उत्तराखंड की बहुप्रतीक्षित कृषि नीति की घोषणा के बाद उद्योगों को अपनी जमीन नहीं सौंपने के इच्छुक किसानों के चेहरे खिल गए हैं।
नई नीति में कृषि भूमि पर विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) और अन्य औद्योगिक परियोजनाओं की मंजूरी नहीं देने का फैसला किया गया है। राज्य सरकार ने हाल में कृषि नीति के मसौदे को फिर से तैयार किया था।
राज्य के कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बताया कि ‘मसौदा कृषि नीति में साफ तौर पर कहा गया है कि उत्तराखंड में कृषि भूमि पर किसी तरह का औद्योगीकरण नहीं किया जाएगा।’ हालांकि मसौदा नीति को मंजूरी के लिए कैबिनेट के सामने रखने से पहले इसे मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी के पास भेजा जाएगा।
रावत ने बताया कि ‘औद्योगीकरण के लिए कृषि भूमि के इस्तेमाल के मामले में अंतिम फैसला राज्य कैबिनेट के द्वारा ही किया जाएगा।’ रावत हाल में राज्य सरकार द्वारा टाटा मोटर्स की हाउसिंग परियोजना के लिए 55 एकड़ कृषि भूमि दिए जाने का विरोध करने के बाद चर्चा में आए थे।
रावत ने प्रस्ताव किया है कि खेतों का इस्तेमाल औद्योगीकरण के लिए नहीं किया जाए और सरकार को इसके लिए ऐसी जमीन का इस्तेमाल करना चाहिए जिस पर खेतीबाड़ी का काम नहीं होता हो। रावत ने कहा कि उत्तराखंड में करीब 3.12 लाख हेक्टेयर गैर-कृषि भूमि और 3.83 लाख गैर-उपजाऊ भूमि मौजूद है।
उन्होंने कहा कि नीति का मसौदा फिर से तैयार किया गया है और राज्य कैबिनेट की मंजूरी से पहले इसे वित्त मंत्रालय और मुख्यमंत्री के सामने पेश किया जाएगा। बीते साल कृषि वैज्ञानिकों के एक दल ने कृषि नीति के मसौदे को अंतिम रूप दिया था। इस मसौदे में साफ तौर पर कहा गया है कि कृषि भूमि पर किसी भी तरह का औद्योगीकरण और सेज का विकास नहीं होना चाहिए।
हालांकि बाद में मुख्यमंत्री और रावत के निर्देशों के बाद कुछ संशोधनों के लिए नीति का मसौदा फिर से तैयार किया। नई नीति में खास तौर से कहा गया है कि सरकार उपजाऊ जमीन को बचाने के लिए विशेष कृषि क्षेत्र (एसएजेड) का विकास करे।
रावत ने बताया कि ‘हम अपनी कृषि को बचाना चाहते हैं और इसके लिए उत्तराखंड में एसएजेड को लाना चाहते हैं।’ दूसरी ओर आधिकारिक सूत्रों ने बताया है कि एसएजेड का विचार विशेष आर्थिक क्षेत्र की जगह लेने के लिए नहीं आया है। उल्लेखनीय है कि गोवा, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में सेज का काफी विरोध देखने हुआ है।