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छोटी परियोजनाओं पर बड़ी बाधा

Last Updated- December 10, 2022 | 11:51 PM IST

उत्तराखंड में बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं पर पर्यावरण मसलों को लेकर ग्रहण तो पहले से लगा हुआ था ही, अब मंदी और आगामी लोकसभा चुनाव ने लघु और सूक्ष्म जलविद्युत इकाइयों की राह भी मुश्किल कर दी है।
राज्य में जिन लघु और सूक्ष्म जलविद्युत इकाइयों के लिए बोलियां मंगाई गई थीं, वे किन कंपनियों की झोली में जाएंगी इसका पता लगाने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है। मौजूदा माहौल में इन परियोजनाओं के लिए जो बोलियां आई हैं, उन पर कोई फैसला लेने में दो महीनों से अधिक का समय लग सकता है।
उत्तराखंड जलविद्युत निगम लिमिटेड को सूक्ष्म और लघु जलविद्युत परियोजनाओं के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र से 800 से अधिक बोलियां मिली हैं। इन परियोजनाओं के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख 27 दिसंबर थी। विद्युत निगम लिमिटेड ने इन परियोजनाओं के लिए बोलियां पिछले साल सितंबर से ही मंगानी शुरू कर दी थीं।
हालांकि शुरुआत में कंपनियों की ओर से इन परियोजनाओं को लेकर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाने की वजह से कई बार बोली जमा करने की आखिरी तारीख बढ़ानी पड़ी थी। बाद में राज्य सरकार ने ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को इन परियोजनाओं की तरफ आकर्षित करने के लिए शर्तों में थोड़ी ढील भी दी थी। और सरकार को इसका फायदा भी देखने को मिला था।
कई सारी कंपनियों ने इन परियोजनाओं के लिए उत्साह दिखाया। पर तब तक जलविद्युत परियोजनाओं पर मंदी का असर दिखना शुरू हो चुका था। एक अधिकारी ने बताया, ‘हम बाजार की हालत सुधरने का इंतजार कर रहे हैं।’
वहीं आगामी लोकसभा चुनाव को भी इन परियोजनाओं में विलंब का कारण बताया जा रहा है। बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर तो राज्य सरकार पहले से ही परेशान चल रही है और यही वजह है कि अब वह सूक्ष्म और लघु जलविद्युत परियोजनाओं की ध्यान दे रही है।
सरकार इन परियोजनाओं के जरिए राज्य में 1,100 मेगावाट बिजली का उत्पादन करना चाहती है। सरकार इन सूक्ष्म और लघु परियोजनाओं के लिए स्थानीय उद्यमियों और ग्राम पंचायतों को बढ़ावा दे रही है ताकि उनमें से ही कुछ लोग निकलकर इन परियोजनाओं का भार उठा सकें। ऐसा करने के लिए राज्य सरकार ने पिछले वर्ष नई नीति के तहत कुछ रियायतों की घोषणा भी की थी।

First Published - April 8, 2009 | 11:46 PM IST

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