य की कुल बिजली क्षमता 420 मेगावाट से बढ़कर 920 मेगावाट हो गई है। कुछ ही वर्षो में पंजाब की योजना बिजली क्षमता में अतिरिक्त 3840 मेगावाट जोड़ने की है। इसके लिए पंजाब 1980 मेगावाट की क्षमता वाला एक ताप विद्युत संयंत्र तलवंडी साबू में और 1200 मेगावाट का एक ताप विद्युत संयंत्र राजपुरा में स्थापित करने की योजना बना रहा है।
यह बिजली इकाइयां अगले तीन से चार सालों के भीतर काम करना शुरू कर देगी। इसके अलावा 540 मेगावाट के गोविंदवाल साहिब तापविद्युत योजना का निर्माण कार्य भी जल्द ही शुरू हो जाएगा। इसके अतिरिक्त राज्य ने 3000 और 1000 मेगावाट के दो संयंत्र गिद्दड़बाहा और मुकेरियां में लगाने की भी योजना बनाई है।
इसके अलावा राज्य सरकार ने 5175 मेगावाट की अतिरिक्त बिजली की मांग विभिन्न राज्यों में लगाई जाने वाली अन्य बिजली परियोजनाओं से पूरी करने की भी योजना बनाई है। अभी केन्द्र द्वारा चलाई जा रही बिजली परियोजनाओं में पंजाब का हिस्सा 1917 मेगावाट का है। इसके अलावा राज्य ने 1000 मेगावाट तक बिजली कृषि के अपशिष्ट पदार्थो से पैदा करने की भी योजना बनाई है।