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वित्तीय सुधारों पर सुस्ती छोड़ने का वक्त

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 7:41 PM IST

वित्तीय क्षेत्र में उदारीकरण और मौद्रिक प्रबंधन दो ऐसे विषय हैं, जो अमूमन चर्चा में नहीं रहते हैं, पर पिछले कुछ महीनों से इन पर गंभीर बहस छिड़ी हुई है।


ऐसे वक्त में जब दुनिया भर की मुद्राएं अलग-अलग दिशाओं में जा रही हैं और मंदी के वातावरण में महंगाई दर तेजी से बढ़ रही है, इस तरह की बहसें और तेज हो गई हैं और इनका तेवर विचारधारा के स्तर तक पहुंच चुका है।


ऐसे माहौल में आई रघुराम राजन कमिटी की रिपोर्ट आग में घी का काम करेगी, क्योंकि इस रिपोर्ट में की कुछ सिफारिशें इस बहस के मिजाज से मेल खाती हैं।क्या मौद्रिक नीतिकारों को सिर्फ एक मकसद (महंगाई दर पर काबू पाना) पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए या फिर उनका उद्देश्य बहुआयामी होना चाहिए, इस बारे में आगामी कुछ वक्त तक आम सहमति बनाना नामुमकिन-सा लगता है।


मौजूदा स्थिति में नीतिनिर्धारक बहुआयामी तब्दीली के मूड में नहीं दिखाई दे रहे, जबकि ज्यादातर अर्थशास्त्री आमूल-चूल तब्दीली की पैरोकारी कर रहे हैं। ऐसे अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ऐसी तब्दीली की जरूरत लंबे वक्त से अपेक्षित है।


समिति की कुछ दूसरी संस्तुतियों (मसलन, छोटे सरकारी बैंकों को बेच देना) की राह भी आसान नजर नहीं आ रही। शायद ही सरकार इस तरह की चुनौती स्वीकार करेगी। यह बात दीगर है कि ऐसा किए जाने की जरूरत है। यह बात समझना आसान है कि समिति ने इन मुद्दों की पड़ताल कर ऐसी सिफारिशें क्यों दीं। यदि रिपोर्ट में इन चीजों का समावेश नहीं किया जाता, तो इस रिपोर्ट को बेमानी ही कहा जाता।


पर यह बात भी समझ से परे नहीं है कि यदि इन सिफारिशों को अमल में लाया जाता है, तो इनमें एक लंबा अंतराल लगेगा। इसी तरह, समिति की सिफारिश में नियम संबंधी कुछ ऐसी संरचनाओं का भी जिक्र है, जिन्हें फौरन स्वीकृति हासिल मिलने की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है।


ज्यादातर परंपरावादियों को ऐसा लगेगा कि यदि ये सिफारिशें लागू होती हैं, तो इससे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की स्वायत्तता और प्राधिकार खतरे में पड़ जाएगा। समिति का तर्क है कि वित्तीय क्षेत्र के बीच अनौपचारिक संपर्क पहले से हो ही रहे हैं, लिहाजा इसे औपचारिक बना दिया जाना ही बेहतर है।


यह बड़े दुख की बात होगी यदि कुछ विवादास्पद मसलों की वजह से वित्तीय सुधारों के विषयों की लंबी फेहरिस्त को अमल में नहीं लाया जाए। इसी तरह यह भी दुर्भाग्यपूर्ण होगा यदि वित्तीय क्षेत्र में उदारीकरण को लागू न करके पूरी अर्थव्यवस्था को बंधक बनाकर रखा जाए। ऐसे में राजन समिति की ऐसी सिफारिशों को लागू किए जाने में देर नहीं की जानी चाहिए, जो विवादित नहीं हैं।


इस समिति की कई सिफारिशें ऐसी हैं, जिन पर कोई विवाद भी नहीं है और वे काफी अच्छी भी हैं। मिसाल के तौर पर, लैंड रेकॉर्ड की समस्या के समाधान से जुड़ी बात को ही लिया जा सकता है। खुद डॉक्टर राजन ने भी ऐसी ही सलाह दी है।

First Published : April 9, 2008 | 11:39 PM IST