देश के विपक्षी दल कांग्रेस को 19 अक्टूबर को नया पार्टी अध्यक्ष मिल जाएगा। नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए मतदान सोमवार 17 अक्टूबर को होना है। कांग्रेस अध्यक्ष पद की चुनावी होड़ में उतरे मल्लिकार्जुन खड़गे और डॉ शशि थरूर में से ही कोई कांग्रेस का अगला अध्यक्ष होगा। दो दशक में ऐसा पहली बार होगा जब पार्टी का अपना निर्वाचित अध्यक्ष होगा। वर्ष 2000 में सोनिया गांधी, जितेंद्र प्रसाद को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष बनीं थीं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में ऐलन ऑक्टेवियन ह्यूम (ए ओ ह्यूम) ने की थी जो एक ब्रिटिश प्रशासक थे। ह्यूम को 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह का अनुभव था और वह भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकना चाहते थे। कांग्रेस की शुरुआत, शासकों और शासित जनता यानी ब्रिटिश साम्राज्य और भारतीयों के बीच एक संवाद माध्यम के रूप में हुई।
ह्यूम की जीवनी लिखने वाले ने लिखा है, ‘यह उन्हें सीमित करने, नियंत्रित करने के साथ ही निर्देशित करने के लिए है क्योंकि यह ऐसा करने का समय है … कांग्रेस आंदोलन की रूपरेखा ही कुछ इस तरह तैयार की गई थी।’वर्ष 1919 में मोतीलाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने। महात्मा गांधी पार्टी में मार्गदर्शक की भूमिका में थे। 1928 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में मोतीलाल को फिर से अध्यक्ष चुना गया। अगले वर्ष 1929 के कांग्रेस अधिवेशन सत्र में उनके बेटे जवाहरलाल अध्यक्ष बने।
राजनीति के समकालीन इतिहासकारों जैसे कि पत्रकार दुर्गा दास और बाद के इतिहासकारों ने भी इस बात का उल्लेख किया है कि महात्मा गांधी ने प्रांतीय समितियों की सिफारिश की अनदेखी की जिसके मुताबिक सरदार वल्लभभाई पटेल को अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। जवाहरलाल की मां स्वरूप रानी ने भावुकता और जोश से भरी दलील में अपने बेटे को यह जिम्मेदारी देने की बात की थी और इसने जवाहरलाल के पक्ष में काम भी किया। बाद के चुनावों में भी प्रांतीय समितियों ने पटेल के नाम की सिफारिश की लेकिन गांधी जवाहरलाल के साथ खड़े नजर आए।
कई लोगों का तर्क है कि गांधी ने युवा जवाहरलाल को आधुनिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति के तौर पर देखा जो उनकी नजर में पार्टी का नेतृत्व करने के लिए एक बेहतर शख्स साबित हो सकते थे। हालांकि, उसी वक्त से कांग्रेस में वंशवादी उत्तराधिकार के बीज पड़ गए थे। वर्ष 1959 में, कांग्रेस पार्टी के निवर्तमान अध्यक्ष, यूएन ढेबर ने सुझाव दिया कि नेहरू की बेटी इंदिरा कांग्रेस की अध्यक्ष बनें जो अनौपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री की सामाजिक सचिव भी थीं। इंदिरा 1955 में कांग्रेस की कार्यसमिति के लिए चुनी जा चुकी थीं। कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में इंदिरा, ढेबर की जगह पार्टी अध्यक्ष बनीं। कांग्रेस के तेजतर्रार नेता महावीर त्यागी ने नेहरू को उनकी बेटी की पदोन्नति के बारे में पत्र लिखकर इसकी निंदा की थी।
नेहरू ने जवाब में कहा कि वह इस ‘पूरी प्रक्रिया’ से दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उनका मानना है कि ‘जब वह प्रधानमंत्री हैं तो बेटी को पार्टी का अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए।’ उस वक्त इंदिरा महज 41 साल की थीं। पार्टी के चुनाव आते-जाते रहे। कई चुनाव हारने के बाद वर्ष 1969 में कांग्रेस पार्टी टूट गई। एक गुट, कांग्रेस (आर) इंदिरा के साथ रहा। दूसरे गुट, कांग्रेस (संगठन) का जनता पार्टी में विलय हो गया। 1970 के दशक में, पार्टी ने अपना नाम बदल दिया और कांग्रेस (इंदिरा) बन गई। वर्ष 1996 में इंदिरा यानी (आई) को हटा दिया गया था।
इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं उस दौर में पार्टी में कई नेताओं को अध्यक्ष बनते देखा गया था। उनके बेटों संजय और राजीव को भी पार्टी की सेवा में लगाया गया। हालांकि, दोनों को पार्टी अध्यक्ष जैसा शीर्ष पद नहीं मिला। लेकिन कांग्रेस अध्यक्षों ने कभी बगावत नहीं की बल्कि उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति के निर्देशों के अनुसार काम किया जो एक निर्वाचित निकाय थी। वर्ष 1971 के बाद कांग्रेस में आंतरिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आया।
इंदिरा गांधी को राज्यों के प्रतिनिधि के तौर पर कामराज, अजय मुखर्जी और मोरारजी देसाई जैसे दिग्गज नेताओं से चुनौती मिली थी। उन्होंने निर्णय लेने के लिए राज्यों के बजाय कांग्रेस कार्यसमिति को अधिकार देने की बात की। वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनाव हुए और कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी को इंदिरा गांधी पहले ही पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर चुकी थीं हालांकि पार्टी के संविधान में ऐसा कोई पद नहीं है। उनके और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच तनाव बढ़ गया, जिसे ‘पुरानी’ और ‘नई’ कांग्रेस के समर्थकों ने और हवा दी। उन्होंने 1986 में इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अर्जुन सिंह पार्टी के उपाध्यक्ष बने।
1991 में श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी की हत्या और पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद पार्टी में कांग्रेस कार्यसमिति और अन्य पदों के लिए चुनाव हुए। पार्टी के तिरुपति अधिवेशन में अर्जुन सिंह और शरद पवार को प्रतिनिधियों का भरपूर समर्थन मिला। लेकिन राव ने यह देखा कि अगर यह रुझान जारी रहा तब उन्हें अपने ही सहयोगियों से कई चुनौतियां मिल सकती हैं।
उन्होंने घोषणा की कि चूंकि ये चुनाव महिलाओं, दलितों और आदिवासी नेताओं का प्रतिनिधित्व करने में विफल रहे हैं इसलिए सभी निर्वाचित सदस्यों को इस्तीफा दे देना चाहिए। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति में सदस्यों को मनोनीत किया।
सितंबर 1997 में, कोलकाता में हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सत्र में सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष थे और उनके नेतृत्व को शरद पवार और राजेश पायलट दोनों की तरफ से चुनौतियां मिलीं। केसरी ने 65 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति के चुनावों में अर्जुन सिंह, शरद पवार, अहमद पटेल और एके एंटनी ने बड़े अंतर के साथ जीत हासिल की।
सीडब्ल्यूसी और पार्टी अध्यक्ष के बीच फिर से लड़ाई का मंच तैयार हो गया जब तक कि सोनिया गांधी ने 1998 में पार्टी अध्यक्ष के रूप में पदभार नहीं संभाला। वर्ष 1998 से लेकर 2022 के बीच सीडब्ल्यूसी में कोई चुनाव नहीं हुए और यह मनोनीत निकाय के तौर पर काम करती रही। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है जिसमें लगभग 9,000 प्रतिनिधि शामिल होते हैं। ये प्रतिनिधि प्रदेश कांग्रेस समितियों से जुड़े होते हैं जो कांग्रेस पार्टी की ब्लॉक कांग्रेस समितियों द्वारा चुने जाते हैं। अब वह दिन दूर नहीं जब 19 अक्टूबर को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलने पर हमें इन प्रतिनिधियों के फैसले के बारे में पता चल जाएगा।