राजधानी में 100 वर्ग मीटर से ज्यादा क्षेत्रफल वाले मकानों के निर्माण में रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानी वर्षा जल संचयन का प्रावधान करना अनिवार्य है।
इस संबंध में दिल्ली सरकार के शहरी विकास एवं गरीबी उन्मूलन विभाग ने 2001 में अधिसूचना जारी की थी। लेकिन वास्तविकता यह है कि आज दिल्ली में अधिकांश मामलों में इस अधिसूचना का पालन नहीं किया जा रहा है।
विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र (सीएसई) के रेन वाटर हार्वेस्टिंग विभाग के सहसंयोजक सलाहुद्दीन का कहना है कि इस अधिसूचना के तहत तयशुदा मानक से ज्यादा का मकान बनवाते वक्त दिल्ली के निवासियों को एमसीडी (दिल्ली नगर निगम), डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) और एनडीएमसी (नई दिल्ली नगर पालिका परिषद) से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य था।
लेकिन उचित नियत्रंक प्रणाली के अभाव के चलते अब इस अधिसूचना का उल्लंघन होना बहुत आसान हो गया है। सीएसई के आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली की 1 करोड़ 60 लाख जनसंख्या के लिए प्रतिदिन 83 करोड़ गैलन पानी की जरुरत होती है। जबकि आपूर्ति केवल 65 करोड़ गैलन पानी की हो पाती है। इसमें भी लीकेज जैसी समस्याओं के कारण 19 करोड़ गैलन पानी व्यर्थ में बह जाता है।
और अंत में दिल्ली के लोगों को 46 करोड़ गैलन पानी ही मिलता है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कुछ महीनों पहले यह बताया था कि दिल्ली वासियों की जल मांग 2011 के अंत तक बढ़कर 160 करोड़ गैलन प्रतिदिन हो जाएगी।
मांग बढ़ने का सीधा प्रभाव भूमिगत जल के उपभोग पर पड़ने लगेगा और पानी की विकट समस्या दिल्ली के सामने उठ खड़ी होगी। सलाहुद्दीन बताते है कि दिल्ली में प्रतिवर्ष 600 मिलीमीटर वर्षा प्रतिवर्ष होती है।