वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पूर्ण बजट पेश होने में दो सप्ताह से भी कम समय शेष रह गया है। अब तक जो संकेत मिले हैं वे सभी महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय हैं। उदाहरण के लिए जब सरकार ने हाल ही में रोजगार एवं कौशल विकास पर मंत्रिमंडलीय समिति का नाम बदलकर कौशल, रोजगार एवं आजीविका पर मंत्रिमंडलीय समिति रखा तो यह घोषणा बजट को लेकर एक संकेत दे गया।
कौशल या हुनर को रोजगार से पहले रखकर क्या सरकार यह संदेश दे रही है कि संयंत्रों एवं विनिर्माण केंद्रों में श्रमिकों की कमी से पड़ने वाले असर को देखते हुए लोगों को हुनरमंद बनाना उसका अब मुख्य मकसद हो गया है? क्या आजीविका को समिति के अंतर्गत लाकर सरकार नौकरियों एवं रोजगार का दायरा मौजूदा हालात को देखते हुए बढ़ा रही है? शायद, ऐसा हो सकता है।
मंत्रिमंडलीय समितियों के पुनर्गठन के अलावा संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण, इस पर प्रधानमंत्री का जवाब और 18वीं लोकसभा की पहली मंत्रिमंडल की बैठक से भी बजट को लेकर कई संकेत सामने आए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि बजट में ऐतिहासिक कदमों की घोषणा की जाएगी, जिनके दायरे में आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दे आएंगे और सुधारों पर विशेष ध्यान रहेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को विकास के नए चरण में ले जाने और वर्ष 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करने की बात कही है। प्रधानमंत्री ने विशेष तौर पर कहा है कि उनकी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में तीन गुना गति से काम करेगी। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की पहली कैबिनेट बैठक में उन व्यापक योजनाओं की तरफ भी इशारा किया गया है, जो बजट में कल्याणकारी योजनाओं के रूप में सामने आ सकते हैं।
मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के अंतर्गत घर बनाने के लिए 3 करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण एवं शहरी परिवारों को सहायता दी जाएगी। ये सभी कदम रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं, मगर बेशक हम इन रोजगारों की गुणवत्ता एवं इसके टिकाऊ होने के बारे में निश्चित रूप से फिलहाल कुछ नहीं कह सकते।
वित्त वर्ष 2025 पूरा होने में लगभग आठ महीने शेष रह गए हैं। इसे देखते हुए यह बजट आंकड़ों में कोई खास बदलाव किए बिना उन योजनाओं पर अधिक दांव खेल सकता है, जो मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के लिए माहौल तैयार कर सकता है। यह संभव है कि चुनाव नतीजों के बाद अलग हालात सामने आने से सरकार ने योजनाओं पर अधिक गहराई से काम करने के लिए बजट जुलाई के अंतिम सप्ताह में लाने का निर्णय किया हो। चुनाव से पहले अधिकारी जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई की शुरुआत में बजट लाने का लक्ष्य रख रहे थे। उस समय न ही गठबंधन सरकार और न ही मजबूत विपक्ष उभरने की कोई तस्वीर दिख रही थी।
अगर यह वास्तव में बड़े बदलाव एवं लक्ष्यों वाला बजट है तो गुणवत्तापूर्ण रोजगार एवं कौशल विकास सभी मंत्रालयों एवं विभागों के लिए मुख्य बिंदु होने चाहिए। इसके लिए उद्योग जगत और अकादमिक संस्थानों (देश के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर) के बीच सहयोग बजट तैयार करने की प्रक्रिया में प्रमुखता से आना चाहिए।
इसका मतलब यह होगा कि सेमीकंडक्टर एवं इलेक्ट्रॉनिक्स खंड में भारत विशेष जोर देने के लिए अन्य देशों सहित ताइवान और चीन के संगठनों, कारोबारों एवं संस्थानों के साथ सहयोग करेगा। भारत ने अब तक इस दिशा में छोटे कदम उठाए हैं मगर विनिर्माण क्षेत्र में बड़ी बढ़त हासिल करने के लिए इसे वैश्विक ताकतों के साथ सहयोग करने की जरूरत होगी। इस प्रक्रिया में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में उद्योग-शिक्षा क्षेत्र के बीच सहयोग की जरूरत का जिक्र किया था। पूर्ण बजट में इस पहल को प्रमुखता दी जा सकती है। मगर यह सब करने के लिए शोध एवं विकास (आरऐंडडी) पर खर्च करना होगा।
फरवरी में अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने तकनीकी खंड में शोध आगे बढ़ाने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के कोष की घोषणा की थी और तकनीक में नवाचार के लिए एक योजना का भी प्रस्ताव दिया था। शोध एवं विकास पर भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1 प्रतिशत से भी कम खर्च करता है। अमेरिका, जर्मनी, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश इस मामले में भारत से कहीं आगे हैं।
भारत में आरऐंडडी पर निजी क्षेत्र का सकल घरेलू व्यय उसके कुल व्यय का 40 प्रतिशत से नीचे रहा है। तकनीक से जुड़े नवाचारों पर अधिक ध्यान देने वाले देशों जापान, अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया में आरऐंडडी पर होने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा (65 से 70 प्रतिशत तक) निजी उद्यमों से आता है।
रोजगार, नवाचार एवं ऐसी ही अन्य चीजें बजट में ध्यान खींच सकती हैं, मगर कर प्रस्तावों पर सबका विशेष ध्यान रहता है। इस लिहाज से बजट तैयार करने की प्रक्रिया से जुड़े रहे एवं बजट पर विशेष नजर रखने वाले एक व्यक्ति की राय में सरकार को वित्तीय बजट को बढ़ावा देने और पूंजी बाजारों का दायरा व्यापक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इसके अलावा सीमा शुल्क घटाने के साथ उद्योग जगत को वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। निर्यात बढ़ाने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के साथ किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के लिए ‘उत्पादकता आयोग’ की स्थापना की जानी चाहिए।
वित्त मंत्री एवं उनकी टीम को सभी संबंधित पक्षों से प्रतिक्रियाएं एवं सुझाव मिल चुके हैं, इसलिए हालात और चारों तरफ से मिल रहे संकेतों को देखते-समझते हुए बड़े लक्ष्यों एवं योजनाओं पर गंभीरता से विचार शुरू हो जाना चाहिए।