Bullet Train: भारत की पहली बुलेट ट्रेन यानी मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (MAHSR) प्रोजेक्ट के सिग्नलिंग सिस्टम के लिए Siemens और भारतीय कंपनी DRA Infra की ज्वाइंट वेंचर ने सबसे सस्ती बोली लगाई है। इस ज्वाइंट वेंचर ने ₹4,140 करोड़ की बोली दी है।
इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए दो कंपनियों ने बोली लगाई थी, जिसमें दूसरी कंपनी फ्रांस की Alstom और भारत की L&T की ज्वाइंट वेंचर थी। इन्होंने लगभग ₹12,700 करोड़ की बोली लगाई थी। सरकार और इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों के अनुसार, यह बोली अंतर काफी चौंकाने वाला है।
बाजार के जानकारों को हैरानी है कि दोनों ही कंपनियां अनुभवी हैं, फिर भी एक की बोली दूसरी से तीन गुना कम कैसे हो सकती है। ICICI सिक्योरिटीज के मोहित कुमार ने कहा, “इतना बड़ा अंतर बहुत हैरान करने वाला है। हम अभी और जानकारी का इंतज़ार कर रहे हैं कि Siemens की बोली का स्कोप क्या है।”
भारत ने यह फैसला किया है कि शुरुआती कुछ सालों तक बुलेट ट्रेन ‘स्वदेशी’ (भारत में बनी) होगी। सूत्रों के मुताबिक, इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत जिस भी कंपनी को ठेका मिलेगा, उसे यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (ETCS) लेवल-2 देना होगा। Siemens और Alstom दोनों इस तकनीक में माहिर हैं।
फिलहाल कॉन्ट्रैक्ट किसी को नहीं दिया गया है। यह फैसला एक टेंडर मूल्यांकन समिति द्वारा लिया जाएगा, जिसमें कुछ हफ्ते लग सकते हैं। सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि Siemens को अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।
Siemens ने कहा, “हम केवल बोली लगाने वालों में से एक हैं। जब तक टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं होती, हम कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।”
यह भी पढ़ें…रूस-यूक्रेन युद्ध होगा खत्म! ट्रंप-पुतिन के बीच हुई दो घंटे लंबी बातचीत
जनवरी में NHSRC ने यह टेंडर निकाला था। इसमें सिग्नलिंग सिस्टम, टेलीकम्यूनिकेशन सिस्टम और ऑपरेशन कंट्रोल सेंटर का डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग, इंस्टॉलेशन, टेस्टिंग और मेंटेनेंस शामिल है। रेल मंत्रालय ने चेन्नई के इंटीग्रल कोच फैक्ट्री को 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली दो ट्रेनें बनाने को कहा था। अक्टूबर में सरकार की कंपनी BEML को ₹867 करोड़ में इन दो हाई-स्पीड ट्रेन सेट्स के डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग का ऑर्डर मिला था। ये ट्रेनें 280 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक चल सकती हैं।
मुंबई-अहमदाबाद रूट पर किस वर्शन वाली जापानी शिंकानसेन ट्रेन चलाई जाएगी, इस पर बातचीत अभी जारी है। साथ ही, जमीन अधिग्रहण और मंजूरी में देरी के कारण यह प्रोजेक्ट अब 2030 के बाद ही शुरू हो पाएगा।