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बाजार से निकल रहे कौन से संदेश?

‘राहत की तेजी’ ने अब दुनिया के कई देशों में पूरी तरह से तेजी का बाजार बन गई है। जर्मनी के बाजार अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर हैं।

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देवाशिष बसु   
Last Updated- May 07, 2025 | 10:11 PM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 2अप्रैल को टैरिफ बढ़ाने का धमाका किया तो वैश्विक बाजार कांप उठे। उन्होंने 9 अप्रैल से जो टैरिफ या शुल्क लागू करने की घोषणा की थी उसके तहत सभी देशों पर 10 फीसदी का बुनियादी टैरिफ लागू किया जाना था जबकि चीन पर 145 फीसदी का दंडात्मक टैरिफ लगाने की बात कही गई। इसके बाद चार दिन तक शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिली क्योंकि निवेशकों में अफरातफरी का माहौल था। कुछ दिन बाद ट्रंप ने चीन के अलावा बाकी देशों के टैरिफ पर 90 दिन का स्थगन लागू करने की घोषणा की।

 उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों को इससे बाहर कर दिया जिससे बाजारों में राहत की तेजी का माहौल बनने लगा। दिलचस्प बात यह है कि यह ‘राहत की तेजी’ ने अब दुनिया के कई देशों में पूरी तरह से तेजी का बाजार बन गई है। जर्मनी के बाजार अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर हैं। हालांकि अमेरिका में हालात ठीक नहीं हैं और कुछ दिनों में वहां चीजों की भारी कमी हो सकती है लेकिन एसऐंडपी 500 लगातार 9 दिनों तक बढ़त के साथ बंद हुआ। यह 20 साल में उसका सबसे अच्छा प्रदर्शन है। गत शुक्रवार को यह 5,686 पर बंद हुआ यानी टैरिफ लागू होने के पहले से भी ऊंचे स्तर पर। भारतीय बाजारों में भी अप्रैल में 3.5 फीसदी की तेजी देखने को मिली।

यह उत्साह चकित करने वाला है। आखिरकार टैरिफ एक तरह का कर ही है जिसकी बदौलत आयात की लागत बढ़ती है। येल विश्वविद्यालय के बजट लैब का अनुमान है कि 2025 में टैरिफ के कारण अमेरिकी उपभोक्ता कीमतों में 2.3 फीसदी का इजाफा होगा यानी आम परिवारों को सालाना 3,800 डॉलर की अधिक कीमत चुकानी होगी। कारों की कीमतों में 2,000 से 10,000 डॉलर का इजाफा हो सकता है और आईफोन 40 फीसदी तक महंगे हो सकते हैं। यहां तक कि किराना भी इससे सुरक्षित नहीं रहेगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने टैरिफ को देखते हुए 2025 में अमेरिकी वृद्धि के अनुमान को 2.7 फीसदी से घटा कर 1.8 फीसदी कर दिया है। उसने वैश्विक स्तर पर मंदी की 60 फीसदी आशंका जताई है जो पहले 40 फीसदी थी। अमेरिकी जीडीपी वृद्धि में 2025 में 90 आधार अंकों की कमी आ सकती है। व्यवसायों को कच्चे माल की उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा, मार्जिन में कमी आएगी और छंटनी होने के भी आसार हैं। वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं पहले ही मुश्किल दौर से जूझ रही हैं, उनमें और अधिक उथल-पुथल की आशंका है। उधर, जवाबी कार्रवाई के रूप में जो कदम उठाए गए हैं वे अमेरिकी निर्यातकों को प्रभावित कर सकते हैं। इसमें किसानों से लेकर ग्रामीण इलाकों के विनिर्माता सबसे अधिक नुकसान उठा सकते हैं। 2019 की कारोबारी जंग में भी ऐसा ही हुआ था।

उपभोक्ता अनुमान सूचकांक में कमजोर पड़ती संभावनाओं को देखा जा सकता है। ये अनुमान आय, कारोबार और श्रम बाजार हालात को लेकर उपभोक्ताओं के अल्पकालिक दृष्टिकोण पर आधारित होते हैं। इसमें 12.5 अंकों की कमी आई और यह घटकर 54.4 के स्तर पर आ गया जो अक्टूबर 2011 के बाद से अब तक का न्यूनतम स्तर है। ध्यान रहे कि यह आंकड़ा 80 की सीमा से काफी कम है जिसे संभावित मंदी का संकेत भी माना जाता है। संक्षेप में कहें तो टैरिफ को लेकर ट्रंप ने जो भी कदम उठाए हैं उनमें कुछ भी सकारात्मक नहीं नजर आ रहा है और इसके केवल नकारात्मक प्रभाव नजर आ रहे हैं। उच्च उपभोक्ता कीमतें, धीमी वृद्धि, संभावित मंदी, बाधित आपूर्ति शृंखला, जवाबी व्यापारिक अवरोध, बाजार की अस्थिरता और साझेदारों के साथ तनाव इसके संभावित परिणाम के रूप में सामने आए हैं। इसके बावजूद निवेशकों का जोश बरकरार है।

मैं बाजार की निरंतर गतिविधियों पर ध्यान देने में यकीन करता हूं क्योंकि यह एक वस्तुपरक हकीकत है जो सामूहिक रूप से भीड़ की बुद्धि के द्वारा आकार लेती है। इसके विपरीत कथानक वस्तुपरक होता है और वह चयनित आंकड़ों या घटनाओं पर आधारित होता है। सवाल यह है कि बाजार वास्तव में हमें क्या संदेश दे रहा है? बाजार में तेजी का स्वाभाविक आरंभिक कारक था ट्रंप द्वारा चीन को छोड़कर अधिकांश देशों के विरुद्ध जवाबी टैरिफ पर 90 दिन की रोक लगाने की घोषणा। इसकी वजह से बाजार में भारी तेजी आई और एसऐंडपी 500 करीब 9.5 फीसदी तक  उछल गया। यह 1940 के बाद इसका एक दिन में तीसरा बेहतरीन प्रदर्शन था। नैसडैक में 12.2 फीसदी की तेजी आई। आखिरकार 2018-19 के अमेरिका और चीन के व्यापारिक युद्ध से पता चला था कि टैरिफ संबंधी अनिश्चितताओं के दूर होने पर बाजार जल्दी सुधार कर लेते हैं। निवेशक अब यह सोच रहे हैं कि यह कारोबारी जंग भी अंतिम समय में किसी न किसी समझौते के साथ समाप्त हो जाएगी।

दिलचस्प है कि यह दांव खुदरा निवेशकों द्वारा लगाया जा रहा है। अप्रैल महीने में जहां संस्थागत स्तर पर बिकवाली देखने को मिली वहीं खुदरा निवेशकों ने खरीदारी की। वे टैरिफ संबंधी खबरों से पूरी तरह अप्रभावित रहे। अगर बाजार सही है तो यह एक दुर्लभ अवसर है जहां खुदरा निवेशकों ने पेशेवरों को पछाड़ दिया। आर्थिक आंकड़े उनके आशावाद को विश्वसनीय बनाते हैं: अप्रैल में 1,77,000 नए रोजगार तैयार हुए और मुद्रास्फीति की दर मार्च में 2.4 फीसदी रही जो 2.6 फीसदी के अनुमान से कम थी। भारत में रुपये के मुकाबले कमजोर होते डॉलर ने विदेशी निवेशकों को दोबारा आकर्षित किया जबकि घरेलू फंडों ने खरीद जारी रखी।

ट्रंप का दूसरे कार्यकाल का एजेंडा अदालतों में उलझ गया है। 200 से अधिक मामले चल रहे हैं। उनके कई कदमों को चुनौती दी गई है और 70 फेडरल फैसले आ चुके हैं। इनमें आव्रजन से लेकर संघीय खर्च जैसे मामले शामिल हैं। ये बातें उनकी योजनाओं को प्रभावित कर रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही एलियन एनिमीज ऐक्ट के तहत लोगों को वापस उनके देश भेजे जाने पर रोक लगा दी है और 1977 में बने अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक अधिकार अधिनियम के ट्रंप द्वारा इस्तेमाल को गैर कानूनी करार दिया गया है।

अगर अदालतें सहमत होती हैं तो ट्रंप को कई सबसे विवादास्पद नीतियों को वापस लेना होगा या निष्प्रभावी करना होगा जिससे स्थिरता बहाल होगी। अगर अदालती मामले उनकी नीतियों को निष्प्रभावी कर देते हैं, तो बिना ट्रंप की इन नीतियों के न रहने से स्थिरता और वृद्धि  की स्थिति बनेगी। अंत में बाजार शायद व्यापार नीति को लेकर कम और ट्रंप को लेकर अधिक संदेश दे रहे हों। अगर ट्रंप सफल रहे तो मौजूदा आशावाद बेकार साबित हो सकता है। परंतु अगर निवेशकों को यह यकीन होता है कि ट्रंप को अदालतों, कांग्रेस और खुद उनकी अस्थिरता के जरिये रोका जा सकेगा तो उनकी धमकी शायद मायने न रखे। यानी इस लिहाज से टैरिफ केवल शोर है, असली संकेत कहीं और है।

(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक और मनीलाइफ फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं)

First Published : May 7, 2025 | 10:06 PM IST