हिमाचल प्रदेश सरकार ने आखिरकार 8000 करोड़ रुपये लागत की 960 मेगावाट क्षमता वाली झंगी-थोपन पनबिजली परियोजना को डच की शीर्ष विद्युत कंपनी ब्राकेल कार्पोरेशन को आवंटित कर दिया है।
बुधवार को अधिकारियों ने बताया कि इस पनबिजली परियोजना को रद्द नहीं करने के लिए डच कंपनी ने बेहद सशक्त प्रस्तुतीकरण किया था। परियोजना आवंटन पर राज्य मंत्रिमंडल के अध्यक्ष मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने निर्णय मंगलवार को लिया।
हालांकि राज्य विद्युत सचिव ने अपनी जांच रिपोर्ट में राज्य सरकार से यह सिफारिश की थी कि वे ब्राकेल को आवंटित की जाने वाली परियोजना को रद्द कर दें। जांच रिपोर्ट में तर्क दिया गया था कि डच विद्युत कंपनी ब्राकेल ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया है और उसके पास पर्याप्त वित्तीय आधार भी नहीं है।
लेकिन इन आरोपों को ब्राकेल द्वारा उस वक्त खारिज कर दिया गया, जब ब्राकेल के अध्यक्ष डीन गेस्टरकेंप की अध्यक्षता में सात सदसीय समूह, दक्षिण अफ्रीका की निवेश समूह स्टैंडर्ड बैंक के डेविड स्मीथ, डर्बिन स्थित कार्बन क्रेडिट्स ट्रेडिंग कंपनी एकोस्कियूरिटीज, हालक्रो में लंडन इनर्जी इन्फ्रास्ट्रक्चर ओवरसिज के पॉल विलियम और अदानी समूह के संजय सागर ने कंपनी के मामले पर अनुरोध किया था।
राज्य में धूमल की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के लिए परियोजना के आवंटन पर फैसला एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। परियोजना के आवंटन के बाद ब्राकेल कार्पोरेशन के निदेशक अनिल वहल ने बताया, ‘आखिरकार न्याय की जीत हुई।’
उल्लेखनीय है कि इस साल जनवरी में नव निर्वाचित भाजपा सरकार ने ब्राकेल को 960 मेगावाट झांगी-थोपन परियोजना रद्द किए के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए कहा था। इस परियोजना को आदिवासी किन्नौर जिले में सतलज नदी पर बनाया जाना है।
लेकिन जल्द ही सरकार ने नोटिस खारिज करने का फैसला किया और कंपनी से ब्याज पूंजी के तौर पर 20 करोड़ रुपये के साथ ही 173 करोड़ रुपये स्वीकार कर लिया।
लेकिन एक बार फिर सरकार ने अपना रुख बदलते कंपनी को दूसरी बार नोटिस भेजा और कहा कि उन तथ्यों की जांच की जानी चाहिए जिसके आधार पर कंपनी को दिए जाने वाली परियोजना रद्द किया जा सके।
इस मामलों की जांच के लिए सरकार ने राज्य विद्युत सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन भी कर डाला।