बांग्ला दुनिया की छठी सबसे बड़ी भाषा है। लेकिन मार्केटिंग कुशल और धन के अभाव में बांग्ला फिल्म उद्योग दूसरे क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों के मुकाबले काफी पीछे है।
दीगर बात है कि दुनिया भर में बंगाली लोग फैले हुए हैं। फिल्म निर्देशक गौतम घोष ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बताया कि एक साल में करीब 40 से 45 बंगाली फिल्में रिलीज होती हैं। इनमें से ज्यादातर फिल्में छोटे बजट की होतीं हैं, जिन पर 70 लाख से लेकर 2 करोड़ रुपये तक का खर्च आता है।
उन्होंने बताया कि मार्केटिंग कुशलता, कार्पोरेट प्रायोजक और बजटीय समर्थन के अभाव में ज्यादातर फिल्में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर दर्शकों का ध्यान खीचने में असफल रहती हैं। बंगाली फिल्म उद्योग पूरी तरह से असंगठित है। फिल्म उद्योग को लागत को कम करने वाली तकनीक और दक्ष लोगों की सख्त जरुरत है ताकि संभावित बाजारों में उत्पादों की मार्केटिंग और बिक्री की जा सके।
उन्होंने कहा कि तमिल और तेलगू फिल्म उद्योग की तस्वीर काफी अगल है। घोष ने बताया कि बांग्लादेश, अमेरिका, पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में बंगाली फिल्मों का अच्छा बाजार है लेकिन बेहतर मार्केटिंग और प्रबंधन के अभाव में इससे फायदा नहीं उठाया जा सका है।
सीआईआई के पूर्व क्षेत्र के अध्यक्ष संदीपन चक्रवर्ती ने बताया कि फिल्म बाजार से दुनिया भर के वितरकों, निर्माताओं, मार्केटिंग करने वालों और मीडिया कंपनियों को खरीद-फरोख्त करने या आपसी सहयोग कायम करने में मदद मिलेगी। सीआईआई ऐसे आयोजनों के जरिए बंगाली फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने की कोशिश कर रहा है।
सीआईआई ने अर्नेस्ट एंड यंग के साथ मिलकर 2007 में बंगाली सिनेमा पर एक अध्ययन किया था और बताया था कि बदहाल बुनियादी सुविधा, कमजोर मार्केटिंग और वितरण तथा आत्मघाती प्रतिस्पर्धा के कारण बंगाली फिल्म उद्योग पिछड़ रहा है। बांग्ला फिल्मों के लिए झारखंड, असम और उड़ीसा में भी अच्छा बाजार है।