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जलवायु परिवर्तन पर तेजी से सक्रियता जरूरी

Published by
सुनीता नारायण
Last Updated- January 09, 2023 | 9:56 PM IST

वर्ष 2022 भयानक था। पिछले साल ने दुनिया को घुटनों पर लाकर छोड़ दिया। ऐसा ठीक उस वक्त हुआ जब हमने उम्मीदों की रोशनी देखनी शुरू ही की थी। कोरोनावायरस के संक्रमण की वजह से पूरी दुनिया थमती हुई दिखी थी और लगातार दो साल तक दुनिया को झकझोरने वाली ऐसी घटनाओं के बाद हमें यह लगने लगा कि सबसे खराब दौर खत्म हो गया है। हमें उम्मीद थी कि पुनर्निर्माण का यह नया चरण पिछले वर्षों के सबक पर आधारित होगा। लेकिन कुछ बातें जल्दी ही स्पष्ट हो गईं।

फरवरी 2022 के मध्य तक जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तब हमारी दुनिया अधिक विभाजित, अधिक ध्रुवीकृत और ज्यादा घातक होती प्रतीत हुई। मिस्र में जलवायु सम्मेलन (कॉप27) के साथ खत्म होने वाले घटनाओं से भरे वर्ष में दो प्रमुख रुझान प्रमुखता से अपना दबदबा बनाते देखे गए।

एक रुझान ऊर्जा बाजार में उथल-पुथल से जुड़ा था। वहीं यूरोप को पता था कि इसकी ऊर्जा नीति ने इसकी निर्भरता रूस पर कर दी है और इस संकट की वजह से इसकी स्थिति बेहद असुरक्षित है। पिछले साल बयानबाजी के दौर और बड़ी बातों के बावजूद, विकसित देश ऊर्जा के अतिरिक्त स्रोत के लिए पेट्रोलियम और गैस के उत्पादन पर फिर से जोर देने लगे। हमें इस बात को लेकर स्पष्ट होना चाहिए कि भले ही यूरोप स्वच्छ ऊर्जा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता रखता है लेकिन ऐसा होते हुए भी प्रदूषित स्रोतों वाले ऊर्जा उत्पादन में फिर से निवेश किया जा रहा है और यह जलवायु के लिए बुरा है।

उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों को महंगी स्वच्छ ऊर्जा वाले स्रोतों को अपनाने के लिए कैसे कहा जा सकता है जो अब भी ऊर्जा में कमी जैसे दौर से गुजर रहे हैं जबकि विकसित देशों की निर्भरता अब भी जीवाश्म ईंधनों पर है जिसमें कोयला संयंत्रों और खदानों की फिर से शुरुआत करना शामिल है। वे प्राकृतिक गैस को स्वच्छ और बदलाव लाने वाले ऊर्जा के माध्यम कह सकते हैं लेकिन तथ्य यह है कि ये जीवाश्म ईंधन हैं और इसका दोहन चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की आवश्यकता है। दुनिया के इस हिस्से में जीवाश्म ईंधन और यहां तक कि स्वच्छ प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल के लिए कोई कार्बन बजट नहीं बचा है।

हम इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि ऐसे विचार कि ये निवेश (जैसे कि कम्ब्रिया में ब्रिटेन के कोयला खदान का खुलना) किसी भी तरह से कार्बन न्यूट्रल हैं क्योंकि वे उत्सर्जन की भरपाई करने के लिए अन्य जगहों पर स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करते हैं, यह अनैतिक नहीं तब भी पूरी तरह से भ्रामक है। इस तरह के निवेश के ज्यादातर मामलों में दुनिया के उन हिस्सों में पेड़ लगाना शामिल है जहां रोशनी बंद करने के लिए कहा जाता है।

वर्ष 2022 का दूसरा व्यापक रुझान जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जुड़ा है। यह अब स्पष्ट तौर पर वास्तविकता बन चुकी है और दुनिया के हर क्षेत्र में इससे तबाही मच रही है। भारत में, ‘भारत की जलवायु 2022: जनवरी-सितंबर के अतिवादी मौसम की घटनाओं के आकलन’ से से जुड़ी हमारी रिपोर्ट से पता चलता है कि हमने पहले नौ महीनों में एक दिन में मौसम में बदलाव की एक चरम सीमा देखी है। यह संख्या मानव चेहरे को छुपाती है, विशेष रूप से गरीबों की, जो सबसे बुरे तरीके से तबाही का सामना करते हैं और उन्हें अपनी आजीविका के स्रोतों के बार-बार नुकसान होने का सामना करना पड़ता है।

इन दो बदलाव वाले रुझानों की वजह से अमीरों की असुरक्षा बढ़ी है और गरीब और भी कमजोर होते जा रहे हैं। इसकी वजह से ही हमने मानव व्यवहार की सबसे खराब अभिव्यक्ति देखी है। पिछले साल तक वैश्विक समुदाय टीके के लिए सहयोग करने और एक-दूसरे पर निर्भरता बढ़ाने की आवश्यकता के बारे में बात कर रहा था लेकिन बाद में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के ही दौर चले। हमारे नेता मतभेदों पर तवज्जो देना चाहते हैं लेकिन सुरक्षित भविष्य के लिए एक साथ काम करने के लिए सामान्य उद्देश्यों पर उनका जोर नहीं होता है।

लेकिन हमें इस तरह की रवायत बदलनी होगी। यह युद्ध का समय नहीं है और न ही यह हमारे मूल्यों पर आधारित या दुनिया के विचारों पर आधारित मतभेदों के लिए सही वक्त है। हमें एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम की आवश्यकता है जो सभी देशों को मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर एक साथ ले आए ताकि हम इस पर विचार कर सकें कि किस तरह हम आने वाले अस्तित्व के संकट को रोकें और कैसे एक न्यायसंगत और समावेशी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण किया जाए।

ऐसा केवल तभी संभव है जब हम वैश्विक शासन की एक नियम-आधारित प्रणाली पर वापस आ जाएं जो एक अमीर और ताकतवर लोगों के लिए भी नियम निर्धारित करे न कि केवल केवल गरीबों को ही इसका पालन करने के लिए कहे। जलवायु परिवर्तन के मामले में इसका अर्थ यह है कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिम्मेदारी के वैश्विक मानक हैं जो गैसों के उत्सर्जन के योगदान पर आधारित हैं और जिनका पालन सभी को करना चाहिए। इससे एक समान अवसर निर्धारित होगा ताकि पहले से प्रदूषण फैला रहे स्रोतों और अब प्रदूषण फैलाने वालों को वह सबकुछ करना होगा जिस पर सबकी सहमति बनेगी।

इसके अलावा हमें वित्तीय प्रणालियों को भी पुनर्व्यवस्थित करने की आवश्यकता है ताकि अलग तरीके से विकास करने के लिए धन उपलब्ध हो। तथ्य यह है कि जब स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में निवेश की बात आती है तब यह उभरती दुनिया के खिलाफ खड़ा हो जाता है। दिक्कत की बात यह है कि पैसा नहीं है और फंडिंग की लागत अधिक है। इसके अलावा अधिक ऋण बोझ का मतलब है कि कई देश जलवायु ग्रैच्युटी के नाम पर प्राप्त होने वाली राशि से अधिक भुगतान करते हैं।

नया वर्ष निश्चित रूप से अलग हो सकता है और होना भी चाहिए। इस वक्त हमें जिस बदलाव की जरूरत है, उस पर तात्कालिक कदम उठाने से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। मेरा मानना है कि फर्क इस बात से पड़ेगा कि सत्ता के सामने सच बोलने की हमारी क्षमता कैसी है। हमें इस पर बात शुरू करने की आवश्यकता है और ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारा मकसद सुर्खियों में आना या किसी की आलोचना करना है बल्कि हम इससे बेहतर करने के लायक हैं। दूसरी बात, यह एक-दूसरे को सुनने की हमारी क्षमता से भी जुड़ी है।

ऐसा नहीं है कि दुनिया विभाजित है बल्कि हम अपने मन और विचारों में विभाजित हैं। हम यह भी नहीं जानते कि कोई ‘दूसरा’ मौजूद भी है या नहीं है। असहमति और संवाद ऐसी बातें हैं जिनका जश्न हमें 2023 में भी मनाना चाहिए। तब हम उस नई दुनिया का निर्माण करेंगे जिसको लेकर हम सभी को इतनी उम्मीद है कि यह अब भी संभव है।

First Published : January 9, 2023 | 9:56 PM IST