उत्तर भारतीय बनाम मराठी अस्मिता की जंग में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने वाले मीडिया को भी निशाना बनाया गया।
कुछ जगहों पर उपद्रवियों के गुस्से का शिकार मीडियाकर्मी हुए तो कई जगह सीधा प्रसारण करने की कोशिश कर रहे समाचार चैनलों की ओ.बी वैन को निशान बनाया गया। क्षेत्रवाद की इस आग में पत्रकारों को भी पक्षपात के आरोप झेलने पड़े।
कुछ नेताओं ने भाषा के आधार पर मीडिया को बांटने की कोशिश की तो कुछ ने गैरजिम्मेदाराना प्रसारण का आरोप लगाते हुए बहिष्कार करने और प्रसारण पर रोक तक की मांग कर डाली।
महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद की राजनीति कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार ताजा विवाद फरवरी में उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस के बाद से शुरू हुआ। कुछ उत्तर भारतीय नेताओं ने मुंबई में उत्तर प्रदेश दिवस धूम धाम से बनाया, जिसमें शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उध्दव ठाकरे भी शामिल थे।
इसके बाद ही उत्तर भारतीयों नेताओं पर मुंबई के कुछ नेताओं ने आरोप लगाने शुरू कर दिए कि मुंबई में उत्तर प्रदेश या बिहार दिवस अथवा छठ पूजा के बहाने ये लोग अपने बाहुबल का प्रदर्शन करते हैं जिसे किसी भी कीमत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके बाद राज्य में अपनी जमीन तलाशती महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और समाजवादी पार्टी के नेताओं के बीच वाकयुध्द शुरू हो गया जो धीरे-धीरे बढ़ता गया।
समाचार पत्रों और समाचार चैनलों को भी लगभग हर दिन गरमागरम मसाला मिलने लगा। नेताओं को लगा कि मीडिया जरुरत से ज्यादा मामले को तूल दे रहा है। नतीजतन, नेताओं के गुस्से का शिकार मीडिया भी हुआ। मनसे नेताओं ने तो कह भी दिया कि हम न तो हिंदी न्यूज चैनलों से बात करेंगे और न ही अपनी पत्रकार वार्ता में उन्हें बुलाएगे।
उनका कहना था कि हिन्दी और अंग्रेजी मीडिया एकतरफा और हमारी नेगेटिव न्यूज ही दिखाता है, इसलिए इनसे बात करने का कोई फायदा नहीं है, इनको जो दिखाना हो, दिखाने दो। इस बयान के बाद न्यूज चैनलों के मीडियाकर्मियों और संवाददाताओं पर हमले होने लगे। पिछले कुछ महीनों में अलग अलग न्यूज चैनलों की चार ओ.बी. वैन तोड़ी गई, कई कैमरामैन और संवाददाताओं को उनके गुस्से का शिकार होना पड़ा।
सबसे ज्यादा आईबीएन-7 के कैमरामैन सचिन पेडनेकर और एक हिन्दी समाचार पत्र के संवाददाता दीनानाथ तिवारी को चोट लगी। सचिन के अनुसार कल्याण कोर्ट में जब राज ठाकरे को पेश किया जा रहा था तो कुछ लोग दुकानों में लूटपाट कर रहे थे, मैं उन दृश्यों को कवर करना चाहता था, तभी कुछ लोगों ने मुझ पर हमला कर दिया, वे कैमरा छीन ले गए और चोट लगने से मैं वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा, होश आया तो मैं अस्पताल में था।
सवाल उठता है कि क्या सच में मीडिया गलत रास्ते पर है? मराठी चैनल आईबीएन लोकमत के संपादक निखिल वागले कहते हैं कि पिछले कुछ महीनों से विशेषकर हिंदी मीडिया ने एकतरफा बात की है, उससे मराठी लोगों का इन चैनलों से विश्वास उठ गया है और इसी का नतीजा है कि हिंदी मीडिया पर हमले हो रहे हैं जो कि गलत है।
उनका कहना है कि कोई भी गलत हो तो उसके बारे में न्यूज दिखाना चाहिए लेकिन समाज का आईना कहलाने वाले लोगों को अपनी भाषा पर भी ध्यान देना होगा, इसे इस समाज के लोगों को अघात पहुंचता है। आज मराठी लोगों को लगने लगा है कि ज्यादातर न्यूज चैनल गलत खबरों का प्रसारण करते हैं।
इस पर एनडीटीवी मुंबई के समाचार संपादक अभिषेक शर्मा कहते हैं कि प्रेस की आजादी में कोई दखल नहीं होना चाहिए। जो लोगों पक्षपात की बात करते हैं, दरअसल उनके स्वार्थों की पूर्ति नहीं हो पा रही है। ज्यादातर राष्ट्रीय न्यूज चैनलों के ही रीजनल चैनल हैं, ऐसे में अगर उनके नीयत में शंक किया जाए तो गतल होगा।
सचाई कड़वी होती है जिसे राजनीतिक पार्टियां देखना पसंद नहीं करती हैं और अपने लोगों से मीडिया पर हमला करवाती हैं। एक बात ध्यान देनी होगी कि मीडिया पर हमले जनता नहीं करती है क्योंकि वह तो जनता के साथ है।
सामना के कार्यकारी संपादक और शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत कहते हैं कि इलेक्ट्रनिक मीडिया काफी गैरजिम्मेदाराना ढंग से प्रसारण करता है। राज्य की बाहर जो छवि खराब हुई है, उसके लिए काफी हद तक टी वी मीडिया जिम्मेदार है।
मीडिया की स्वतंत्रता का समाज तोड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, इनसे निपटने के लिए कुछ जरुरी कदम तो उठाने ही पड़ेंगे। वरिष्ठ पत्रकार एवं हमारा महानगर के संपादक द्विजेन्द्र तिवारी के अनुसार मीडिया निशाने पर तब होता है, जब किसी का स्वार्थ पूरा नहीं होता है और ऐसे लोगों को लगता है कि सबसे बुरा मीडिया ही है। मीडिया का काम है कि सच्चाई समाज के सामने लाए।
महाराष्ट्र में जो चल रहा है, मीडिया ने उसकी सच्ची तस्वीर पेश की है। रही बात इलेक्ट्रानिक मीडिया की, तो लोगों को यह सोचना होगा कि वह दिन भर में लगभग 24 विजुअल अखबार निकालता है, इसलिए एक खबर का कई बार प्रसारण होना लाजिमी है। (समाप्त)