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संतुलन साधने का प्रयास

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:29 PM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए न्यूनतम जोखिम लेते हुए एक संतुलित बजट पेश किया है। वित्त मंत्री ने बजट में कोई हैरान करने वाला कदम नहीं उठाया है और कराधान प्रक्रिया में उथलपुथल लाने वाला कोई उपाय करने से भी परहेज किया है। उन्होंने इनके बजाय स्थिरता को अधिक महत्त्व दिया है और कर श्रेणी में भी किसी तरह का बदलाव नहीं किया है। बजट में स्पष्ट रूप से पूंजीगत व्यय को अधिक  महत्त्व दिया गया है। राजकोषीय घाटा कम रखने का हरसंभव प्रयास किया गया है। करदाताओं के लिए कराधान सरल करने और कर विवाद कम करने के लिए भी में बजट में उपाय किए गए हैं। ऐसा माना जा सकता है कि मौजूदा हालात के बीच वित्त मंत्रालय ने भी परिस्थितियों को भांप लिया था और उसी के अनुरू प बजट में उपायों की घोषणा की है।
 कोविड महामारी के बाद कमजोर हो चुकी देश की अर्थव्यवस्था के लिए ये सभी उपाय राहत देने वाले प्रतीत होते हैं। महामारी का खतरा अब भी पूरी तरह टला नहीं है और यह कभी भी एक और गंभीर रूप ले सकती है। महामारी एक मात्र खतरा नहीं है। इसके अलावा दुनिया के प्रमुख देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाए जा रहे कदमों से भी हालात अस्थिर हो सकते हैं और यहां तक कि युद्ध जैसी स्थिति पैदा होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि अत्यधिक सावधानी बरतने के भी अपने जोखिम होते हैं। किसी भी परंपरागत दृष्टिकोण से राजकोषीय घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। इसका एक कारण यह है कि अगले वित्त वर्ष के लिए कर राजस्व की वृद्धि दर को लेकर कोई आकर्षक अनुमान नहीं व्यक्त किया गया है। ऐसी सावधानी बरतने की आवश्यकता भी है क्योंकि चालू वित्त वर्ष में कर राजस्व में 23.8 प्रतिशत वृद्धि बजट अनुमान से काफी अधिक रही है मगर यह जरूरी नहीं है कि अगले वर्ष भी ऐसे आंकड़े दर्ज हो पाएं।
इस तरह राजस्व प्राप्तियां (उधारी और विनिवेश से प्राप्त रकम शामिल नहीं) महज 6 प्रतिशत रहनी चाहिए। यह आंकड़ा नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (वास्तविक जीडीपी और महंगाई) के 11.1 अनुमान से काफी कम होगा। इस समय महंगाई का स्तर देखते हुए ऐसा माना जाएगा कि वित्त मंत्री ने अगले वित्त वर्ष के लिए अनुमानित 8 से 8.5 प्रतिशत वृद्धि दर पर विचार नहीं किया है और वास्तविक वृद्धि दर इससे कम रहने का आकलन किया है। यह सरकारी की तरफ से बरती गई एक और सतर्कता का संकेत देता है। अगर वित्त मंत्री का उद्देश्य कम वादे करना और अधिक  नतीजे देना है तो यह समझा जा सकता है कि उन्होंने क्यों विनिवेश का ऊंचा लक्ष्य तय करने से दूर रहने का निर्णय लिया है।
यह संभावना भी नकारी नहीं जा सकती कि संभव है राजस्व के मोर्चे पर सीतारमण का प्रदर्शन अनुमान से बेहतर रहे। परंतु महामारी के दौर में बढ़े हुए राजस्व घाटे को कम करते हुए साधारण राजस्व अनुमान का प्रभाव यह होगा कि व्यय वृद्धि के लिए सीमित गुंजाइश रहेगी। राजस्व व्यय एक फीसदी से भी कम बढ़ेगा, हालिया अतीत में ऐसी कोई बानगी नहीं है। यह बात खासतौर पर ध्यान देने लायक है क्योंकि हाल के वर्षों की बड़ी उधारियों के चलते ब्याज बिल बढ़ा है। वर्ष 2022-23 तक के दो वर्षों में इसके 38.4 फीसदी बढऩे की बात कही गई है और दो वर्ष में व्यय में कुल इजाफे में इसकी हिस्सेदारी 60 फीसदी होगी।
नतीजा यह है कि अगले वर्ष अन्य तमाम मोर्चों पर व्यय सीमित रहेगा। सब्सिडी बिल तथा ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर होने वाले व्यय को भी काफी कम किया गया है। रक्षा क्षेत्र का आवंटन बमुश्किल इतना है कि मुद्रास्फीति से पार पाया जा सके। ग्रामीण विकास में कोई इजाफा नहीं किया गया है और कृषि में केवल 2.5 फीसदी इजाफे की बात कही गयी है। पूंजीगत व्यय में काफी इजाफा किया गया है, खासतौर पर गति शक्ति पहल पर। ऐसे में परिवहन को कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य के संयुक्त बजट से अधिक आवंटन किया गया है।
3.8 करोड़ अतिरिक्त परिवारों को नल जल मुहैया कराने के लिए जल जीवन मिशन के आवंटन में काफी इजाफा किया गया है। शहरी विकास का आवंटन भी बढ़ा है। सरकार पारंपरिक विकास कार्यों के बजाय अधोसंरचना और लोक कल्याण पर खर्च जारी रखना चाहती है। ऐसा लगता है कि सरकार रोजगार की कमी और खपत बढ़ाने जैसी बातों से अप्रभावित है।
कुल व्यय पर नियंत्रण के बावजूद शुद्ध बाजार उधारी 32.3 फीसदी बढ़कर 11.59 लाख करोड़ रुपये पहुंचनी है। बॉन्ड बाजार की ओर से इस पर प्रतिक्रिया लाजिमी थी और 10 वर्ष के मानक सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल करीब 20 आधार अंक बढ़ गया।
बजट भाषण में जिन नीतिगत पहलों का जिक्र किया गया उनमें सर्वाधिक दिलचस्प है क्रिप्टोकरेंसी पर नया कर। इसे इस प्रकार तैयार किया गया है ताकि रिजर्व बैंक के प्रस्तावित डिजिटल रुपये के लिए हर प्रतिस्पर्धा समाप्त कर दी जाए। प्रस्तावित डिजिटल रुपये की क्या भूमिका होगी यह भविष्य में सामने आएगा। तार्किक ढंग से देखा जाए तो यह वित्तीय क्षेत्र में मध्यस्थहीनता का मार्ग होना चाहिए। संभवत: थोक लेनदेन के लिए ऐसा हो सकता है और शायद वाणिज्यिक बैंकों का खुदरा कारोबार इससे प्रभावित न हो।

First Published : February 1, 2022 | 11:10 PM IST