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Women’s Day 2025: कार्यस्थलों पर महिलाओं की बाधाएं हों कम

कार्यबल में महिलाओं की अधिक भागीदारी से भारत की समग्र आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है जिसका विकसित भारत @ 2047 के लक्ष्य में योगदान होगा।

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अमित निर्मल   
सविंद्र सिंह   
Last Updated- March 07, 2025 | 11:00 PM IST

कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बहुत महत्त्वपूर्ण है जो न केवल देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देती हैं बल्कि इससे विभिन्न उद्योगों के कार्यस्थल में भी विविधता आती है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, वर्ष 2023-24 की सर्वेक्षण अवधि के दौरान महिलाओं की कार्यबल भागीदारी 40.3 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों के लिए यह 76.3 प्रतिशत थी। हालांकि वर्ष 2017-18 से महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में लगातार सुधार हुआ है लेकिन इसमें और सुधार की काफी गुंजाइश है। कार्यबल में महिलाओं की अधिक भागीदारी से भारत की समग्र आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है जिसका विकसित भारत @ 2047 के लक्ष्य में योगदान होगा।

पीएलएफएस का रुझान: पीएलएफएस पिछले छह वर्षों में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में महत्त्वपूर्ण सुधार को दर्शाता है जो आबादी में उन महिलाओं का प्रतिशत है जो कार्यरत हैं या काम की तलाश में हैं। वर्ष 2017-18 में महिलाओं के लिए एलएफपीआर 23.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 41.7 प्रतिशत हो गया। इसी तरह, महिलाओं की कार्यबल भागीदारी वास्तव में कार्यरत लोगों को ही मापती है जो वर्ष 2017-18 के 22 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 40.3 प्रतिशत हो गई।

महिलाओं के रोजगार में आई तेजी शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक हुई। ग्रामीण क्षेत्रों में, महिलाओं के रोजगार में वर्ष 2023-24 में 46.5 फीसदी की तेजी आई जो वर्ष 2017-18 के 23.7  फीसदी से अधिक है और यह करीब 23 फीसदी की बढ़ोतरी को दर्शाता है। वहीं शहरी क्षेत्रों में महिलाओं का रोजगार 2017-18 के 18.2 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 26 प्रतिशत हो गया जो करीब 8 फीसदी की बढ़ोतरी को दर्शाता है।

इसमें अहम प्रगति जरूर दिखी है लेकिन बच्चों की देखभाल और व्यक्तिगत प्रतिबद्धताओं जैसी चुनौतियां महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को प्रभावित करती हैं। हालांकि उच्च शिक्षा तक बढ़ती पहुंच और सरकारी पहलों से मिलने वाला समर्थन धीरे-धीरे इन बाधाओं को भी कम कर रहा है। अब कुछ उन महत्त्वपूर्ण वजहों पर विचार करते हैं जिसके चलते महिलाओं की कार्यबल भागीदारी नहीं हो पाती हैः

बच्चों की देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियांः वर्ष 2020-2024 के लिए पीएलएफएस डेटा उन कारकों को उजागर करता है जिसके चलते महिलाएं कार्यबल से दूर हो जाती हैं। इससे उन क्षेत्रों की अहम जानकारी मिलती हैं जहां नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता होती है। इन कारकों में सबसे प्रमुख, बच्चों की देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियां हैं जो महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में लगातार सबसे बड़ी बाधा बन रही हैं। वर्ष 2023-24 में 43.04 प्रतिशत महिलाओं ने काम न करने के लिए इन जिम्मेदारियों को मुख्य कारण बताया। यह वर्ष 2022-23 से थोड़ा कम है लेकिन ये आंकड़े महिलाओं के आर्थिक अवसरों पर घरेलू काम के लगातार प्रभाव को रेखांकित करते हैं।

इस चुनौती से निपटने के लिए, कुछ ऐसी नीतियां अधिक महिलाओं को कार्यबल से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं जिनके चलते घरेलू जिम्मेदारियां कम होती हैं जैसे कि क्रेच सुविधा का विस्तार और काम के लचीले तरीकों को बढ़ावा देना आदि। मूल विचार यह है कि बच्चों की देखभाल से जुड़ी सुलभ सुविधाओं से महिलाओं को काम और पारिवारिक जीवन को संतुलित करने में मदद मिल सकती हैं जिससे आर्थिक गतिविधियों में उनकी अधिक भागीदारी सुनिश्चित होगी।

जनवरी 2024 में, श्रम और रोजगार मंत्रालय ने नियोक्ताओं को महिला-पुरुष समानता को बढ़ावा देने और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से एक सुझाव दिया था। इसकी प्रमुख सिफारिशों में से एक ‘वर्किंग वीमन हब’को महिलाओं के लिए साझा कार्यस्थल के रूप में स्थापित करना था। ये केंद्र शहरी, कस्बाई और उपनगरीय क्षेत्रों में बनाने का प्रस्ताव था ताकि महिला श्रमिकों के लिए आने-जाने के समय को कम किया जा सके। इसके अतिरिक्त, सलाह यह दी गई कि कामकाजी माताओं को समर्थन देने के लिए इन केंद्रों के भीतर ही क्रेच सुविधाएं दी जाएं। ‘घर के पास काम’वाले मॉडल को सुविधाजनक बनाकर, इन केंद्रों की आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में अहम योगदान देने की उम्मीद है।

पढ़ाई जारी रखने की इच्छा: आंकड़ों में एक और अहम रुझान दिख रहा है कि अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए कार्यबल से बाहर होने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। शिक्षा को कारण बताने वाली महिलाओं का हिस्सा वर्ष 2020-21 के 33.16 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 37.94 प्रतिशत हो गया। यह बदलाव उच्च शिक्षा और करियर में प्रगति करने पर बढ़ते जोर को दर्शाता है। शिक्षा तक अधिक पहुंच के चलते महिलाएं दीर्घकालिक करियर के लिए जरूरी कौशल से खुद को लैस कर रही है, जिससे अधिक कुशलता वाली नौकरियों में उनकी रोजगार क्षमता बढ़ रही है।

सामाजिक कारणः काम में भागीदारी न करने के लिए सामाजिक कारणों का हवाला देने वाली महिलाओं का अनुपात भी कम हुआ है। वर्ष 2020-21 में, 4.34 प्रतिशत महिलाओं ने सामाजिक बाधाओं को अपनी कार्यबल भागीदारी में एक प्रमुख बाधा बताई लेकिन वर्ष 2023-24 तक यह संख्या घटकर सिर्फ 2.52 प्रतिशत रह गई। इससे पता चलता है कि बदलते सामाजिक मानदंड और प्रगतिशील नजरिये के कारण धीरे-धीरे वैसी सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएं कम हो रही हैं जिनके कारण पारंपरिक रूप से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी सीमित रही है।

प्रशिक्षण और सुविधाजनक नौकरी की उपलब्धता: दिलचस्प बात यह है कि प्रशिक्षण या योग्यता की कमी और सुविधाजनक स्थानों पर काम उपलब्ध न होने जैसी बाधाएं लगातार कम हुई हैं। प्रशिक्षण या योग्यता की कमी बताने वाली महिलाओं की तादाद का प्रतिशत वर्ष 2020-21 के 3.43 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023-24 में 2.07 प्रतिशत हो गया, जो महिलाओं के लिए लक्षित शैक्षणिक और कौशल विकास योजनाओं की प्रभावशीलता को दर्शाता है। इसी तरह, सुविधाजनक स्थानों पर काम की कमी बताने वाली महिलाओं की तादाद इस अवधि के दौरान 0.81 प्रतिशत से घटकर 0.41 प्रतिशत हो गई जो सुविधाजनक नौकरी तक पहुंच बनाने में धीरे-धीरे ही सही सुधार का संकेत देता है।

महिला श्रमिकों के लिए सरकारी सहायता: भारत सरकार ने महिला कार्यबल भागीदारी को बढ़ावा देने और महिलाओं को घरेलू जिम्मेदारियों के साथ रोजगार संतुलन में मदद करने के लिए कई पहल शुरू की हैं। प्रमुख उपायों में मातृत्व अवकाश की अवधि में बढ़ोतरी, अनिवार्य क्रेच सुविधाएं, कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास के लिए सहायता और श्रम कानूनों के माध्यम से महिलाओं के लिए कार्यस्थल सुरक्षा के दायरे को मजबूत करना शामिल है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई), प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) और स्टैंड-अप इंडिया जैसी कौशल विकास योजनाएं और स्वरोजगार पहल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती हैं। इन प्रयासों का लक्ष्य सामूहिक रूप से महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने के साथ ही कार्यबल में महिलाओं के योगदान को बढ़ाना है जो विकसित भारत @ 2047 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए महत्त्वपूर्ण है जहां समावेशी विकास देश को समृद्धि और विकास के नए शिखर पर ले जाएगा।

(अमित निर्मल राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त सचिव और सविंद्र सिंह श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के रोजगार महानिदेशालय के सहायक निदेशक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published : March 7, 2025 | 10:52 PM IST