उत्तर प्रदेश में एक बार फिर आलू किसानों के सामने कीमतों का संकट खड़ा होने लगा है। बंपर फसल के अनुमान के साथ ही इस बार भी बाजार में दामों के गिरने का सिलसिला शुरू हो गया है।
फरवरी के पहले हफ्ते से ही प्रदेश में आलू की अगैती फसल बाजार में आनी शुरू हो गयी है और उसी के साथ ही दामों का गिरना भी। इस बार फसल के बोने के समय अक्टूबर में हुई बारिश के चलते अगैती आलू की फसल खराब भी हुई थी। इसके बाद किसानों ने दोबारा आलू बोया और बंपर पैदावार की उम्मीद जाग गई थी। बीते साल खुले बाजार में आलू की कीमत 25 से 30 रुपये किलो तक पहुंच गई थी। अच्छी कीमत की आस लगाए बैठे किसानों ने एक बार बीज खराब हो जाने के बाद भी दोबारा बुआई की थी।
हालांकि इस सीजन में अगैती की फसल के बाजार में आते ही दामों का गिरना भी शुरू हो गया है। किसानों का कहना है कि मंडी में आलू 7-8 रुपये किलो बिक रहा है जबकि उनसे खरीद बमुश्किल 5-6 रुपये किलो पर की जा रही है। उनका कहना है कि बाजार में हालात बीते साल से भी खराब है जब कम से कम 10 रुपये किलो का भाव अगैती फसल को मिला था। आलू की पछैती फसल अगले 15 दिनों में बाजार में होगी और तब कीमतें और भी नीचे जाएंगी।
हाथरस में आलू के बड़े आढ़ती पवन कुमार सलूजा बताते हैं कि इस बार वायदा भाव ही कम चल रहा है तो उम्मीद की जा सकती है मार्च में होली के आसपास किसानों को आलू पांच रुपये ही बेचना पड़ेगा। हालांकि उनका कहना है कि अभी खुले बाजार में उपभोक्ताओं को आलू 15 रुपये किलो से कम नहीं मिल रहा है पर आने वाले दिनों में इसमें भी गिरावट दिखेगी। सलूजा बताते हैं कि इस बार अगैती की फसल आने से पहले से ही बाहरी राज्यों से आलू की आमद शुरू हो गई। सबसे पहले कर्नाटक से आलू आना शुरूहुआ और फिर अन्य राज्यों से। ऐसे में उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए नुकसान की स्थिति आ गई।
आलू किसान करण सिंह बताते हैं कि डाई खाद, बीज, गुड़ाई, बुआई और सिंचाई के बाद आलू की उत्पादन लागत कम से कम 7 रुपये किलो बैठ रही है। बाजार में भाव के वर्तमान हालात पर उन्हें घाटा ही हो रहा है। कोल्डस्टोरों में भंडारण का खर्चा बहुत आ रहा है जो कम से कम 230 रुपये बोरा बैठता है।
उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में इस बार आलू का रकबा बढ़ा है और पैदावार भी बढ़ेगी। इस सीजन में विभाग ने आलू बुआई का लक्ष्य 6.20 लाख हेक्टेयर रखा था जिसके मुकाबले 6.22 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है। इस साल आलू की पैदावार भी 160 लाख टन के पार जाने का आकलन है जो बीते साल से दो लाख टन ज्यादा है।
आलू किसानों की बदहाली को देखते हुए प्रदेश मे विधानसभा चुनावों के मौके पर राजनीतिक दलों नें सरकारी खरीद और न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग उठानी शुरू कर दी है।
