देश के छोटे राज्यों के बीच छत्तीसगढ़ ‘एक मिसाल’ के रूप में उभर कर सामने आ रहा है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पिछले पांच सालों के दौरान राज्य में गैर योजना खर्च के मुकाबले योजनागत खर्र्च अधिक हो चुका है। साल 2003 में जब भाजपा सरकार ने राज्य का कार्यभार संभाला तो उस वक्त यानी 2003-04 के वित्त वर्ष के दौरान योजनागत मदों में 3,082.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे जबकि गैर योजनागत मदों में 5,090.98 करोड़ रुपये खर्च किया गया।
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कड़े राजकोषीय अनुशासन के साथ योजनागत और गैर योजनागत खर्चों के मानक अनुपात को स्थापित करने के लिए बड़ी छलांग का वादा किया था। 2007-08 के संशोधित अनुमानों के मुताबिक जहां गैर योजनागत मदों में 8027.58 करोड़ रुपये किया गया वहीं योजनागत मदों में यह खर्च बढ़कर 8659 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।
यही नहीं 2008-09 के बजट अनुमानों में योजनागत खर्चों के लिए 10154 करोड़ रुपये निर्धारित किया है वहीं राज्य में गैर योजनागत खर्चों के लिए 8131.29 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है। राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष डी एन तिवारी ने बताया, ‘यह किसी भी राज्य के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है कि वह योजनागत और गैर योजनागत खर्चों पर 60 और 40 फीसदी का अनुपात स्थापित कर ले।’
बहरहाल, पिछले पांच सालों के दौरान राज्य के कर और गैर कर राजस्व में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। साल 2003-04 में राज्य का कुल कर राजस्व 2588.25 करोड़ रुपये था जबकि गैर कर राजस्व 1124.42 करोड़ रुपये था। 2008-09 के बजट अनुमानों के मुताबिक जहां कर राजस्व 6537 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है वहीं गैर कर राजस्व के लिए 1819.39 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है।
इसके अलावा, छत्तीसगढ़ ने बारहवें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित किए गए 2008-09 की समय सीमा से बहुत पहले ही 2005-06 में ही शून्य राजस्व घाटे को हासिल कर लिया था।
राज्य का वित्तीय घाटा भी 3 फीसदी के भीतर ही बना हुआ है और पिछले तीन सालों में सरकार ने बाजार लोन भी कभी नहीं उठाया है।
डॉ. तिवारी ने बताया, ‘पिछले पांच सालों में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर लोगों की नियुक्तियां की गई है। राज्य में करीब 47,000 शिक्षाकर्मियों, लगभग 20,000 पुलिसकर्मियों और अन्य क्षेत्रों में भी नियुक्तियां की गई हैं। इसमें कोई शक नहीं कि विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नियुक्तियां देने से स्थापना खर्चों में भी बढ़ोतरी होगी।’
उन्होंने बताया कि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्य में गैर योजनागत मदों की तुलना में योजनागत मदों में ज्यादा खर्च किया गया है। हालांकि राज्य में नक्सलवाद अभी भी बड़ी समस्या बनी हुई है, जिससे पूरा भारत जल रहा है।
लेकिन राज्य सरकार नक्सल प्रभावित इलाकों में अच्छी तरह से बनाई गई योजना के परिचालन से नक्सलियों को पीछे धकेलने में सफल हुई है। पिछले पांच सालों में नक्सली हिंसा में 274 सुरक्षाकर्मी, 224 नक्सली और 778 नागरिकों की जान जा चुकी है।
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि नक्सली समस्या को खत्म करने के लिए राज्य सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा जब तक सत्ता में दोबारा नहीं आती तब तक इन लाल सेनाओं पर लगाम नहीं लगाया जा सकता है।
हालांकि विपक्षी कांग्रेस राज्य सरकार के राजकोषीय प्रबंधन से आश्वस्त नहीं है। कांग्रेस महासचिव रमेश वर्लयानी ने बताया, ‘राज्य सरकार ने बेवजह कई निगमों, बोर्ड और एजेंसियों का स्थापना की है, जिसकी वजह से राज्य के खजाने और स्थापना खर्चों पर बोझ बढ़ा है।’
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार की सबसे बड़ी विफलता है कि पिछले पांच सालों में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाले परिवारों की संख्या 1.7 मिलियन से बढ़कर 3.6 मिलियन तक पहुंच गई है।