facebookmetapixel
Decoded: 8वें वेतन आयोग से कर्मचारी और पेंशनरों की जेब पर क्या असर?DPDP के नए नियमों से बढ़ी ‘कंसेंट मैनेजर्स’ की मांगसरकार ने नोटिफाई किए डिजिटल निजी डेटा संरक्षण नियम, कंपनियों को मिली 18 महीने की डेडलाइनबिहार विधानसभा चुनाव 2025: NDA 200 के पार, महागठबंधन की करारी हारबिहार की करारी हार से राजद-कांग्रेस के समक्ष अस्तित्व का संकट, मोदी बोले- पार्टी अब टूट की ओरबिहार में NDA की प्रचंड जीत से बैकफुट पर विपक्ष, चुनाव आयोग पर उठाए सवालNDA की जीत में पासवान, मांझी गठबंधन ने बढ़ाई वोट हिस्सेदारी: 10 बिंदुओं में बिहार चुनाव नतीजों के निष्कर्षबिहार में बंपर जीत के बाद बोले PM मोदी: पश्चिम बंगाल से भी ‘जंगलराज’ को उखाड़ फेंकेंगेबिहार में नीतीश–मोदी फैक्टर की धमक: भाजपा की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा की राह में अब नहीं कोई बाधाबिहार चुनाव 2025: जदयू और भाजपा ने बढ़ाई वोट हिस्सेदारी, AIMIM को झटका

महंगाई थामने की कठिन डगर

Last Updated- December 05, 2022 | 7:14 PM IST

महंगाई के मामले में खतरे की घंटी बजने लगी है। 22 मार्च को खत्म हफ्ते में थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई की दर 7 फीसदी पर पहुंच गई।
 
शेयर और बॉन्ड बाजार में भी इस आशंका की वजह से गिरावट दर्ज की जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) तरलता सोखेगा या फिर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा। सरकार भी इस मसले पर जरूरत से ज्यादा सतर्क नजर आ रही है, क्योंकि महंगाई दर का 7 फीसदी से ऊपर चला जाना कुल मिलाकर हालात के बेकाबू होने जैसा है।


सरकार खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क पहले ही कम कर चुकी है और स्टील उत्पादकों को कह चुकी है कि वे फिलहाल कीमतों में बढ़ोतरी न करें। इतना ही नहीं, ज्यादातर कमोडिटी के निर्यात पर भी रोक लगाई जा चुकी है। बढ़ती महंगाई ने सरकार के सामने राजनीतिक चुनौती भी पैदा कर दी है।


लिहाजा सरकार महंगाई रोकने के लिए अपनी ओर से हरसंभव उपाय कर रही है और इन उपायों के बारे में कोई भी सरकार पर तोहमत नहीं लगा सकता। पर अब महंगाई दर बढ़ने के पैटर्न को व्यापक मैक्रो-इकोनॉमिक संदर्भ में देखे जाने की जरूरत है। कुल मिलाकर यह बात ज्यादा मायने रखती है कि पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा क्या है। पिछले महीने औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की विकास दर में गिरावट दर्ज की गई थी और जनवरी में यह महज 5 फीसदी रह गई थी।


इस तरह की गिरावट पिछले कुछ महीने से जारी है। नए महीने के लिए औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े शुक्रवार को आने हैं और माना जा रहा है कि इस बार हालत थोड़ी सुधर सकती है। यदि ऐसा होता है तो आरबीआई अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा में तरलता सोखे जाने और ब्याज दरों में बढ़ोतरी किए जाने का रास्ता अख्तियार कर सकता है।


पिछले हफ्ते विदेशी व्यापार से संबंधित आंकड़े भी जारी किए गए। इसके मुताबिक फरवरी महीने में निर्यात में 30 फीसदी से ज्यादा की की बढ़ोतरी (डॉलर टर्म में) दर्ज की गई है। पिछले साल रुपये की विनियम दर में आई तेजी के बाद से एक्सपोर्ट में गिरावट के मद्देनजर अब यह एक शुभ संकेत है। यदि यही चलन जारी रहता है तो पिछले दिनों जताई गई धीमी विकास दर की आशंका आने वाले दिनों में निर्मूल साबित हो सकती है।


यह भी मुमकिन है कि जिन कमोडिटी की वजह से महंगाई दर को बढ़ावा मिल रहा है, वे एक्सपोर्ट (वैल्यू टर्म में) को बढ़ाने में मददगार साबित हों, क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन कमोडिटीज की कीमतों में काफी उछाल आया है। यदि ऐसा होता है और विनिर्मित वस्तुओं का निर्यात धीमा रहता है, तो विकास दर और महंगाई दर में से किसी एक को चुनने पर ऊहापोह कायम रहेगा।


आखिरकार यही कहा जा सकता है कि इस वक्त मौद्रिक, वित्तीय, व्यापार संबंधी और नियमन संबंधी उपायों का मिलाजुला रास्ता अपनाए जाने की दरकार है। बढ़ती महंगाई दर एक सामाजिक बोझ है, सरकार को महंगाई रोकने के काम को प्राथमिकता देने की कोशिश करनी चाहिए।

First Published - April 7, 2008 | 12:45 AM IST

संबंधित पोस्ट