बिहार में जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ होने के बाद भी मुस्लिम वोट पाने की उम्मीद है।
और अगर पार्टी मुस्लिम वोटों को काटने की ख्वाहिश रखती है तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि इसके पहले भी जदयू राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के इस वोट बैंक में सेंध लगा चुकी है।
एक सोची समझी रणनीति के तहत ही 2005 में जब नीतीश सरकार ने राज्य की सत्ता संभाली भी तो उसने मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी थी। जदयू का राज्य में क्या भविष्य रहेगा और पार्टी की भाजपा के साथ आने वाले दिनों में सांठ गांठ कैसी रहेगी, यह काफी हद तक मुस्लिम मतदाताओं के सहयोग पर निर्भर करेगा।
राज्य से लोकसभा की 10-12 सीटों का भविष्य तो काफी कुछ मुस्लिम मतदाताओं पर भी निर्भर करता है। फिर भी एक सवाल जिसका कोई दो टूक जवाब ढूंढ़ पाना मुश्किल है वह यह है कि क्या बड़े पैमाने पर मुस्लिम मतदाता नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को वोट देंगे। पर एक बात तो तय है कि राज्य भर में मुस्लिम मतदाता यह तो मानते हैं कि नीतीश सरकार ‘दोस्ताना’ रवैया रखती है।
उनका मानना है कि भले ही जदयू और भाजपा के बीच गहरा रिश्ता है पर बावजूद इसके पार्टी मुस्लिम समुदाय के साथ भी अच्छा रिश्ता निभा रही है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि नीतीश सरकार राजद से भी बेहतर है। शेख डुमरी गांव के जमींदार अब्दुल खलीक कहते हैं, ‘नीतीश कुमार की सरकार अच्छी है। उन्होंने हमारे लिए काफी काम किया है। अगले विधानसभा चुनाव में हम निश्चित रूप से उनके लिए काम करेंगे।’
पर मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए उनके विचार इससे जुदा हैं। खालिक कहते हैं, ‘इस चुनाव में पार्टी को वोट देने का मतलब है लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाना। इस वजह से कई सारे मुस्लिम नीतीश कुमार को वोट नहीं भी दे सकते हैं।’
वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार बिहार में मुस्लिम आबादी 1.01 करोड़ है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 15.7 फीसदी है। 1991 से 2001 के दौरान तो मुस्लिम जनसंख्या बढ़कर 1.3 करोड़ तक पहुंच गई थी। इधर, मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए नीतीश कुमार ने भी बहुत सोच समझ कर कदम उठाया है।
कुछ समय पहले अपनी पार्टी का घोषणापत्र जारी करते हुए उन्होंने कहा था, ‘हमने बिहार में अल्पसंख्यकों को ध्यान में रख कर जो 10 सूत्री कार्यक्रम तैयार किया है, उसकी झलक पूरे देश भर में दिखनी चाहिए। पिछड़े लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।’
जल्याण कल्याण कार्यक्रमों के अलावा नीतीश कुमार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भागलपुर दंगे की फाइल फिर से खुलवाई है और दंगा पीड़ितों को मुआवजा देने का ऐलान किया है। भागलपुर में दंगा पीड़ित राहत समिति के प्रमुख मोहम्मद खुर्शीद आलम कहते हैं, ‘हम नीतीश कुमार का समर्थन करते हैं। भागलपुर में मुस्लिम उनके लिए वोट करेंगे। हमें इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि हमारे वोट देने से कौन प्रधानमंत्री बन रहा है। नीतीश कुमार ने भागलपुर में दंगा पीड़ितों के लिए जो किया है, हम उसके लिए उनका शुक्रिया अदा करना चाहेंगे।’
आलम कहते हैं, ‘क्या लाल कृष्ण आडवाणी मुस्लिमों को भारत से बाहर करवा देंगे? वह ऐसा नहीं कर सकते हैं। और याद रखिए कि नीतीश कुमार के शासनकाल में राज्य में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है।’ भागलपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार और पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य सुबोध रॉय को भी इस बात का एहसास है।
वह कहते हैं, ‘उन्हें इसका फायदा तो मिलेगा। पर यह कहना गलत होगा कि बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट उनकी झोली में जाएंगे।’ नीतीश सरकार ने सितंबर 2008 से ही दंगा पीड़ित परिवारों के लिए पेंशन योजना लागू की है। इस योजना के तहत 277 प्रभावित परिवारों को 2500 रुपये दिए जा रहे हैं। वहीं 2006 में सरकार ने 855 लोगों के कर्ज भी माफ किए थे। हथकरघा के काम से जुड़े मुस्लिमों की बिजली का बिल भी माफ किया गया है। एक और राहत पैकेज सरकार से आखिरी मंजूरी का इंतजार कर रहा है।
नीतीश सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण योजनाओं का लक्ष्य तो रखा ही है, साथ ही एक और पहल जिससे उन्हें खास फायदा मिल सकता है वह कब्रगाहों की सीमा तैयार करना है।
इस बारे में एशियाई विकास शोध संस्थान के सदस्य सचिव सायबाल गुप्ता कहते हैं, ‘कई बार कुछ लोगों ने उस जमीन पर भी कब्जा जमाने की कोशिश की है जो कब्रगाह के दायरे में नहीं आती है और इस वजह से सांप्रदायिक हिंसा भड़क चुकी है। उन्होंने कब्रगाह को घेरने की जो योजना तैयार की है उससे सांप्रदायिक तनाव को कम करने में मदद मिलेगी।’
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री और वैशाली से राजद के उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी उनसे सीख लेते हुए अपनी संसदीय सीट में ऐसा ही कदम उठाया है। जहां खुर्शीद आलम को इस बात का पूरा भरोसा है कि भागलपुर में नीतीश सरकार ने जो कदम उठाया है उसका फायदा पार्टी को पूरे राज्य में मिलेगा, वहीं सीपीआई (एमएल) समेत दूसरी पार्टी के नेता इस तर्क को खारिज करते हैं। उनका मानना है कि अधिकांश संसदीय इलाकों में मुस्लिम मतदाता इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि गैर राजग उम्मीदवार ही उभर कर आए। वे उसी के लिए वोट करेंगे।
