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ब्रेक्सिट के क्या होंगे संभावित परिणाम?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 2:54 AM IST

आखिर आइजक न्यूटन, जेम्स मैक्सवेल, बट्र्रेंड रसेल और चाल्र्स डार्विन जैसे विद्वानों के देश यूनाइटेड किंगडम ने अपनी समझदारी छोड़कर दिसंबर 2020 तक यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर होने का निर्णय क्यों लिया? जब ऐसा हो जाएगा तो यूनाइटेड किंगडम को न केवल यूनाइटेड किंगडम के देशों के साथ बल्कि भारत समेत अन्य देशों के साथ भी मुक्त व्यापार समझौतों के लिए जूझना होगा। फिलहाल यूनाइटेड किंगडम के प्रमुख के प्रमुख वस्तु व्यापार साझेदारों की बात करें  तो जर्मनी, अमेरिका, चीन, नीदरलैंड और फ्रांस अहम हैं। सन 2019 में उसने जर्मनी से 92 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का आयात किया और अमेरिका को 65 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया। ये दोनों देश यूनाइटेड किंगडम के सबसे बड़े आयात और निर्यात साझेदार हैं।
कोविड-19 महामारी ने विभिन्न देशों के लिए हालात और कठिन बना दिए हैं और और अप्रैल-जून तिमाही में यूनाइटेड किंगडम की अर्थव्यवस्था में 20 फीसदी की गिरावट आई है जो जी-7 देशों में सर्वाधिक थी। याद रहे जून 2016 में यूनाइटेड किंगडम ने एक जनमत सर्वेक्षण किया था जिसमें 52 फीसदी लोगों ने यूरोपीय संघ छोडऩे के पक्ष में मतदान किया था और 48 फीसदी ने विरोध में। इंगलैंड और वेल्श में 53 और 52.5 फीसदी लोगों ने यूरोपीय संघ छोडऩे के पक्ष में मत दिया। जबकि स्कॉटलैंड और आयरलैंड ने क्रमश: 62 और 56 फीसदी मतों के साथ यूरोपीय संघ में बने रहने की वकालत की। यह निंदनीय भावना भले हो लेकिन भारत में कुछ लोगों को ब्रेक्सिट से अलग होने के बाद यूनाइटेड किंगडम के आर्थिक पराभव से आनंद भी मिल सकता है।
स्कॉटलैंड को जहां वेस्टमिंस्टर से बजट सहायता मिलती है, वहीं एक सीमा के बाद स्कॉटलैंड के लोगों को लग सकता है कि यूरोपीय संघ के साथ रहने के लाभ यूनाइटेड किंगडम छोडऩे से अधिक हैं। 10 अप्रैल, 1998 के गुड फ्राइडे समझौते के बाद लोग आसानी से आयरलैंड और उत्तरी आयरलैंड के बीच आवागमन करने लगे हैं। ब्रेक्सिट के बाद क्या यूनाइटेड किंगडम उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड के बीच वस्तुओं एवं व्यक्तियों के आवागमन पर नियंत्रण लगाएगा? यदि ऐसा हुआ तो उत्तरी आयरलैंड को रास नहीं आएगा जहां की आबादी में कैथलिकों की तादाद प्रोटेस्टेंट्स से अधिक है। कुछ समय पहले भारत सरकार से सेवानिवृत्त मेरे पुराने सहकर्मी ने दिल्ली में मेरे आवास पर आयोजित रात्रिभोज के दौरान ब्रिटिश उच्चायुक्त से पूछा कि ब्रेक्सिट के बाद उत्तरी आयरलैंड का मसला कैसे सुलझेगा? उच्चायुक्त ने जवाब में कहा कि उनसे उत्तरी आयरलैंड के बारे मे न पूछा जाए वरना उन्हें कश्मीर के बारे में बात करनी पड़ेगी। मैं सोचने लगा कि यूनाइटेड किंगडम इन दिनों भारत में किस समझ के राजनयिक भेजने लगा है। यूरोपीय संघ के चार अनिवार्य तत्त्वों में पूंजी, सेवाओं, वस्तुओं और श्रम का मुक्त आवागमन शामिल है। यूनाइटेड किंगडम वस्तुओं और पूंजी के अबाध आवागमन के लिए मुक्त व्यापार समझौता चाहता है लेकिन सेवाओं और श्रम के लिए कतई नहीं। जर्मनी और फ्रांस के लिए यूरोपीय संघ का राजनीतिक महत्त्व भी आर्थिक एकीकरण के समान ही है। परंतु उसके लिए यूनाइटेड किंगडम पड़ोस में बड़ा बाजार है। हर पक्ष ब्रेक्सिट वार्ता के मामले में दूसरे पक्ष से आशा कर रहा है।
जहां तक भारत और यूनाइटेड किंगडम के व्यापार पर बेक्सिट के असर की बात है तो द्विपक्षीय शुल्क दर के आधार पर यह अनुकूल या प्रतिकूल कुछ भी हो सकता है। वर्ष 2019-20 में भारत का यूनाइटेड किंगडम को निर्यात और आयात उसके कुल वस्तु कारोबार का क्रमश 2.8 फीसदी और 1.42 फीसदी था। यह कुल कारोबार 2018-19 में 16.8 अरब डॉलर और  2019-20 में 15.4 अरब डॉलर रहा। इस दौरान भारत को 2 अरब डॉलर की राशि अधिशेष में मिली। वर्ष 2018-19 में दोनों देशों के बीच सेवाओं आयात और निर्यात का समेकित मूल्य 9 अरब डॉलर था।
वर्ष 2018-19 तथा 2019-20 में भारत को यूनाइटेड किंगडम से क्रमश: 9.4 अरब डॉलर और 10 अरब डॉलर की राशि बतौर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल हुई। यह उन दो वर्षों में भारत को हासिल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 6 फीसदी थी। भारत भी यूनाइटेड किंगडम में बड़ा निवेशक है और टाटा समूह द्वारा 2007 और 2008 में कोरस स्टील और जैगुआर लैंडरोवर का अधिग्रहण दो बड़े निवेश हैं। हालांकि कोरस का अधिग्रहण एक त्रासदी साबित हुआ क्योंकि शुरुआत से ही श्रम की लागत बहुत अधिक थी और कर्मचारियों को निकालना आसान नहीं था। जगुआर लैंडरोवर शुरुआत में मुनाफे का सौदा रहा क्योंकि चीनी और यूरोपीय संघ के बाजारों में अच्छी बिक्री दर्ज की गई। गत सप्ताह आई जानकारी के मुताबिक जैगुआर लैंड रोवर ने जनवरी से जुलाई 2020 के दौरान एक अरब पाउंड का नुकसान उठाया। कोरस अभी भी निष्क्रिय है।
ब्रिटिश औपनिवेशिक युग ने सत्ता का केंद्रीकरण दिल्ली में किया था और अंग्रेजी प्रशासनिक संबद्धता की भाषा के रूप में उभरी। उसने देश के राजनीतिक उभार में अहम भूमिका निभाई। इसके बावजूद आजादी के बाद यूनाइटेड किंगडम भारत के अहम सामरिक हितों के लिए अविश्वसनीय बना रहा। उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री हेरल्ड विल्सन सन 1965 की भारत-पाकिस्तान जंग के पहले और उसके दौरान भी पाकिस्तान की ओर झुकाव रखते थे। उन्होंने अमेरिका के साथ मिलकर कश्मीर मसले इस तरह हल करने का प्रयास किया था जो पाकिस्तान के अनुकूल होता। परंतु एक वर्ष पहले 25 अगस्त, 2019 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से मुलाकात की तो हालात अलग थे। यह मुलाकात अनुच्छेद 370 और 35 ए के समापन के 20 दिन बाद हुई थी और मीडिया के मुताबिक जॉनसन ने कहा था कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला है।
यूरोपीय संघ और अमेरिका की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को देखते हुए भारत को कारेाबार और निवेश बढ़ाने पर काम करना चाहिए। बहरहाल, भारत उनके लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है और भारत का ध्यान फिलहाल जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। इन आसियान देशों का चीन के साथ बतौर उपभोक्ता या मध्यवर्ती वस्तुओं अथवा अंतिम उत्पादन के आपूर्तिकर्ता के रूप में सीधा संबंध है। भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर समस्या बनी रहेगी। आने वाले वर्षों में अमेरिका और जी7 देश चीन के साथ उच्च तकनीकी आधारित आर्थिक आदान प्रदान कम कर सकते हैं। ऐसे में भारत को उस आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने का प्रयास करना चाहिए जिसमें चीन शामिल नहीं है। लब्बोलुआब यह कि भारत के घरेलू विनिर्माण बढ़ाने के लिए व्यापार, निवेश और तकनीकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने के उपाय जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, अमेरिका, हॉलैंड, फ्रांस और आसियान देशों पर केंद्रित होना चाहिए।
(लेखक पूर्व भारतीय राजदूत और वल्र्ड बैंक फाइनैंस प्रोफेशनल हैं)

First Published : August 28, 2020 | 12:06 AM IST