मध्य प्रदेश के बंटवारे के पहले की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो दिसंबर 1993 तक राज्य में कुल स्थापित ताप और जलविद्युत क्षमता 3,284 मेगावाट थी।
राज्य सरकार ने 1998 तक इसमें 532 मेगावाट और जनवरी 1999 से 2003 के बीच 535 मेगावाट जोड़ी। इस तरह बंटवारे के बाद 2003 में मध्य प्रदेश के पास 2990 मेगावाट की स्थापित विद्युत क्षमता थी।
भाजपा शासित इस राज्य में 2005 से बिजली उत्पादन क्षमता में सुधार आना शुरू हुआ और साढ़े तीन सालों के अंदर इसमें अतिरिक्त 2741 मेगावाट क्षमता जोड़ी गई। सरकार उम्मीद कर रही है कि 11 वीं पंचवर्षीय योजना के तहत अप्रैल 2007 और 2012 के बीच 8184 मेगावाट विद्युत क्षमता जोड़ी जा सकेगी।
राज्य में बिजली की दशा में तब बदलाव आना शुरू हुआ जब जनवरी 2004 में 1000 मेगावाट वाली इंदिरा जलविद्युत परियोजना की दो इकाइयों से बिजली उत्पादन किया जाने लगा। इन इकाइयों ने 2004-05 में पूरी क्षमता के साथ उत्पादन शुरू कर दिया।
इसी तरह 520 मेगावाट वाली ओंकारेश्वर जलविद्युत परियोजना की शुरुआत जुलाई 2007 में, सरदार सरोवर कनाल हेड परियोजना की शुरुआत 2004-05 में और सरदार सरोवर रिवर बेड परियोजना की 200 मेगावाट की 6 इकाइयों की शुरुआत फरवरी 2005 में की गई। इस परियोजना की सभी 6 इकाइयों ने जून 2006 में काम करना शुरू किया।
हालांकि राज्य को तापविद्युत परियोजनाओं की शुरुआत करने में कुछ अड़चनों का सामना करना पड़ा और इस वजह से दो ताप विद्युत स्टेशनों के विस्तार का कार्यक्रम अब तक पूरा नहीं हो पाया है। भेल ने 500 मेगावाट वाली बीरसिंहपुर विद्युत परियोजना और 210 मेगावाट की अमरकंटक तापविद्युत परियोजना की शुरुआत की थी पर राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक तनातनी के कारण इन परियोजनाओं में बिजली का उत्पादन अब तक अपनी पूरी क्षमता के साथ नहीं हो पा रहा है।
पूर्वी मध्य प्रदेश के खंडवा में 1,000 मेगावाट की मालवा तापविद्युत इकाई स्थापित करने और यहां उत्पादन शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। 500 मेगावाट वाले सारणी तापविद्युत ऊर्जा स्टेशन के विस्तार पर भी विचार विमर्श जारी है।
वहीं मध्य प्रदेश ट्रांसमिशन कंपनी शाहपुरा तापविद्युत ऊर्जा स्टेशन में पहले चरण में 200 मेगावाट और दूसरे चरण में 1500 मेगावाट क्षमता पर काम करने की तैयारी में है। इसके अलावा गांधी सागर, चंबल, कानन और सोन जलविद्युत परियोजनाओं पर भी विचार किया जा रहा है।
राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार नौकरशाही अड़चनों की वजह से 22 निजी ऊर्जा कंपनियों से निवेश हासिल नहीं कर पाई थी पर मौजूदा भाजपा सरकार ने निजी ऊर्जा कंपनियों को आकर्षित करने के लिए नई ऊर्जा नीतियां बनाई हैं।
ऊर्जा विभाग के सचिव संजय बंद्योपाध्याय ने बताया, ‘निजी कंपनियां एक करोड़ रुपये के निवेश से राज्य में करीब 26,000 मेगावाट क्षमता वाली विद्युत परियोजनाएं शुरू करने की तैयारी में हैं और इनमें से कुछ कंपनियों ने काम शुरू भी कर दिया है। ‘
रिलायंस पावर राज्य में 4,000 मेगावाट की मेगा बिजली परियोजना शुरू करने जा रही है। इसके अलावा कई दूसरी निजी कंपनियां भी परियोजनाएं शुरू करने की कतार में हैं। अगर निवेश की बात करें तो मार्च 2007 में राज्य को एशियाई विकास बैंक की ओर से बिजली उत्पादन और वितरण की व्यवस्था में सुधार के लिए 1450 करोड़ रुपये का ऋण प्राप्त हुआ था।
राज्य सरकार ने भी बिजली की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए 2007-08 में 653 करोड़ रुपये और 2008-09 में 1092 करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बनाई है। अगली पंचवर्षीय योजना के तहत बिजली वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए 9713 करोड़ रुपये निवेश किये जाने हैं।